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Uksssc Mock Test - 132

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भारत का सम्पूर्ण इतिहास - संक्षिप्त परिचय

      भारत का इतिहास

                    संक्षिप्त परिचय

भारत का सम्पूर्ण इतिहास -(प्राचीन इतिहास से लेकर आधुनिक इतिहास तक)

जैसा कि आप सभी को पता है कि उत्तराखंड के आगामी सभी परीक्षाओं का पैटर्न एक समान हो गया है। जिसमें उत्तराखंड सामान्य ज्ञान से 40 प्रश्न , हिन्दी से 20 प्रश्न, रिजनिंग से 10 प्रश्न, और सामान्य विज्ञान से 30 प्रश्न (इतिहास, भूगोल, संविधान, अर्थशास्त्र) पूछे जाएंगे। इसलिए उत्तराखंड का अध्ययन सर्वाधिक महत्वपूर्ण हो जाता है। क्योंकि उत्तराखंड से 40 प्रश्न पूछे जाएंगे। अब वो उत्तराखंड पुलिस भर्ती हो या पटवारी एवं लेखपाल चाहे हो फोरेस्ट गार्ड और बंदीरक्षक।
               उत्तराखंड का अध्ययन बेहतर ढंग से करने के लिए आपको भारत का सम्पूर्ण इतिहास का ज्ञान होना अति आवश्यक है। यदि आपको भारत के इतिहास के बारे में कुछ भी पता नहीं होगा तो आप सभी उत्तराखंड का इतिहास रटने की कोशिश करेंगें। और जहां रटने की बात आ जाए । तो मात्र तीन महीने में ही रटा हुआ भूल जाते हैं। इसलिए देवभूमि उत्तराखंड द्वारा शून्य से शिखर तक पहुंचाने के लिए आपको क्रमानुसार नोट्स दिए जा रहे हैं। साथ ही हमारे चैनल imi 2021 यूट्यूब वीडियो क्लास के रूप में भी उपलब्ध है। 

भारत का इतिहास


इतिहासकारों ने भारत के इतिहास का अध्ययन करने के लिए एक लम्बे समय काल को देखते हुए तीन काल खंड में विभाजित किया।
  1. प्राचीन भारत (25 लाख ई. पू. से 7 वीं सदी तक)
  2. मध्यकालीन भारत ( 7वीं सदी से 16 वीं सदी तक)
  3. आधुनिक भारत (16 वीं सदी से 1947 तक)

[01] भारत का प्राचीन इतिहास

 प्राचीन इतिहास को प्रागैतिहासिक काल भी कहा जाता है। प्रागैतिहासिक काल का समय काल अधिक होने से उसे पुनः तीन काल खंडों में विभाजित किया गया। 

(01) प्राक इतिहास  

प्राक इतिहास उस काल को कहा जाता है , जिसके अध्ययन के लिए लिखित साक्ष्य उपलब्ध ना हो सिर्फ पुरातात्विक साक्ष्यों पर ही निर्भर रहकर इतिहास का अध्ययन किया जाता है। जैसे औजार , गुफाओं पर बनी चित्रकारी, मानव कंकाल आदि।
  • भारत में सबसे पहला साक्ष्य मानव खोपड़ी एवं कंकाल हथनौरा (नर्मदा घाटी) मध्य प्रदेश में मिला था।
  • गुफा चित्रकारी का प्राचीनतम साक्ष्य भीमबेटका की गुफाएं (नर्मदा घाटी) मध्य प्रदेश में मिला था।
  • भारत में सबसे पुराने पाषाण उपकरण (औजार) बोरी (महाराष्ट्र) से प्राप्त हुए थे। जो लगभग 14 लाख वर्ष पुराने थे।
  • पत्थर के औजारों और उपकरणों के अधिक साक्ष्य मिलने के कारण इसे पाषाण काल भी कहा जाता है।

*पाषाण काल 

औजारों की बनावट और मानव के रहने सहन के आधार पर एक बार पुनः इतिहासकारों ने पाषाण काल को तीन खंडों में विभाजित किया गया।

पुरापाषाणकाल (25 लाख ई.पू से 10 हजार ई. पू. तक) - इस काल का प्रारंभ पृथ्वी में जीवों की उत्पत्ति से लेकर विकसित मानव जीवन की शुरुआत से माना जाता है। इस काल में मानव एक शिकारी के रूप में अपना जीवन निर्वाह करने के लिए शिकार करता है। और शिकार करने के लिए पत्थरों के औजार बनाकर गुफाओं में निवास करता है। पशुपालन का कोई ज्ञान नहीं था। किन्तु आग का ज्ञान था लेकिन आग‌ का उपयोग करना नहीं जानते थे। उस समय पत्थरों के औजार की बनावट कम नुकीले व मोटे आकार की होती थी जिन्हें "स्फटिक या क्वार्टजाइट" कहा जाता है।

मध्यपाषाण काल (10 हजार ई.पू. से 4 हजार ई. पू. तक) - इस काल में मानव ने शिकार के लिए औजारों की बनावट में परिवर्तन किये। और नुकीले और छोटे-छोटे हथियार बनाए जिनसे शिकार पर दूर से भी वार किया जा सकता था। जिन्हें सूक्ष्म पाषाण उपकरण अर्थात माइक्रोलिथ कहा गया। साथ ही मारे गए शिकार को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिए पशुओं को प्रयोग में लाए। और इस तरह से मानव द्वारा पशुपालन की शुरुआत की गयी । मानव द्वारा पाले जाने वाला पहला पशु कुत्ता था।

नवपाषाण काल (10 हजार से - 1 हजार ई. पू.. तक) - इस काल तक आते-आते मानव ने तेजी से विकास किया। शिकार करने के लिए जो औजार बनाते थे वे छोटा करते-करते टूट जाता करते थे इसलिए अब वे मजबूत "स्लेट पत्थर के औजार" बनाने लगेे। इसके अलावा नवपाषाण काल में कृषि की शुरुआत हुई । कृषि के साथ ही स्थायी जीवन और आग का प्रयोग शुरू किया। नवपाषाण काल में ही दुनिया का सबसे बड़ा आविष्कार पहिए का आविष्कार किया और इससे कुंभकारी का ज्ञान अस्तित्व में आया।

(02) आद्य इतिहास

आद्य इतिहास उस काल को कहा जाता है , जिसके अध्ययन के लिए लिखित साक्ष्य उपलब्ध हो किन्तु उन्हें अभी तक पढ़  नहीं जा सकता है। तथा पुरातात्विक साक्ष्यों पर ही निर्भर रहकर इतिहास का अध्ययन किया जाता है। जैसे - सिन्धु घाटी सभ्यता
  • सिन्धु घाटी सभ्यता - सिंधु घाटी सभ्यता का वास्तविक समय काल 2350 ई. पू. से 1750 ई. पू. बताया जाता है। जो C-14 (रेडियो कार्बेन) विधि से प्रमाणिक है। सिन्धु घाटी सभ्यता पहली सुव्यवस्थित शहरी सभ्यता थी।
  • सिन्धु घाटी सभ्यता के लोग व्यापार करने के लिए तांबे के सिक्कों का प्रयोग करते थे। ताबां मानव द्वारा प्रयोग की जाने वाली सबसे पहली धातु थी। 
  • तांबे का प्रयोग करने के कारण इसे कांस्य युग भी कहा जाता है।
  • सिन्धु सभ्यता के प्रमुख स्थल हड़प्पा , मोहनजोदड़ो, लोथल, कालीबंगा और धौलावीरा है।

(03) ऐतिहासिक काल

ऐतिहासिक काल उस समय को कहा जाता है जिसके अध्ययन के लिए लिखित साक्ष्य उपलब्ध हो और उन्हें आसानी से पढ़ जा सकता है। साथ ही पुरातात्विक साक्ष्यों पर ही निर्भर रहकर इतिहास का अध्ययन किया जाता है। जैसे - वेद , पुराण, बौद्ध ग्रंथ, जैन ग्रंथ आदि।

ऐतिहासिक काल का प्रारंभ ऋग्वैदिक काल (1500 ई.पू. से  7 वीं सदी तक) माना जाता है। वैदिक काल के मुख्य निवासी आर्यों को माना जाता है। आर्य एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है श्रेष्ठ, कुलीन और उत्तम व्यक्ति।  संसार के मार्गदर्शन के लिए वैदिक काल में चार वेदों की रचना की गई थी। ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद। भारत की "प्राचीनतम भाषा संस्कृत" का पहला ग्रंथ 'ऋग्वेद' है जो प्राचीनतम "ब्राह्मी लिपि" में है। ऋग्वैदिक काल में सामाजिक जीवन को बेहतर बनाने के लिए "कर्म के आधार वर्ण व्यवस्था को स्थापित किया  था। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य , शूद्र। राजा का बेटा राजा नहीं होता था बल्कि सभा और समिति द्वारा राजा चुना जाता था। किसी राजा के पास स्थायी सेना नहीं होती थी। स्त्रियों को शिक्षा का अधिकार प्राप्त था। और "पशुपालन" आर्थिक जीवन का मुख्य आधार था।

महत्वपूर्ण तथ्य


  • क्योंकि वेदों की भाषा शैली अत्यधिक कठिन थी इसलिए वेदों को समझने के लिए 6 वेदांग और 108 उपनिषद की रचना की गई।
  • शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छंद व ज्योतिष 6 वेदांग थे। इसके अलावा 108 उपनिषदों में मुंडकोपनिषद छांदोग्य उपनिषद, मंडुक्य उपनिषद व कठोपनिषद प्रमुख थे। मुंडकोपनिषद से भारत का राष्ट्रीय वाक्य 'सत्यमेव जयते' लिया गया है। जबकि जबालोउपनिषद में चार आश्रम ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास का उल्लेख किया गया है।
  • ऋग्वेद के तीसरे मंडल में ऋषि विश्वामित्र ने गायत्री मंत्र का उल्लेख किया है। और ऋग्वेद में इंद्रदेव का सर्वाधिक 250 बार उल्लेख मिला है।

उत्तरवैदिक काल - 1000 ईसा पूर्व लोहे के आगमन के साथ उत्तर वैदिक का आरंभ होता है। लोहे के आगमन से कृषि अर्थव्यवस्था में तेजी विकास होता है। नुकीली औजारों से खेती में उत्पादन बढ़ जाता है। उत्पादन बढ़ने से लाभ अधिक होने लगा और मानव धन एकत्र करके रखना शुरू कर दिया। यहीं से लालच का जन्म होता है । चोरी और डकैती को बढ़ावा मिला । जिसके समाधान के रूप में राजा ने राज्य की सुरक्षा के लिए सेना बनाई। उधर उत्पादन बढ़ाने के लिए अंधविश्वास और कर्मकांड को बढ़ावा मिला। कृषक सुख समृद्धि व धन सम्पदा की प्राप्ति के लिए  विभिन्न प्रकार के हवन , पूजा पाठ कराने लगा । जिसके उपरांत पूजा पाठ कराने वालों पंडितों की‌ मांग बढ़ गई । इस तरह ब्राह्मण का पद स्थायी हो गया । उत्तरवैदिक काल तक वर्ण व्यवस्था कर्म की वजह जन्म पर आधारित हो गयी । अब राजा बेटा राजा और शूद्र का बेटा शूद्र। वैश्य और शूद्रों को शिक्षा का अधिकार नहीं था। साथ ही इस काल तक आते-आते स्त्रियों की के कार्य में वृद्धि हो गयी । जिस कारण एक लम्बे समय तक स्त्रियों को शिक्षा से वंचित रखा गया। 

एक अन्य इतिहासकार थामसन (पुरातात्विक) ने कोपेनहेगन संग्रहालय की वस्तुओं और औजारों के आधार पर प्रागैतिहासिक काल को 3 भागों में बांटा।

महाजनपद काल - उत्तरवैदिक काल में छोटे छोटे-छोटे कबीलों ने ग्राम का रूप ले लिया और ग्राम जनपदों में तब्दील हो गये। लगभग 600 ईसा पूर्व भारतवर्ष में 16 महाजनपदों का उदय हुआ। जिसका उल्लेख बौद्ध धर्म के अंगुत्तर निकाय ग्रंथ में मिलता है।
काशी           अवन्ति
कोसल        कुरु
अंग            पंचाल
मगध          मत्स्य
वज्जि         शूरसेन
मल्ल          अश्मक
छेदी            गांधार
वत्स           कम्बोज

इन सब महाजनपदों में मगध साम्राज्य सर्वाधिक शक्तिशाली महाजनपद था। क्योंकि तीन ओर नदियों से घिरा हुआ था। और एक तरफ पहाड़ राज्य की सुरक्षा कर रहे थे। सिंचाई की पूर्ण सुविधा और‌ लोहे के आगमन के बाद मगध हर्यक वंश, शिशुपाल वंश और नंद वंश के नेतृत्व में अत्यधिक शक्तिशाली हो गया। लगभग 322 ईसा पूर्व चन्द्र गुप्त मौर्य ने चाणक्य की सहायता से नंद वंश के अंतिम सम्राट घनानंद  को हराकर खुद गद्दी पर बैठ गया।

मौर्य राजवंश (323 ई.पू.-185 ई.पू.) 

(संस्थापक : चन्द्रगुप्त मौर्य)


 चन्द्रगुप्त को मौर्य वंश का संस्थापक कहा जाता है। चन्द्र गुप्त ने सभी जनपदों को जीतकर भारत में एकक्षत्र शासन स्थापित किया। उसके बाद उनके पुत्र बिन्दुसार ने शासन व्यवस्था को बनाए रखा। किन्तु बिन्दुसार के पुत्र सम्राट अशोक ने भारत ही नहीं अपितु विदेशी राज्यों की सीमा तक साम्राज्य स्थापित किया। इसलिए सम्राट अशोक को भारत का चक्रवर्ती सम्राट कहा जाता है। 261 ईसा पूर्व कलिंग युद्ध के दौरान भीषण मार-काट में लाखों सैनिक मरने से अशोक अघात हो जाता है। और उसे युद्ध से विरक्ति हो जाती है। उपगुप्त के उपदेशों से प्रभावित होकर वह बौद्ध धर्म स्वीकार कर लेता है। और सम्पूर्ण विश्व में बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार करता है । देश में जगह जगह शिलालेख और स्तंभ लगवाया। जिसमें एक स्तंभ उत्तराखंड के कालसी नामक स्थान पर स्थित है।

गुप्त वंश - (संस्थापक - श्री गुप्त)

मौर्यो के पश्चात शुंग वंश, कण्व वंश और सातवाहन वंश भारत का नेतृत्व करते हैं। लेकिन ये सभी अत्यधिक प्रभावशाली नहीं रहे हालांकि सातवाहन ने समस्त दक्षिण भारत को जीत लिया था। किन्तु उत्तर भारत में उथल पुथल रही। इसी बीच लगभग 240 ईसा पूर्व श्रीगुप्त नाम के सामंत ने गुप्त वंश की स्थापना की। गुप्त वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक समुन्द्र गुप्त को कहा जाता है। समुन्द्र गुप्त ने भारत में ही नहीं समुन्द्री सेना की सहायता से अनेक द्वीपों पर अधिकार कर लिया था। समुन्द्र गुप्त के पुत्र चन्द्र गुप्त द्वितीय (विक्रमादित्य) थे। इनके पिता ने सारा सम्पूर्ण भारत तो जीत ही लिया था इसलिए इन्होंने प्रशासन व्यवस्था पर ध्यान दिया । चन्द्रगुप्त द्वितीय कुशल और बुद्धिमान राजा था। इनके शासनकाल में प्रशासन व्यवस्था और‌ न्याय व्यवस्था सर्वोच्च शिखर पर थी। इतिहासकारों के अनुसार ऐसा कहा जाता इनके शासनकाल में किसी के भी घर में ताले नहीं लगाए जाते थे। इसलिए चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य के शासन काल को स्वर्ण युग कहा जाता था। 

गुप्त वंश के बाद उत्तर भारत में 606 ईसा पूर्व हर्षवर्धन ने राज्य स्थापित किया। और अपनी राजधानी कन्नौज में स्थापित की ।

प्राचीन भारत के महत्वपूर्ण तथ्य




[02] भारत का मध्यकालीन इतिहास

मध्यकालीन भारत के इतिहास का प्रारंभ आठवीं सदी से माना जाता है। सर्वप्रथम भारत में अरबों ने आक्रमण किया था। 711-12 ईसवी में अरब देश से मुहम्मद बिन कासिम ने भारत पर आक्रमण किया और भारत में लूट मचाई। उसके बाद 1001 से 1025 ईसवी तक मुहम्मद गजनवी ने 17 बार भारत को लूटा। और उसके बाद मोहम्मद गौरी आया। 1192 ईसवी में तराईन के द्वितीय युद्ध में मुहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान तृतीय का युद्ध हुआ। जिसमें पृ्थ्वीराज चौहान की हार हुई। 

पृथ्वी राज चौहान की हार के बाद उत्तर भारत में दिल्ली सल्तनत की स्थापना हुई। जिसमें 5 वंश के सुल्तानो ने शासन किया। वे  हैं-
  1. गुलाम वंश (1206-1290 ई.)
  2. खिलजी वंश  (1290-1320 ई.)
  3. तुग़लक़ वंश  (1320-1414 ई.)
  4. सैय्यद वंश  (1414-1451 ई.)
  5. लोदी वंश  (1451-1526 ई.)

गुलाम वंश के संस्थापक कुतुबुद्दीन ऐबक को कहा जाता है। कुतुबुद्दीन ऐबक ने कुतुबमीनार का निर्माण प्रारंभ किया था। कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु चौगान खेलते समय घोड़े के गिरने से हुई थी। कुतुबुद्दीन के पुत्र इल्तुतमिश ने कुतुबमीनार का पूर्ण करवाया। इल्तुतमिश ने प्रशासन व्यवस्था और न्याय व्यवस्था को मजबूत करने के लिए चालीसा का गठन किया था। इल्तुतमिश की पुत्री 1236 ईसवी में भारत की पहली महिला सुल्तान बनी थी। गुलाम वंश का अन्तिम शक्तिशाली शासक बलवान था जिसने चालीसा का अंत करके रक्त और लोहे की नीति अपनाई । पावोस और सिजदा नामक प्रथा का प्रचलन शुरू किया था।

खिलजी वंश - (संस्थापक - जलालुद्दीन ख़िलजी)

खिलजी वंश के संस्थापक जलालुद्दीन खिलजी थे । इस वंश के सबसे शक्तिशाली शासक अलाउद्दीन खिलजी था । इसने प्रथम बार दक्षिण विजय के लिए अभियान चलाया। और स्थायी सेना बनाई । सेना में भर्ती करने के लिए घोड़ा दाग प्रथा प्रारंभ की। सेना के लिए वेतन की व्यवस्था साथ ही बाजार नियंत्रण व्यवस्था लागू की। अलाउद्दीन खिलजी ने भारत में प्रथम बार भूमि पैमाईश व्यवस्था लागू की । जिससे अधिक मात्रा में कर प्राप्त कर सकें।

तुग़लक़ वंश - ( संस्थापक: ग्यासुद्दीन तुग़लक़)

तुग़लक़ वंश के संस्थापक ग्यासुद्दीन तुग़लक़ थे । यह प्रथम ऐसा शासक था जिसने कृषि में उत्पादन बढ़ाने के लिए नहरों का निर्माण कराया। तुग़लक़ वंश का सबसे बुद्धिमान व शक्तिशाली शासक मुहम्मद बिन तुगलक था। लेकिन गलत रणनीतियों का चलते इसका शासनकाल सर्वाधिक संघर्षशील रहा। मुहम्मद बिन तुगलक ने सम्पूर्ण साम्राज्य पर नियंत्रित करने के लिए राजधानी दिल्ली से दौलताबाद स्थापित की थी जो योजना विफल रही उसके बाद चांदी के सिक्के के स्थान पर कांसे के सिक्के चलवाए (सांकेतिक मुद्रा ) किन्तु नकली सिक्कों की प्रचलन में आने से यह भी विफल हो गया। अत्यधिक बड़  मात्रा में स्थायी सेना बनाई और नगद वेतन दिया जिससे सारा राजकोष खाली हो गया। और अनेकों प्रान्तों ने विद्रोह कर दिया। जिस कारण दिल्ली सल्तनत से अधिकांश प्रान्त स्वतंत्र हो गये । मुहम्मद बिन तुगलक के बाद फिरोज शाह गद्दी पर बैठा । उसने साम्राज्य का विस्तार छोड़कर प्रशासन व्यवस्था पर विशेष ध्यान दिया। और कृषि क्षेत्र में विशेष सुधार किए। फिरोजशाह तुगलक ने सिंचाई के लिए सर्वाधिक नहरों का निर्माण कराया। और व्यापार को सुलभ बनाने के लिए सड़कों का निर्माण कराया।

सैय्यद वंश (संस्थापक : खिज्र खां)

सैय्यद वंश का संस्थापक खिज्र खां था।

लोदी वंश (संस्थापक : बहलोल लोदी)

सैय्यद वंश के बाद दिल्ली सल्तनत पर लोदी वंश आया। इस वंश में मात्र तीन शासक थे। बहलोल लोदी, सिकंदर लोदी व इब्राहिम लोदी । लोदी वंश के संस्थापक बहलोल लोदी थे । लोदी वंश के अन्तिम शासक इब्राहिम लोदी और बाबर के बीच पानीपत का प्रथम युद्ध (1526 ई) होता है और इस युद्ध में बाबर की जीत होती है। इस तरह भारत में मुगल वंश की नींव पड़ी।

मुगल वंश -1526 (संस्थापक : बाबर)


मुगल वंश के संस्थापक बाबर को कहा जाता है। बाबर ने पानीपत के बाद लगातार 3 युद्ध लड़े । खानवा का युद्ध (1527), चंदेरी का युद्ध (1528), घाघरा का युद्ध (1529) ,  इन सभी युद्धों में विजय होने से पूरे उत्तर भारत में बाबर का शासन हो जाता है। बाबर की मृत्यु 1530 में हो जाती है और उसका पुत्र हुमायूं गद्दी पर बैठता है। और साम्राज्य विस्तार की नीति अपनाता है किन्तु 1540 ईसवी में बिलग्राम के युद्ध में शेरशाह सूरी से हार जाता है और जान बचाकर भाग निकलता है। और भारत में शेरशाह सूरी वंश का शासन चलता है। 1555 में हुमायूं पुनः दिल्ली को नियंत्रित में कर लेता है । और एक दिन पुस्तकालय की सीढ़ियां में फिसलने से मृत्यु हो जाती है। हुमायूं के बाद बैरम खां के संरक्षण में मात्र 14 वर्ष की आयु में अकबर राजा बनता है। और 1556 में पानीपत का द्वितीय युद्ध हेमू विक्रमादित्य और अकबर के बीच लड़ा गया। जिसमें अकबर की विजय होती है और यहां से अकबर साम्राज्य विस्तार नीति को अपनाता और दक्षिण भारत के कुछ क्षेत्रों को छोड़कर समस्त भारत में अकबर का शासन स्थापित हो जाता है। 
अकबर के बाद जहांगीर राजगद्दी पर बैठता है और जहांगीर के बाद शाहजहां । जिसने मुमताज की याद में ताजमहल का निर्माण करवाया था। मुगल वंश का अन्तिम शक्तिशाली शासक औरंगजेब था । औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद मुगल वंश कमजोर हो जाता है । और 1764 में बक्सर के युद्ध के बाद अंग्रेजों का नियंत्रण स्थापित हो जाता है।

[3] आधुनिक भारत का इतिहास

यूरोपियन कम्पनियों का आगमन


आधुनिक भारत के इतिहास का प्रारंभ यूरोपीय कम्पनियों के आगमन से होता है। भारत में सर्वप्रथम पुर्तगाली व्यापारी वास्कोडिगामा (1498) भारत आया था । 15 वीं शताब्दी के अंत में भारत में अनेक यूरोपीय कंपनियां व्यापार के लिए आने लगी। कंपनियों के आगमन का क्रम इस प्रकार है- 
पुर्तगाली -- डच -- अंग्रेज -- डेन -- फ्रांसीसी।

1600 ईस्वी में अंग्रेजों ने भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी स्थापित की । अंग्रेजो और फ्रासियों  ने पहले भारतीयों को आपस में लड़ाया और धीरे-धीरे भारतीय रियासतों पर अपना नियंत्रण स्थापित किया। मुगल दरबार में जाने वाला प्रथम अंग्रेज 'कैप्टन हॉकिंस' था। वह जेम्स प्रथम के राजदूत के रूप में जहांगीर के दरबार में आया था। और उसके बाद 1615 ईसवी में 'सर टॉमस रो' जहांगीर के दरबार में पहुंचा। सन् 1717 ईस्वी में मुगल सम्राट 'फर्रूखसियर' ने ₹3000 वार्षिक कर के बदले कंपनी को बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा में करमुक्त व्यापारिक अधिकार प्रदान किया। अंतत: प्लासी के युद्ध 1757 ईस्वी में अंग्रेजों ने रावर्ट क्लाइव के नेतृत्व में बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को हराकर बंगाल पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया । और जल्दी ही 1764 में बक्सर के युद्ध में दिल्ली के सुल्तान शाह आलम द्वितीय, शुजाउद्दौला और मीर कासिम की संयुक्त सेना को पराजित कर भारत के केन्द्र में नियंत्रण स्थापित कर लिया। 

ब्रिटिश शासन 


सन् 1773 ईसवी में कंपनी का शासन समाप्त कर भारत को इंग्लैंड सरकार के नियंत्रण में लाया गया। सरकार ने शासन व्यवस्था स्थापित करने के लिए 1773 - चार्टर एक्ट लागू किया । जिसके तहत वैधानिक नियमों के अनुसार शासन व्यवस्था का उल्लेख किया गया था। साथ ही 'वारेन हेस्टिंग्स' को 'बंगाल का प्रथम गवर्नर जनरल' बनाया गया। बंगाल के दूसरे गवर्नर जनरल लॉर्ड कॉर्नवालिस (1786-1793) ने 'स्थाई भूमि बंदोबस्त' व्यवस्था प्रारंभ किया। तथा इन्हें 'भारत में सिविल सेवा का जन्मदाता' कहा जाता है। इसी प्रकार लॉर्ड वेलेजली (1798-1805) ने 1798 में 'सहायक संधि प्रणाली' प्रारंभ की जिसके तहत भारतीय राजाओं की सहायता करके राज्य में में हस्तक्षेप व नियंत्रण करने की नीति अपनाई थी। सहायक संधि की भांति ही 1848 में लॉर्ड डलहौजी (1848-1856) द्वारा 'हड़प नीति' प्रारंभ की गई। जिसका उद्देश्य भारतीय राज्यों को हड़पना था। सहायक संधि और हड़प नीति जैसी व्यवस्थाओं से भारतीय राजा अत्यधिक परेशान हो गए। वहीं दिन पर दिन अंग्रेजों का अत्याचार और शोषण बढ़ता ही जा रहा था। अनंत: सन् 1857 में भारतीय राजाओं ने विद्रोह का विगुल बजा दिया। जिसे इतिहास में '1857 का स्वतंत्रता संग्राम' कहा जाता है । जिसमें भारतीयों की हार हुई थी। 1857 ईसवी के विद्रोह की शुरुआत 10 मई 1857 को मेरठ से हुई थी। इस विद्रोह का तत्कालीन कारण नई एनफील्ड राइफल में चर्बी युक्त (गाय एवं सूअर की चर्बी) कारतूस का प्रयोग करना था। बैरकपुर में 34वीं नेटिव के सिपाही मंगल पांडे ने 29 मार्च 1857 के विद्रोह किया और अपने सार्जेंट मेजर लेफ्टिनेंट बाग की हत्या कर दी तथा सार्जेण्ट ह्यूस्टन पर गोली चला दी।

भारत का स्वतंत्रता आंदोलन

कांग्रेस का गठन -1885


भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना 1885 ईसवी में एक सेवानिवृत्त ब्रिटिश प्रशासनिक अधिकारी ए.ओ. ह्यूम द्वारा की गई थी। कांग्रेस की स्थापना का मुख्य उद्देश्य धीरे धीरे अंग्रेजी सरकार की शक्ति को कम करना व देश को आजाद कराना।कांग्रेस का प्रथम अधिवेशन दिसंबर 1885 में मुंबई में हुआ था इस अधिवेशन में कुल 72 सदस्यों ने भाग लिया था। 'व्योमेश चंद्र बनर्जी' कांग्रेस के प्रथम अध्यक्ष थे। कांग्रेस अधिवेशन के तीसरे अध्यक्ष व पहले मुस्लिम अध्यक्ष बदरुद्दीन तैयबजी बने तथा जॉर्ज यूले प्रथम व चौथे ईसाई व विदेशी अध्यक्ष बने थे। कांग्रेस अधिवेशनों से देश की जनता जागरूक हो रही थी और भारतीयों में राष्ट्रीय एकता जागृत हो रही थी।

बंगाल में राष्ट्रीय एकता को कमजोर करने के उद्देश्य से लॉर्ड कर्जन (1899-1905) ने 16 अक्टूबर 1905 में बंगाल विभाजन कर दिया। बंगाल विभाजन के विरोध में संपूर्ण देश में स्वदेशी एवं बहिष्कार आंदोलन चलाया गया। कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन 1906 में दादा भाई नौरोजी ने सर्वप्रथम 'स्वराज्य' की मांग प्रस्तुत की। उन्होंने सर्वप्रथम 'धन निकासी' का सिद्धांत दिया था।

मुस्लिम लीग का गठन -1906


1906 में ढाका के नवाब 'सलीमुल्ला खां' एवं 'आगा खां' के नेतृत्व में 'मुस्लिम लीग' का गठन हुआ। और स्वदेशी के मुद्दे पर 1907 ईस्वी के कांग्रेस के सूरत अधिवेशन में कांग्रेसी दो भागो 'गरम दल एवं नरम दल' में विभाजित हो गया था।
ब्रिटिश सरकार ने 1909 में भारतीय परिषद अधिनियम पारित किया। जिसमें पहली बार मुसलमानों के लिए 'पृथक निर्वाचन क्षेत्र एवं मताधिकार' की व्यवस्था दी गई। 1911 ईस्वी में दिल्ली में इंग्लैंड के सम्राट जार्ज पंचम एवं महारानी मैरी के स्वागत में भव्य दरबार का आयोजन किया गया। इस समारोह में बंगाल विभाजन को रद्द करने तथा भारत की राजधानी कोलकाता से दिल्ली स्थानांतरित करने की घोषणा की गई।
1916 ईस्वी में लखनऊ में आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन में विभाजित गुटों में समझौता हो गया । इसी अधिवेशन में पहली बार कांग्रेस एवं मुस्लिम लीग एक मंच पर आए।

बाल गंगाधर तिलक ने अप्रैल 1916 तथा एनी बेसेंट ने सितंबर 1916 में 'होमरूल लीग' का गठन किया। इसी समय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन - 1917 ईस्वी में श्रीमती एनी बेसेंट ने कांग्रेस की प्रथम महिला के रूप में अध्यक्षता की थी।
सन 1919 ईस्वी के 'भारत सरकार अधिनियम-1919' द्वारा प्रांतों में 'द्वैध शासन' की व्यवस्था आरंभ की गई । 

जलियांवाला बाग हत्याकांड -1919


पंजाब के दो महत्वपूर्ण नेता सैफुद्दीन किचलू तथा डॉ. सत्यपाल की गिरफ्तारी के विरोध में अमृतसर के जलियांवाला बाग में 13 अप्रैल 1919 को विशाल जनसभा आयोजित की गई । जनरल ओ. डायर के निर्देश पर सभा पर गोलियां चलाई गई। जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए । इसे 'जलियांवाला बाग हत्याकांड' के नाम से जाना जाता है। इसी वर्ष सन् 1919 ईस्वी में तुर्की के खलीफा के साथ किए जा रहे दुर्व्यवहार के विरोध में भारत में 'मोहम्मद अली' एवं 'शौकत अली' के नेतृत्व में 'खिलाफत आंदोलन (1919)' चलाया गया।

असहयोग आंदोलन - 1920

असहयोग आंदोलन की शुरुआत 1 अगस्त 1920 को की गई तथा 5 फरवरी 1922 को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के चौरा चोरी नामक स्थान पर उत्तेजित भीड़ ने कुछ सिपाहियों को थाने में जिंदा जला दिया इससे क्षुब्ध होकर गांधी जी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया । इस आन्दोलन के बाद गांधी जी जेल में चले गए। जिसके उपरांत जनवरी 1923 ईस्वी में 'चितरंजन दास' व 'मोतीलाल नेहरू' ने  'स्वराज पार्टी' की स्थापना की।

साइमन कमीशन - 1928


1919 ईस्वी के भारत सरकार अधिनियम की समीक्षा करने के लिए 1927 में जॉन साइमन के अध्यक्षता में 'साइमन कमीशन' का गठन किया गया । तथा 3 फरवरी 1928 को साइमन कमीशन भारत आया। लेकिन इस कमीशन में एक भी भारतीय के ना होने के कारण देश भर में इसका विरोध किया गया। लाहौर में साइमन कमीशन के विरोध पर हुई लाठीचार्ज में लाला लाजपत राय को गंभीर चोट लगी । जिसके कारण जिसके कारण बाद में उनकी मृत्यु हो गई।

1929 ईस्वी में कांग्रेस के 'लाहौर अधिवेशन' की अध्यक्षता करते हुए जवाहरलाल नेहरू ने 'पूर्ण स्वराज्य' का लक्ष्य घोषित किया तथा 31 दिसंबर 1929 को लाहौर में रावी नदी के तट पर जवाहरलाल नेहरू ने तिरंगे झंडे को फहराया।

सविनय अवज्ञा आंदोलन - 1931


12 मार्च 1930 को महात्मा गांधी ने 78 समर्थकों के साथ साबरमती आश्रम से दांडी के लिए प्रस्थान किया तथा 6 अप्रैल 1930 को दांडी पहुंचकर गांधी जी ने नमक कानून तोड़कर 'सविनय अवज्ञा आंदोलन' की शुरुआत की। 5 मार्च 1931 को गांधी जी एवं तत्कालीन वायसराय इरविन के बीच हुए समझौते के बाद सविनय अवज्ञा आंदोलन वापस ले लिया गया। जिसे इतिहास में 'इरविन समझौता' कहा गया । 1932 ईस्वी में 'महात्मा गांधी' एवं 'डा. बी. आर. अंबेडकर' के बीच 'पूना समझौता (पूना फैक्ट)' के पश्चात अंबेडकर ने दलितों के लिए पृथक प्रतिनिधित्व की मांग को वापस ले लिया।

भारत छोड़ो आन्दोलन - 1942


8 अगस्त 1942 को मुंबई के ग्वालिया टैंक मैदान में 'भारत छोड़ो आंदोलन' प्रारंभ करते हुए, महात्मा गांधी ने 'करो या मरो' का नारा दिया। महात्मा गांधी से मतभेद होने के कारण सुभाष चंद्र बोस ने कांग्रेस से इस्तीफा देकर 1939 ईस्वी में 'फॉरवर्ड ब्लॉक' का गठन किया। हालांकि महात्मा गांधी को सर्वप्रथम 'राष्ट्रपिता' सुभाष चंद्र बोस ने ही कहा था।
'आजाद हिंद फौज का गठन' सर्वप्रथम 'कैप्टन मोहन सिंह' ने 1942 ईस्वी में किया था । 1943 ईस्वी में सुभाष चंद्र बोस ने इसका पुनर्गठन किया। 

कैबिनेट मिशन - 1946


1946 ईस्वी में 'कैबिनेट मिशन' भारत आया । स्टीफर्ड क्रिप्स, पैथिक लोरेंस (अध्यक्ष) एवं ए.बी. एलेग्जेंडर इसके अन्य सदस्य थे। कैबिनेट मिशन की संस्तुति पर ही 'संविधान सभा' का गठन किया गया था। 3 जून 1947 को तत्कालीन वायसराय माउंटबेटन ने 'माउंटबेटन योजना' प्रस्तुत की इसके आधार पर भारत का विभाजन किया गया । 15 अगस्त 1947 को भारत एवं पाकिस्तान दो राष्ट्रीय अस्तित्व में आए।

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