सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

Uksssc Mock Test - 132

Uksssc Mock Test -132 देवभूमि उत्तराखंड द्वारा आगामी परीक्षाओं हेतु फ्री टेस्ट सीरीज उपलब्ध हैं। पीडीएफ फाइल में प्राप्त करने के लिए संपर्क करें। और टेलीग्राम चैनल से अवश्य जुड़े। Join telegram channel - click here उत्तराखंड समूह ग मॉडल पेपर  (1) सूची-I को सूची-II से सुमेलित कीजिए और सूचियां के नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।              सूची-I.                  सूची-II  A. पूर्वी कुमाऊनी वर्ग          1. फल्दाकोटी B. पश्चिमी कुमाऊनी वर्ग       2. असकोटी  C. दक्षिणी कुमाऊनी वर्ग       3. जोहार D. उत्तरी कुमाऊनी वर्ग.        4.  रचभैसी कूट :        A.   B.  C.   D  (a)  1.    2.  3.   4 (b)  2.    1.  4.   3 (c)  3.    1.   2.  4 (d) 4.    2.   3.   1 (2) बांग्ला भाषा उत्तराखंड के किस भाग में बोली जाती है (a) दक्षिणी गढ़वाल (b) कुमाऊं (c) दक्षिणी कुमाऊं (d) इनमें से कोई नहीं (3) निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए 1. हिंदी में उच्चारण के आधार पर 45 वर्ण है 2. हिंदी में लेखन के आधार पर 46 वर्ण है उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/ कौन से सही है? (a) केवल 1 (b) केवल 2  (c) 1 और 2 द

उत्तराखंड के आभूषण (बुजनी वाली लड़की : काव्य संग्रह)

 उत्तराखंड के आभूषण

देवभूमि उत्तराखंड द्वारा दिए गए लेख में उत्तराखंड के सभी प्रमुख आभूषणों को एक लम्बे समय तक याद रखने के लिए एक कविता के माध्यम द्वारा एक काल्पनिक कविता का वर्णन किया गया है जिसमें "श्रृंगार रस" के साथ "वात्सल्य" रस का प्रयोग करते हुए शादी समारोह में आयी सखियों और दुल्हन के आभूषणों की सून्दरता का उल्लेख किया गया है। अतः कविता को स्वयं को महसूस करते हुए प्रेम-भाव से पढ़ें। इसके अलावा उत्तराखंड के सभी प्रमुख आभूषणों का वर्णन किया गया है जो उत्तराखंड पुलिस व अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए उपयोगी है। अतः लेख को पूरा पढ़ें। और सभी मित्रों को शेयर करें।


शीर्षक : बुजनी वाली लड़की


शीशफूल सजाए माथे पर
कान में मुर्खुली डालकर
राधा चली है ब्याह रचाने
नाक में बुलांक चमक रहा था
गले में तिलहरी माला
कंधे में स्यूण-सांगल लिए
छन-छन करती मलक रही थी
पैरों में इमरती छनक रही थी

ब्याह में आयी और सखियां
हंसुला , गुलबंद गले में पहनें 
माथे पर सबके बांदी सजी थी
जब वे नाचती कमर में तगड़ी पहने
पैरों की झांवर - झांझर करती
हाथ में धगुला, कलाई में पौंछी
एक सखी जो सबसे अलग थी 
कान में जिसके बुजनी लगी थी।




उत्तराखंड के प्रमुख आभूषण


सिर पर पहने जाने वाले प्रमुख आभूषण - शीशफूल, बांदी, मांग टीका, सुहागिन बिन्दी

शीशफूल सिर पर पहने जाने वाला प्रमुख आभूषण है । जिस प्रकार मांग टीका को मांग के बीच पहना जाता है ठीक उसी प्रकार से शीशफूल मांग के साथ माथे के किनारे से दोनों कानों के ऊपर सजा के पहना जाता है। वर्तमान समय में मांग टीका और शीशफूल का सर्वाधिक प्रचलन है लेकिन शीशफूल से मिलता-जुलता बांदी का प्रचलन बन्द हो रहा है। क्योंकि बांदी शीशफूल की तुलना में मोटे आकार और वजन में भारी होता है । अधिक वजन होने के कारण यह प्रचलन में नहीं है। सुहागिन बिन्दी से आप सभी भलीभांति परिचित होगें।



कानों में पहने जाने वाले आभूषण - मुर्खली, कुंडल, बाली, कर्णफूल , गोरख, तुग्यल या बुजनी


कानों में पहने जाने वाले आभूषण में प्रमुख आभूषण है-मुर्खली उत्तराखंड में मूर्खली को विभिन्न नामों से जाना जाता है । जैसे- मुर्खी, मुर्की, मुंदड़ा । यह आभूषण कानों के किनारे को छिदवाकर पहना जाता है। सामान्यतः यह आभूषण चांदी या सोने की मूल्यवान धातु का ही होता है । आभूषण खोने के डर से  महिलाएं मुर्खली को धागे से बांध लेती हैं। इनके अलावा कान में कुंडल, बाली, कर्णफूल , गोरख, तुग्यल या बुजनी को पहना जाता है। प्राचीन समय में राजशाही काल में बुजनी पुरूषों द्वारा कान में पहना जाता था। लेकिन बदलते परिदृश्य में फैशन के अनुकूल अब लगभग सभी गहनें महिलाओं द्वारा पहने जाते हैं। बुजनी और तुग्यल कुंडल की भांति दिखने वाले आभूषण होते हैं। जहां कहीं पर तुग्यल कहा जाता है कहीं बुजनी । सामान्यतः लोग कुंडल कहते हैं। 



नाक में पहने जाने वाले आभूषण - बुलांक, फूली (लौंग), नथुली


नाक में पहने जाने वाले आभूषण में प्रमुख आभूषण है - बुलांक। बुलाक को उत्तराखंड में बेसर भी कहा जाता है । यह नाक में पहने जाने वाला आभूषण फूली(लौंग) की भांति दिखने वाला एक महत्वपूर्ण आभूषण है। यह आभूषण दोनों नाक के बीच छिदवाकर पहना जाता है । पुराने समय में यह अधिक लंबा होता था और ठुड्डी तक पहना जाता था । बदलते फैशन के कारण इसका आकार छोटा हो गया है। यह दिखने में U आकार का बेहद सुन्दर आभूषण होता है। इसके अतिरिक्त नाक के प्रमुख आभूषण नथ (नथुली), है।



गले में पहनें जाना वाले आभूषण - तिलहरी, हंसुला, गुलबंद, चरयो,

किसी समय गले में पहने जाने वाले आभूषण में प्रमुख आभूषण  हंसुला था । यह आभूषण गले का एक प्रमुख आभूषण है। जो संपन्न परिवारों द्वारा ही प्रयोग में लाया जाता है। यह आभूषण मुख्यत: सगाई की रस्म में पहनाया जाता था। इनके अतिरिक्त  तिलहरी, हंसुला, गुलबंद, चरयो, गले के प्रमुख आभूषण हैं। जिसमें वर्तमान समय में गुलबंद सर्वाधिक प्रचलन में है । गुलबंद एक पट्टी पर सजी छोटे-छोटे दानों से बनी गले को ढकने वाला बेहद सुन्दर आभूषण है। जबकि तिलहरी मंगलसूत्र के समान एक माला की तरह होता है।



कंधों में पहने जाने वाला आभूषण - स्यूण-सांगल

प्राचीन काल में राजशाही घराने स्यूण-सांगल का प्रयोग करते थे। यह कंधों पर पहने जाने वाला भारी भरकम आभूषण होता है।

हाथों में पहने जाने वाले आभूषण - धगुला, पौंछी, गोंखले (बाजूबंद), गुंठी(ठ्वाक)

पौंछी हाथों की कलाइयों में पहने जाने वाला प्रमुख आभूषण है। जो पट्टीनुमा आकार का होता है । इसमें 3 से लेकर 5 लड़ियां होती है और इसमें प्रयोग किए जाने वाले दाने का आकार शंकु जैसा होता है। साथ ही हाथों के बाजूओं के लिए बाजूबंद का प्रचलन खूब देखा जा रहा है। जो बीच में लुप्त हो गया था। बाजूबंद को उत्तराखंड में मुख्यत: गोंखले के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा गढ़वाल की महिलाएं  चूडीनुमा पट्टी वाला आभूषण पहनती हैं जिसे धगुला कहा जाता है। 



कमर में पहने जाने वाले आभूषण - कमरबंद

तगड़ी वर्तमान समय में इसे मुख्य रूप से कमरबन्द के नाम से जाना जाता है । इसका प्रयोग शादियों और विशेष अवसरों पर किया जाता है । यह कमर में पहने जाने वाला एकमात्र प्रचलित आभूषण है। इसे भिन्न-भिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है जैसे- तगड़ी, तागड़ी, तिगड़ी, करधनी, कमरबंद।



पैरों में पहने जाने वाले आभूषण - झांवर, इमरती पौंटा, पाजेब, प्वल्या (विछुवा), कण्डवा (सुधमन)

झांवर

हालांकि वर्तमान समय में झांवर प्रचलन में नहीं है क्योंकि इनका स्वरूप फैशन के अनुकूल नहीं है। इन्हीं से मिलते जुलते पैर के अन्य आभूषण ने झांवर की भांति दिखने वाले आभूषणों स्थान ले लिया है। यह आभूषण अंदर से खोखला होता है और इनके अंदर छोटे-छोटे बीज सदा छोटे-छोटे पत्थर डाले जाते हैं। जिनसे छन-छन की ध्वनि उत्पन्न होती है । जैसे - पौंटा, पायल , झिंगोरी, झांवर , धागुल और  पाजेब। पौंटा पैरों में पहने जाने वाले प्रमुख आभूषण है।  



यदि आपको हमारे द्वारा तैयार किए गए नोट्स पसंद आते हैं तो अधिक से अधिक लोगों तक शेयर कीजिए। और यदि आप नानकमत्ता व सितारगंज क्षेत्र के निवासी हैं तो साईं कोचिंग सेंटर जुडिये । अधिक जानकारी के लिए दिए गए नम्बर पर कॉल करें।



इन्हें भी पढ़ें -





टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

If you have any doubts.
Please let me now.

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

उत्तराखंड के प्रमुख व्यक्तित्व एवं स्वतंत्रता सेनानी

उत्तराखंड के प्रमुख व्यक्तित्व उत्तराखंड की सभी परीक्षाओं हेतु उत्तराखंड के प्रमुख व्यक्तित्व एवं स्वतंत्रता सेनानियों का वर्णन 2 भागों में विभाजित करके किया गया है । क्योंकि उत्तराखंड की सभी परीक्षाओं में 3 से 5 मार्क्स का उत्तराखंड के स्वतंत्रता सेनानियों का योगदान अवश्य ही पूछा जाता है। अतः लेख को पूरा अवश्य पढ़ें। दोनों भागों का अध्ययन करने के पश्चात् शार्ट नोट्स पीडीएफ एवं प्रश्नोत्तरी पीडीएफ भी जरूर करें। भाग -01 उत्तराखंड के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी [1] कालू महरा (1831-1906 ई.) कुमाऊं का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम (1857) "उत्तराखंड का प्रथम स्वतंत्रा सेनानी" कालू महरा को कहा जाता है। इनका जन्म सन् 1831 में चंपावत के बिसुंग गांव में हुआ था। इनके पिता का नाम रतिभान सिंह था। कालू महरा ने अवध के नबाब वाजिद अली शाह के कहने पर 1857 की क्रांति के समय "क्रांतिवीर नामक गुप्त संगठन" बनाया था। इस संगठन ने लोहाघाट में अंग्रेजी सैनिक बैरकों पर आग लगा दी. जिससे कुमाऊं में अव्यवस्था व अशांति का माहौल बन गया।  प्रथम स्वतंत्रता संग्राम -1857 के समय कुमाऊं का कमिश्नर हेनरी रैम्

चंद राजवंश : उत्तराखंड का इतिहास

चंद राजवंश का इतिहास पृष्ठभूमि उत्तराखंड में कुणिंद और परमार वंश के बाद सबसे लंबे समय तक शासन करने वाला राजवंश है।  चंद वंश की स्थापना सोमचंद ने 1025 ईसवी के आसपास की थी। वैसे तो तिथियां अभी तक विवादित हैं। लेकिन कत्यूरी वंश के समय आदि गुरु शंकराचार्य  का उत्तराखंड में आगमन हुआ और उसके बाद कन्नौज में महमूद गजनवी के आक्रमण से ज्ञात होता है कि तो लगभग 1025 ईसवी में सोमचंद ने चंपावत में चंद वंश की स्थापना की है। विभिन्न इतिहासकारों ने विभिन्न मत दिए हैं। सवाल यह है कि किसे सच माना जाए ? उत्तराखंड के इतिहास में अजय रावत जी के द्वारा उत्तराखंड की सभी पुस्तकों का विश्लेषण किया गया है। उनके द्वारा दिए गए निष्कर्ष के आधार पर यह कहा जा सकता है । उपयुक्त दिए गए सभी नोट्स प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से सर्वोत्तम उचित है। चंद राजवंश का इतिहास चंद्रवंशी सोमचंद ने उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में लगभग 900 वर्षों तक शासन किया है । जिसमें 60 से अधिक राजाओं का वर्णन है । अब यदि आप सभी राजाओं का अध्ययन करते हैं तो मुमकिन नहीं है कि सभी को याद कर सकें । और अधिकांश राजा ऐसे हैं । जिनका केवल नाम पता है । उनक

परमार वंश - उत्तराखंड का इतिहास (भाग -1)

उत्तराखंड का इतिहास History of Uttarakhand भाग -1 परमार वंश का इतिहास उत्तराखंड में सर्वाधिक विवादित और मतभेद पूर्ण रहा है। जो परमार वंश के इतिहास को कठिन बनाता है परंतु विभिन्न इतिहासकारों की पुस्तकों का गहन विश्लेषण करके तथा पुस्तक उत्तराखंड का राजनैतिक इतिहास (अजय रावत) को मुख्य आधार मानकर परमार वंश के संपूर्ण नोट्स प्रस्तुत लेख में तैयार किए गए हैं। उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में 688 ईसवी से 1947 ईसवी तक शासकों ने शासन किया है (बैकेट के अनुसार)।  गढ़वाल में परमार वंश का शासन सबसे अधिक रहा।   जिसमें लगभग 12 शासकों का अध्ययन विस्तारपूर्वक दो भागों में विभाजित करके करेंगे और अंत में लेख से संबंधित प्रश्नों का भी अध्ययन करेंगे। परमार वंश (गढ़वाल मंडल) (भाग -1) छठी सदी में हर्षवर्धन की मृत्यु के पश्चात संपूर्ण उत्तर भारत में भारी उथल-पुथल हुई । देश में कहीं भी कोई बड़ी महाशक्ति नहीं बची थी । जो सभी प्रांतों पर नियंत्रण स्थापित कर सके। बड़े-बड़े जनपदों के साथ छोटे-छोटे प्रांत भी स्वतंत्रता की घोषणा करने लगे। कन्नौज से सुदूर उत्तर में स्थित उत्तराखंड की पहाड़ियों में भी कुछ ऐसा ही हुआ। उत्

उत्तराखंड में भूमि बंदोबस्त का इतिहास

  भूमि बंदोबस्त व्यवस्था         उत्तराखंड का इतिहास भूमि बंदोबस्त आवश्यकता क्यों ? जब देश में उद्योगों का विकास नहीं हुआ था तो समस्त अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर थी। उस समय राजा को सर्वाधिक कर की प्राप्ति कृषि से होती थी। अतः भू राजस्व आय प्राप्त करने के लिए भूमि बंदोबस्त व्यवस्था लागू की जाती थी । दरअसल जब भी कोई राजवंश का अंत होता है तब एक नया राजवंश नयी बंदोबस्ती लाता है।  हालांकि ब्रिटिश शासन से पहले सभी शासकों ने मनुस्मृति में उल्लेखित भूमि बंदोबस्त व्यवस्था का प्रयोग किया था । ब्रिटिश काल के प्रारंभिक समय में पहला भूमि बंदोबस्त 1815 में लाया गया। तब से लेकर अब तक कुल 12 भूमि बंदोबस्त उत्तराखंड में हो चुके हैं। हालांकि गोरखाओ द्वारा सन 1812 में भी भूमि बंदोबस्त का कार्य किया गया था। लेकिन गोरखाओं द्वारा लागू बन्दोबस्त को अंग्रेजों ने स्वीकार नहीं किया। ब्रिटिश काल में भूमि को कुमाऊं में थात कहा जाता था। और कृषक को थातवान कहा जाता था। जहां पूरे भारत में स्थायी बंदोबस्त, रैयतवाड़ी बंदोबस्त और महालवाड़ी बंदोबस्त व्यवस्था लागू थी। वही ब्रिटिश अधिकारियों ने कुमाऊं के भू-राजनैतिक महत्

उत्तराखंड की जनजातियों से संबंधित प्रश्न (उत्तराखंड प्रश्नोत्तरी -14)

उत्तराखंड प्रश्नोत्तरी -14 उत्तराखंड की प्रमुख जनजातियां वर्ष 1965 में केंद्र सरकार ने जनजातियों की पहचान के लिए लोकर समिति का गठन किया। लोकर समिति की सिफारिश पर 1967 में उत्तराखंड की 5 जनजातियों थारू, जौनसारी, भोटिया, बोक्सा, और राजी को एसटी (ST) का दर्जा मिला । राज्य की मात्र 2 जनजातियों को आदिम जनजाति का दर्जा प्राप्त है । सर्वप्रथम राज्य की राजी जनजाति को आदिम जनजाति का दर्जा मिला। बोक्सा जनजाति को 1981 में आदिम जनजाति का दर्जा प्राप्त हुआ था । राज्य में सर्वाधिक आबादी थारू जनजाति तथा सबसे कम आबादी राज्यों की रहती है। 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य की कुल एसटी आबादी 2,91,903 है। जुलाई 2001 से राज्य सेवाओं में अनुसूचित जन जातियों को 4% आरक्षण प्राप्त है। उत्तराखंड की जनजातियों से संबंधित प्रश्न विशेष सूचना :- लेख में दिए गए अधिकांश प्रश्न समूह-ग की पुरानी परीक्षाओं में पूछे गए हैं। और कुछ प्रश्न वर्तमान परीक्षाओं को देखते हुए उत्तराखंड की जनजातियों से संबंधित 25+ प्रश्न तैयार किए गए हैं। जो आगामी परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण साबित होंगे। बता दें की उत्तराखंड के 40 प्रश्नों में से 2

Uttrakhand current affairs in Hindi (May 2023)

Uttrakhand current affairs (MAY 2023) देवभूमि उत्तराखंड द्वारा आपको प्रतिमाह के महत्वपूर्ण करेंट अफेयर्स उपलब्ध कराए जाते हैं। जो आगामी परीक्षाओं में शत् प्रतिशत आने की संभावना रखते हैं। विशेषतौर पर किसी भी प्रकार की जॉब करने वाले परीक्षार्थियों के लिए सभी करेंट अफेयर्स महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं। उत्तराखंड करेंट अफेयर्स 2023 की पीडीएफ फाइल प्राप्त करने के लिए संपर्क करें।  उत्तराखंड करेंट अफेयर्स 2023 ( मई ) (1) हाल ही में तुंगनाथ मंदिर को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया गया है। तुंगनाथ मंदिर उत्तराखंड के किस जनपद में स्थित है। (a) चमोली  (b) उत्तरकाशी  (c) रुद्रप्रयाग  (d) पिथौरागढ़  व्याख्या :- तुंगनाथ मंदिर उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। तुंगनाथ मंदिर समुद्र तल से 3640 मीटर (12800 फीट) की ऊंचाई पर स्थित एशिया का सर्वाधिक ऊंचाई पर स्थित शिवालय हैं। उत्तराखंड के पंच केदारों में से तृतीय केदार तुंगनाथ मंदिर का निर्माण कत्यूरी शासकों ने लगभग 8वीं सदी में करवाया था। हाल ही में इस मंदिर को राष्ट्रीय महत्त्व स्मारक घोषित करने के लिए केंद्र सरकार ने 27 मार्च 2023

ब्रिटिश कुमाऊं कमिश्नर : उत्तराखंड

ब्रिटिश कुमाऊं कमिश्नर उत्तराखंड 1815 में गोरखों को पराजित करने के पश्चात उत्तराखंड में ईस्ट इंडिया कंपनी के माध्यम से ब्रिटिश शासन प्रारंभ हुआ। उत्तराखंड में अंग्रेजों की विजय के बाद कुमाऊं पर ब्रिटिश सरकार का शासन स्थापित हो गया और गढ़वाल मंडल को दो भागों में विभाजित किया गया। ब्रिटिश गढ़वाल और टिहरी गढ़वाल। अंग्रेजों ने अलकनंदा नदी का पश्चिमी भू-भाग पर परमार वंश के 55वें शासक सुदर्शन शाह को दे दिया। जहां सुदर्शन शाह ने टिहरी को नई राजधानी बनाकर टिहरी वंश की स्थापना की । वहीं दूसरी तरफ अलकनंदा नदी के पूर्वी भू-भाग पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया। जिसे अंग्रेजों ने ब्रिटिश गढ़वाल नाम दिया। उत्तराखंड में ब्रिटिश शासन - 1815 ब्रिटिश सरकार कुमाऊं के भू-राजनीतिक महत्व को देखते हुए 1815 में कुमाऊं पर गैर-विनियमित क्षेत्र के रूप में शासन स्थापित किया अर्थात इस क्षेत्र में बंगाल प्रेसिडेंसी के अधिनियम पूर्ण रुप से लागू नहीं किए गए। कुछ को आंशिक रूप से प्रभावी किया गया तथा लेकिन अधिकांश नियम स्थानीय अधिकारियों को अपनी सुविधानुसार प्रभावी करने की अनुमति दी गई। गैर-विनियमित प्रांतों के जिला प्रमु