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शीत युद्ध - Cold War
(1948-1989)
शीत युद्ध क्या है ? शीत युद्ध के कारण और प्रभाव
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद दो महाशक्तियां संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ रूस के बीच तनाव उत्पन्न हो जाता है जिसे इतिहास में शीत युद्ध के नाम से जाना जाता है। शीतयुद्ध नामक शब्द का प्रयोग सबसे पहले "बर्नाडे बारूच" ने किया था जिन्हें "वाल्टर लिपमैन" भी कहा जाता है।
शीत युद्ध की परिभाषाएं
शीत युद्ध को अनेकों विद्वानों ने अपने अपने शब्दों में परिभाषित किया है -
प्रवक्ता हंस जे- मॉरगेन्थाऊ के अनुसार "शीत युद्ध पुरानी शक्ति राजनीति का नवीनीकरण है"।
जोसेफ फ्रकेले के अनुसार "शीत युद्ध दो बड़े राज्यों के बीच विद्वान गहरी प्रतियोगिता अर्थात चालू तथा प्रति चालू का सिलसिला माना जा सकता है"।
आसान शब्दों में कहें तो शीतयुद्ध एक व्यापारिक संघर्ष था जहां दो देश एक-दूसरे पर प्रत्यक्ष रूप से आक्रमण नहीं करते थे। बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से नीचा दिखाने के लिए, विरोधी राष्ट्र को कमजोर करने के लिए व युद्ध करने की तैयारी करते रहते थे। वास्तव में शीत युद्ध सर्वोच्चता प्राप्त करने के लिए होने वाला बृहद स्तर का संघर्ष था।
- यह कोई वास्तविक युद्ध न होकर एक वाक् एवं मनोवैज्ञानिक युद्ध था इसमें ना तो कोई गोली चली और ना कोई घायल हुआ था ।
- यह केवल कूटनीतिक उपायों द्वारा लड़े जाने वाला युद्ध था जो अस्त्रों शास्त्रों को युद्ध ना होकर धमकियों तक ही सीमित था।
शीत युद्ध के कारण
1- विचारधाराओं में मतभेद
शीत युद्ध होने का प्रमुख कारण दोनों देशों की विचारधारा में मतभेद था। क्योंकि अमेरिका पूंजीवादी, उदारवादी , लोकतंत्र का समर्थक था तो दूसरी तरफ सोवियत संघ साम्यवाद और समाजवाद का समर्थक था। विचारधाराओं के विरोध के कारण ही विश्व के सभी देश दो गुटों में बंट गए। ( जिसे दो ध्रुवीय विश्व का नाम दिया गया दो ध्रुवीय विश्व का आशय वह स्थिति से है जब विश्व में शक्ति के केवल दो केंद्र हो) दोनों गुटों के देशों ने अपनी विचारधारा को श्रेष्ठ और प्रभावी दिखाने के लिए कुछ संगठनों का निर्माण किया जैसे अमेरिका ने नाटो(NATO) सीएटो (SEATO) , सेनेटो (CENATO) और रूस ने वारसा पैक्ट संगठन का निर्माण किया। इन सभी संगठनों का उद्देश्य था अपनी विचारधारा को बढ़ावा देना ।
NATO - North Atlantic treaty organisation
उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन की स्थापना 4 अप्रैल 1949 को 12 संस्थापक सदस्यों द्वारा अमेरिका के वाशिंगटन में किया गया था । इसका मुख्यालय बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स में है। वर्तमान समय में इसके सदस्य देशों की संख्या 30 है।
उद्देश्य - सभी सदस्य देश में मिलजुल कर रहेंगे संकट व युद्ध के समय एक दूसरे के देश की मदद करेंगे। वास्तव में इसकी स्थापना रूस की साम्यवादी नीति से निपटने के लिए किया गया था। इसके अतिरिक्त इसके साथ ही निम्नलिखित संगठनों का बनाया गया। जैसे -
SEATO - South East Asian treaty organisation (1954)
उद्देश्य सामने वादियों की विस्तार वादी नीतियों से दक्षिण पूर्व एशियाई देशों की रक्षा करना।
CENATO - Central treaty organisation (1959)
इसका भी उद्देश्य साम्यवाद के प्रभाव को रोकना था लेकिन साथ ही सोवियत संघ को मध्य पूर्व के देशों से दूर रखना था।
वारसा पैक्ट (1965)
नाटो में शामिल सभी देशों का मुकाबला करने के लिए वारसा पैक्ट की स्थापना 1956 को की गई थी। वास्तव में अमेरिका व मित्रवर राष्ट्रों के द्वारा बनाए गए संगठनों का विरोध करने के लिए साथ ही साम्यवादी नीति को बढ़ावा देने के लिए वारसा पैक्ट की स्थापना की गई।
(2) सोवियत संघ द्वारा याल्टा समझौते का उल्लंघन
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद याल्टा सम्मेलन (1945) में हुआ। पोलैंड जिस पर हिटलर ने अधिकार कर लिया था । वह हाल में ही आजाद हुआ था। इस सम्मेलन के अनुसार यह शर्त रखी गई थी रूस साम्यवादी सत्ता का विस्तार नहीं करेगा । और पोलैंड में लोकतंत्र का शासन स्थापित होगा। लेकिन सोवियत संघ ने पौलेंड में साम्यवादी सत्ता स्थापित करके याल्टा समझौते -1 का उल्लंघन किया। उसने समझौते की शर्तों के विपरीत हंगरी, रोमानिया, चेकोस्लोवाकिया में भी अपना प्रभाव बढ़ाना शुरू कर दिया । यहां तक कि चीन की क्रांति (1949) के बाद चीन में भी साम्यवादी सत्ता की स्थापना हुई। रूस ने चीन के साम्यवादी दल को अप्रत्यक्ष रूप से सहायता पहुंचाने का कार्य किया था। चीन एक भौगोलिक जनसंख्या की दृष्टि से बड़ा देश है जिस कारण अमेरिका और मित्र राष्ट्रीय रूस की साम्यवादी नीतियों से चिंतित हो गए।
(साम्यवाद का आशय उस सत्ता से है जिसमें राजा का शासन होता है )
(3) - ऐतिहासिक कारण
प्रथम विश्व युद्ध में 1917 रूस मैं रूस में क्रांति हुई जिस कारण रूस प्रथम युद्ध से बाहर हो गया और रूस में साम्यवाद की स्थापना हुई । 1922 इसी में सोवियत संघ का गठन हुआ और साम्यवाद पूरे विश्व में तेजी से फैलने लगा। दूसरी तरफ अमेरिका में पूंजीवाद का दौर था जो पूरे विश्व में छाया हुआ था। ऐसे में दोनों के बीच टकराव होना लाजिमी था। 1930 की मंदी ने पूंजीवादी अर्थव्यवस्था वाले देशों को गहरी चोट दी। और अत्यधिक नुकसान हुआ । जबकि साम्यवादी अर्थव्यवस्था में मंदी से कोई प्रभाव नहीं पड़ा और वह तेजी से विकास कर रहे थे जिस कारण साम्यवादी नीति का प्रभाव संपूर्ण विश्व में होने लगा और सारे देशों ने समाजवादी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया। इस प्रकार मित्र राष्ट्र रूस को शत्रु के रूप में देखने लगे और यह चाहते थे कि किसी प्रकार से सोवियत संघ की विचारधारा को रोका जाए।
(4) बर्लिन संकट (1961)
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जर्मनी के आधे भाग पर अमेरिका ब्रिटेन फ्रांस और आधे भाग पर रूस ने अधिकार कर लिया। रूस ने जर्मनी के अधिकार क्षेत्र पर साम्यवादी नीति को लागू किया जबकि अन्य ने पूंजीवादी। समस्या तब ज्यादा बढ़ गई जब 1948 में सोवियत संघ द्वारा बर्लिन की नाकाबंदी कर दी गई। और 1961 में बर्लिन की सीमा पर दीवार खड़ी कर दी गई। बर्लिन की दीवार ने जर्मनी को दो भाग पूर्वी जर्मनी और पश्चिमी जर्मनी में विभाजित कर दिया इससे मित्र राष्ट्रीय और रूस में दूरियां बढ़ गई। हालांकि शीत युद्ध के बाद सन् 1990 में जर्मनी का एकीकरण हो गया ।
(5) कोरियाई युद्ध (1950)
1950 में कोरिया उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया में विभाजित हो गया। उत्तर कोरिया में साम्यवाद का प्रभाव रहा जबकि दक्षिण कोरिया में पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का प्रभाव रहा। कुछ ही समय बाद उत्तर कोरिया ने दक्षिण कोरिया पर आक्रमण कर दिया और रूस ने सहयोग दिया जिससे यह अमेरिका को नागवार गुजरा।
(6) सोवियत रूस द्वारा परमाणु अविष्कार
द्वितीय विश्व युद्ध में अमेरिका ने जापान के ऊपर परमाणु बम गिराया और जापान को समर्पण करने पर मजबूर कर दिया। अमेरिका के द्वारा परमाणु अस्त्रों के अविष्कारों के देखकर रूस को भी यह डर सदैव बना रहता था। इसी से चिंतित होकर सोवियत संघ ने भी परमाणु क्षमता विकसित करने का प्रयास किया और 1953 में एक सफल परमाणु परीक्षण के द्वारा अमेरिका को चिंतन में डाल दिया।
(7) क्यूबा मिसाइल संकट (1962)
वर्ष 1959 में क्यूबा में हुई क्रांति के चलते क्यूबा में कम्युनिस्ट सरकार ने सत्ता स्थापित की क्यों अमेरिका का पड़ोसी देश था 1962 में सोवियत संघ ने क्यूबा में अपने सैनिक अड्डे की स्थापना कर दी। इसका अमेरिका ने पुरजोर विरोध किया। क्योंकि क्यूबा में सैनिक अड्डे की स्थापना अमेरिका को सीधे तौर पर कमजोर करने वाली कार्यवाही कही जा सकती है। तब इसके उपरांत अमेरिका ने क्यूबा की नाका बंद कर दी और क्यूबा को चारों तरफ से घेर लिया । ताकि वह में सोवियत सैनिक सदस्य सहायता ना पहुंच सके । जवाब में रूस ने भी क्यूबा कि तरफ मिसाइल तैनात कर दी । लेकिन रूस ने समझदारी का परिचय देते हुए कदम पीछे हटा लिए और इसका तीसरा विश्व युद्ध होने से रह गया।
शीत युद्ध के प्रभाव
शीत युद्ध ने 1946 से 1989 तक विभिन्न चरणों से गुजरते हुए अलग-अलग रूप में विश्व राजनीति को प्रभावित किया। इसने अमेरिका तथा सोवियत संघ के मध्य तनाव पैदा करने के साथ-साथ अन्य प्रभाव भी डालें इसके अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर निम्नलिखित प्रभाव पड़े।
- विश्व के सभी देश दो गुटों में विभाजित हो गए थे। पूंजीवाद - पूंजीवाद का नेतृत्व अमेरिका कर रहा था। समाजवाद - साम्यवाद समाजवाद का नेतृत्व रूस कर रहा था।
- शीत युद्ध के कारण अंतरराष्ट्रीय संबंधों में तनाव , प्रतिस्पर्धा और अविश्वास की भावना का जन्म । जासूसों के माध्यम से दोनों देश एक दूसरे की स्थिति का पता लगाते थे।
- शीत युद्ध ने विश्व के राष्ट्र को भयभीत किया । शीत युद्ध से गर्म युद्ध का वातावरण तैयार हो गया जब 1962 क्यूबा मिसाइल संकट के दौरान सभी को लग रहा था कि मानो वास्तविक युद्ध होने की वाला है।
- शीत युद्ध के कारण यूरोप का भी विभाजन हो गया कुछ देशों ने तो पूंजीवाद का समर्थन किया तो कुछ देश समाजवाद में बात को समर्थन कर रहे थे।
- शीत युद्ध युद्ध में प्रयोग होने वाले ने ने हत्यारों को जन्म दिया शीत युद्ध के परिणाम स्वरुप भारी मात्रा में आणविक अस्त्रों का निर्माण हुआ।
- विश्व में नाटो, सीटो, सेटो तथा वारसा पैक्ट सैनिक संधियों एवं सैनिक संगठनों को जन्म दिया। जिस कारण युद्ध में उग्रता आई और एक लंबी अवधि तक युद्ध की संभावना बनी रही।
- 1945 में विश्व में शांति सुरक्षा स्थापित करने के लिए विश्व सुरक्षा परिषद का निर्माण किया गया था । शीत युद्ध के कारण सुरक्षा परिषद को अपंग बना दिया था। बल्कि दो महाशक्तियों का अखाड़ा बन गया।
- शीत युद्ध के कारण गुटनिरपेक्ष आंदोलन को आंदोलन को सबल बल प्रदान हुआ। विश्व में नव उपनिवेशवाद का उदय हुआ।
- शीत युद्ध के कारण अविकसित और अर्ध विकसित देशों ने भुखमरी, बीमारी, बेरोजगारी, अशिक्षा, आर्थिक पिछड़ापन, राजनीतिक अस्थिरता आदि । अनेक महत्वपूर्ण समस्याओं का सामना करना पड़ा।
शीत युद्ध का अंत
वर्ष 1991 में कई कारणों से सोवियत संघ का विघटन हो गया क्योंकि आप सभी जानते हैं कि हर युद्ध का अंत होता है और लड़ते-लड़ते एक पक्ष कमजोर हो जाता है। अमेरिका और रूस दोनों महाशक्तियों में से रूस अपनी आंतरिक एवं साम्यवाद की नीति से कहीं ना कहीं कमजोर हो गया था क्योंकि साम्यवाद अर्थव्यवस्था में सरकार का पूर्ण हस्तक्षेप होता है अर्थात कोई भी व्यक्ति या संस्था स्वतंत्र नहीं थी । और अक्सर जहां लोग स्वतंत्र नहीं होते हैं। एक समय के बाद विरोध उत्पन्न कर ही देते हैं। जब रूस ने देश में मीडिया और सरकारी क्षेत्रों पर नियंत्रण खो दिया तो वहां की जनता लोकतंत्र के प्रभाव में आ गई और लोकतांत्रिक सुधार आंदोलन ने गति पकड़ ली । इसके अतिरिक्त 10 सालों तक 1979 से 1989 तक सोवियत-अफगान युद्ध में सोवियत संघ के आर्थिक और सैन्य संसाधनों को नुकसान पहुंचाया । जिससे उनकी सैन्य शक्ति भी कमजोर हो गई थी। सबसे प्रमुख मिखाइल गोर्बाचेव की नई नीतियों उदारीकरण (ग्लासनोस्त) व निजीकरण (पेरेस्त्रोइका - अर्द्ध मुक्त बाजार ) को जब शामिल किया गया और रूस का अंततः विघटन हो गया। रूस का विघटन हो जाने से शीत युद्ध का वर्ष 1991 में अंत हो गया।
शीत युद्ध से संबंधित प्रश्न :-
(1) शीत युद्ध के दौरान वारसा पैक्ट संगठन(1965) की स्थापना निम्नलिखित में से किस राष्ट्र ने की थी ?
(a) भारत
(b) अमेरिका
(c) सोवियत रूस
(d) चीन
(2) क्यूबा का मिसाइल संकट किस वर्ष आया था ?
(a) 1962
(b) 1965
(c) 1972
(d) 1991
(3) याल्टा -1 समझौता किन दो देशों के बीच हस्ताक्षरित हुआ था ?
(a) अमेरिका और चीन
(b) भारत और पाकिस्तान
(c) अमेरिका और सोवियत रूस
(d) भारत और फ्रांस
(4) जर्मनी की राजधानी बर्लिन में किस वर्ष दीवार खड़ी होने से जर्मनी दो भागों में विभाजित हो गया ?
(a) 1961
(b) 1973
(c) 1972
(d) 1954
(5) जर्मनी का एकीकरण किस वर्ष किया गया ?
(a) 1980
(b) 1990
(c) 1961
(d) 1992
(6) नाटो की स्थापना के समय इसमें कितने देश शामिल थे ?
(a) 08
(b) 04
(c) 12
(d) 22
(7) नाटो की स्थापना कब की गई ?
(a) 1961
(b) 1965
(c) 1949
(d) 1945
(8) वर्तमान समय में नाटो में कितने सदस्य हैं ?
(a) 12
(b) 28
(c) 22
(d) 30
(9) शीत युद्ध का अंत कब हुआ था ?
(a) 1980
(b) 2002
(c) 1991
(d) 1947
(10) सोवियत संघ का विघटन किस वर्ष हुआ था ?
(a) 1991
(b) 1990
(c) 1970
(d) 1947
Answer (1)c (2) a (3) c (4)a (5)b (6)d (7)c (8)d (9)c (10)a
प्रस्तुत लेख में प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से महत्वपूर्ण जानकारी दी गई है । इस लेख को विभिन्न पुस्तकों का अध्ययन व दृष्टि आईएएस के नोट्स का गहन अध्ययन करें। आसान भाषा में समझाने की कोशिश की गई है। अतः आपको मेरे द्वारा तैयार किए गए नोट्स पसंद आते हैं तो उन्हें अधिक से अधिक शेयर कीजिए और अधिक पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कीजिए।
Sources - 11th-12th NCERT Book , dhirsti ias
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