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पंडित नैन सिंह रावत का जीवन परिचय

 पंडित नैन सिंह रावत  पंडित नैन सिंह रावत (1830-1895) एक महान खोजकर्ता थे। वे हिमालय और मध्य एशिया के क्षेत्र में अंग्रेज़ों के लिए सर्वे करने वाले पहले भारतीयों में से एक थे।  आज जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान पिथौरागढ़ (डीडीहाट) में उनकी 194वीं जयंती के उपलक्ष्य में राज्य स्तरीय कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। जिसमें उत्तराखंड के महान इतिहासकार व लेखक श्री शेखर पाठक जी के साथ राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद की निदेशक श्रीमती वन्दना गर्ब्याल जी और पिथौरागढ़ जिले के जिलाधिकारी श्री विनोद गिरी गोस्वामी जी उपस्थित रहेंगे। जीवन परिचय  पंडित नैन सिंह रावत का जन्म 1830 में उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में मिलन गांव में हुआ था । उन्होंने अपने अनुभवों और अवलोकनों को डायरी में रिकॉर्ड किया और साथ ही उन्होंने अपनी पहली देसी अंदाज में सर्वेक्षण ज्ञान की पुस्तिका लिखी, जिसका नाम अक्षांश दर्पण (1871) था । अपने चचेरे भाई किशन सिंह और अन्य अनुवेषकों के साथ अनेक अभियान किए। उनके अभियानों से प्राप्त रिकॉर्ड के आधार पर उन्होंने बताया कि सांगपो नदी ही ब्रह्मपुत्र है।  पंडित नैन सिंह जी के

उत्तराखंड का इतिहास : चंद राजवंश (भाग-2)

  उत्तराखंड का इतिहास

चंद राजवंश का इतिहास (भाग-२)

विस्तार से


चंद राजा कन्नौज के शासकों के वंशज थे । जो महमूद गजनवी के आक्रमण के समय कुर्मांचल में प्रविष्ट हुए थे। उस समय कुर्मांचल में ब्रह्मदेव का शासन था। ब्रह्मदेव कत्यूर वंश का अंतिम सम्राट था। 10 वीं शताब्दी में लोहाघाट के आसपास सुई राज्य था। सुई राज्य पर ब्रह्मदेव शासन कर रहा था।

*इतिहासकार श्यामलाल, एटकिंसन, वाल्टन व बद्रीदत्त पांडे के अनुसार चंद शासक इलाहाबाद के निकट झूंसी से आया था।

चंद राजवंश का उदय

चंद वंश के संस्थापक - (1) सोमचंद (1025-1046 ईसवी)

1025 ईस्वी के आसपास सोमचंद ने चंपावत में अपनी राजधानी स्थापित की। इतिहासकार श्यामलाल के अनुसार सोमचंद इलाहाबाद के निकट झूंसी से आया था। कुमाऊं में सोमचंद के आने की अनेक कहानियां है । परीक्षाओं की दृष्टि से यह मान सकते हैं कि सोमचंद 11 वीं सदी के आरंभ में बद्रीनाथ की यात्रा पर आया था। संयोगवश उसकी मुलाकात कत्यूरी नरेश ब्रह्मदेव से हो जाती है। ब्रह्मदेव सोमचंद की राजोचित, योग्यता, रूप-रंग व व्यक्तित्व को देखकर अत्यधिक प्रभावित हो जाता है। और अपनी एकलौती पुत्री चंपा का विवाह सोमचंद के साथ कर देता है। ब्रह्मदेव दहेज में उसे 15 बीघा जमीन देता है। बाद में इसी जमीन पर सोमचंद ने राजबुंगा का किला बनवाया। और चंपावत को अपनी राजधानी बना कर एक नए राजवंश की स्थापना की। जो आगे चलकर चंद राजवंश के नाम से जाना गया।

सोमचंद के समकालीन शासक

सोमचंद के समकालीन कुमाऊं में खस, नाग, द्रविड़, चांडाल, मेद आदि ठाकुरातियां का राज्य था। जिनके मुख्य राजा मेहरा और फर्त्याल थे। कोलीढेक के क्षेत्र में कोली राज्य करते थे। डोटी (नेपाल) में मल्ल शासकों का शासन था। डोटी को वर्तमान समय में नेपाल कहा जाता है। नेपाल में उस समय मल्ल वंश के राजा जयमल्ल का शासन था। (मल्ल वंश का प्रथम राजा रामदेव (वामदेव) था जिसकी राजधानी चंपा थी सोमचंद ने सर्वप्रथम दोनकोट के रावत राजा को परास्त किया था।

प्रशासन व्यवस्था

सोमचंद एक छोटा सा मांडलिक राजा था। मांडलिक का अर्थ है वह छोटा राज्य जो किसी चक्रवर्ती या बड़े राज्य के अधीन हो और उस राजा को कर देना पड़ता हो। सोमचंद डोटी के राजा को कर देता था। अधीन होने के बावजूद सोमचंद ने राज्य को मजबूत करने के लिए चार किलेदार नियुक्त किए ।
  1. कार्की 
  2. बोहरा 
  3. तड़ागी 
  4. चौधरी
इन्हें चार-आल अर्थात "चाराल" कहा जाता था। कहा जाता है कि ये नेपाल के निवासी थे। इसके अलावा महरा को मंत्री बनाया और फर्त्यालों को सेनापति बनाया। सोमचंद ने अपनी सेना और पुत्र आत्मचंद के साथ चंपावत के आसपास के क्षेत्र पर शासन स्थापित करके विस्तार किया। कुमाऊं में रह रही ठाकुरातियों का विश्वास जीता। सोमचंद ने ग्रामों में बूढ़ा व सयानों की नियुक्ति की । सोमचंद शिव का उपासक था।

(2) आत्म चंद (1046-1066 ईस्वी )

साम्राज्य विस्तार में आत्मचंद ने अपने पिता की सहायता की थी और 20 वर्षों तक शासन व्यवस्था को यथावत बनाए रखा।

(3) पूर्ण चंद (1066-1084)

पूर्णचंद के बारे में नाम के अलावा कोई साक्ष्य प्राप्त नहीं हुए हैं।
लेकिन ताम्र पात्रों से इतना ज्ञात होता है कि 1066 ईसवी से 1084 ईसवी तक पूर्ण चंद का शासन था।

(4) इन्द्र चंद (1084 ईसवी)

पूर्ण चंद के बाद इंद्र चंद गद्दी पर बैठा। इंद्र चंद  ने कुमाऊं में रेशम उत्पादन व उससे रेशमी वस्त्र बनाने का कार्य प्रारंभ किया। व्यापार को सुगम बनाने के लिए चीन से व्यापारिक संबंध स्थापित किए।

(5) संसार चंद
(6) सुधा चंद
(7) हरिचंद

माना जाता है कि इंद्र चंद के बाद इन सभी ने एक के बाद एक शासन किया। लेकिन अभी तक इनके राज्य में शासन व कार्यों का कोई वर्णन नहीं मिला है।

(8) वीणा चंद 

हरिचंद के बाद वीणा चंद राजा बनता है। जो एक भोग विलासी शासक था। जिसके कारण खस राजाओं को सर उठाने का मौका मिल गया। और चंपावत में खसों ने भी कुछ वर्ष शासन किया। वहीं दूसरी तरफ नेपाल में (1191 ईसवी ) "चल्ल वंश" का शासन स्थापित हो गया । 

(9) वीर चंद

अशोक चल्ल के समय कुमाऊं का शासक वीरचंद था। गोपेश्वर-त्रिशूल लेख से पता चलता है कि चंपावत में भारी उतार-चढ़ाव के बाद वीरचंद ने अशोक चल्ल की सहायता से खस राजाओं को पराजित करके चंद वंश का शासन पुनः स्थापित किया। वीर चंद की मृत्यु 1206 ईस्वी में हो जाती है। अशोक चल्ल वैराथ कुल का था और दुलु निवासी था। अशोक चल्ल ने पुरुषोत्तम सिंह को सामंत राजा नियुक्त किया था। चंपावत के बालेश्वर मंदिर से क्राचल्ल देव का 1223 ईस्वी का शिलालेख प्राप्त हुआ है। क्राचल्ल के लेख में 10 मांडलिक राजाओं के नाम का उल्लेख है। जिसका अधिपति शक्तिबम था। ।


(10) नरचंद
वीरचंद का उत्तराधिकारी नरचंद लगभग 1236 ईसवी में गद्दी पर बैठा था।

(11) थोहरचंद
इतिहासकार हर्षदेव जोशी थोहर चंद को कुमाऊ के चंद वंश का संस्थापक मानते हैं। थोहरहरचंद 1261 ईस्वी में कुमाऊं की गद्दी पर बैठता है। एटकिंसन के अनुसार थोहरचंद कुमाऊं का प्रथम स्वतंत्र शासक था । 

(12) कल्याण चंद प्रथम

थोहरचंद का उत्तराधिकारी कल्याण चंद प्रथम था। 

(13) त्रिलोक चंद
(14) अमरचंद
(15) धर्मचंद 
(16) अभय चंद
(17) कर्मचंद

वीरचंद के बाद नरचंद, थोहरचंद , त्रिलोक चंद, अमरचंद, धर्मचंद, अभय चंद और कर्मचंद राजा बनते हैं। जिनका इतिहास धूमिल है। फिर भी यह कहा जा है कि नरचंद संभवत है। 1236 ईसवी के आसपास गद्दी पर बैठा था। 1261 ईस्वी तक शासन करता है। और 1261 ईसवी में थोहरचंद गद्दी पर बैठता है। जिसे कुछ इतिहासकार तो थोहरचंद को भी चंद वंश का संस्थापक मानते हैं।

(29) गरुड़ ज्ञानचंद (1365-1420 ईसवी)


सोमचंद के बाद दूसरा सबसे महत्वपूर्ण शासक था। गरुण ज्ञानचंद था। इतिहासकारों के अनुसार यह चंद वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक था। जिसने "गरुड़" की उपाधि धारण की थी। इससे पूर्व राजा कर्मचंद एक वर्ष तक शासन करने के बाद वह मणकोटी राजा के पास चला गया। उसकी जगह 1365 ईस्वी में ज्ञानचंद गद्दी पर बैठा जो दिल्ली के सुल्तान फिरोज़ शाह तुगलक के समकालीन था। गरुड़ ज्ञानचंद ऐसा पहला शासक था जिसने सोर और सीरा क्षेत्र पर आक्रमण किया।
            गरुण ज्ञानचंद  दिल्ली के सुल्तान फिरोज़ शाह तुगलक के दरबार में भेंट अर्पित करने गया था। वहीं सुल्तान ने ज्ञानचंद को गरुड़ की उपाधि दी। और तराई क्षेत्र का शासन सौंपा। ज्ञानचंद विष्णु भगवान का उपासक था और इसका राजचिन्ह गरुण था।
 
(साक्ष्य : सेराखड़कोट ताम्रपत्र से पता चलता है कि गरुण ज्ञानचंद ने 1420 ईसवी तक शासन किया। तथा 'गोबासा ताम्रलेख शिलालेख' से ज्ञात होता है कि गरूड़ ज्ञान चंद ने 1340 ई.(शक संवत के अनुसार) दान किया था। )

(30) हरिहर चंद
(31) दान चंद 
(32) आत्म चंद 
(33) हरी चंद 
(34) विक्रम चंद

1420 से 1437 ईस्वी के मध्य के इन सभी राजाओं ने राज किया। इनके काल में किसी विशेष घटना घटित होने का कोई प्रमाण नहीं मिलता है। केवल ताम्रपत्रों से नामों का पता चला है। लेकिन बालेश्वर मंदिर ताम्रपत्र के अनुसार विक्रम चंद राजा बनता है। विक्रम चंद ने चम्पावत में बालेश्वर मंदिर का पूर्ण निर्माण करवाया।

(35) भारती चंद (1437-1477 ईसवी)


भारती चंद नेपाल के राजा यक्षमल के समकालीन था। भारती चन्द इस वंश का अत्यधिक लोकप्रिय शासक था वह साहसी और स्वाभिमानी शासक था। जिसने डोटी राजाओं की अधीनता स्वीकार नहीं की थी। भारती चंद ने समाज की सभी जातियों को मिलाकर कटक (सेना) बनाई । और मल्ल राजा को पराजित करने के लिए 12 वर्षों तक नेपाल पर घेरा डाला। फलतः भारती चन्द ने  पहली बार डोटी राजाओं से स्वतंत्र राज्य की स्थापना की। यह विजय 1451-1452 ईस्वी में प्राप्त हुई। इसके अलावा भारती चंद ने अपने राज्य का साम्राज्य विस्तार किया। अपने पुत्र रत्न चंद की सहायता से सोर (पिथौरागढ़),  सीरा (डीडीहाट वाला क्षेत्र) और थल आदि पर अधिकार कर लिया । उस समय सर पर पिथौरागढ़ में बर्मशाही वंश (बम) का शासन था। जो मल्ल वंश की एक शाखा थी। भारती चन्द ने पिथौरागढ़ से बर्मशाही वंश का शासन जड़ से समाप्त कर दिया। और सीरा में बसेड़ समुदाय को सामंत के रूप में नियुक्त किया। बसेडों ने सीरा में 13 वर्षों तक शासन किया। बाद में मल शासक कल्याण मल्ल ने सीरा पर पुनः कब्जा कर लिया।

विशेष तथ्य 

पिथौरागढ़ का प्राचीन नाम सोर था और डीडीहाट का प्राचीन नाम सीरा था। मल्ल सीरा को "पर्वत डोटी का देश" कह कर पुकारते थे। और समस्त कुमाऊं को "पर्वत डोटी" कहते थे। सीरा मंडल के प्रशासक को "राई" या "रैका" पुकारते थे। भारती चंद के समय सीरा में बलिनारायण संसार मल्ल का शासन था।

(साक्ष्य : उपयुक्त लेख का उल्लेख सीरा से मल्लो का प्राचीनतम ताम्रपत्र शाके और सोर के बमों के ताम्रपत्र से प्राप्त हुआ है।)

(36) रत्न चंद (1477-1488 ईसवी)

रत्न चंद भारती चंद का पुत्र था । जिसने डोटी विजय में पिता भारती चंद की सहायता की थी। रत्नचंद के समय डोटी में नागमल्ल ने विद्रोह किया। रत्न चंद नाग मल्ल को परास्त कर पुना डोटी पर शाही वंश का अधिकार स्थापित किया। और इसने थाने के राजा सूर सिंह मेहरा को हराया। बसीरा को जीतकर बसेरा राजपूत को वहां का सामंत नियुक्त किया।

साक्ष्य : लोहाघाट व हुड़ेती ताम्रपत्र में रत्नचंद के नाम का उल्लेख मिलता हैै। और इसमें यह लिखा है कि सोर, सीरा, थल जुमला, बजांग आदि विजय में अपने पिता की सहायता की थीं।

(37) कीर्ति चंद (1488-1506 ईसवी )


रत्नचंद के बाद 1488 ईस्वी में कीर्ति चंद गद्दी पर बैठा । रत्न चंद के वृद्ध होने के कारण राजकुमार की हैसियत से राज्य  का सारा कार्य संभाला था। कीर्ति चंद कुमाऊं का ऐसा पहला शासक था जिसने गढ़वाल पर आक्रमण किया था। कीर्ति चंद ने गढ़वाल शासक अजयपाल को पराजित किया था और राज्य विस्तार में बारामंडल व विसौद को अपने राज्य में मिलाया था। 
            चंद के शासनकाल में नेपाल के राजा ने चंपावत पर आक्रमण किया था तो एक सन्यासी बाबा नागनाथ ने कीर्ति चंद को जीत का उपाय बताकर युद्ध जीतने में कीर्ति चंद की मदद की । युद्ध जीतने के पश्चात कीर्ति चंद बाबा नागनाथ के भक्त बन गए । बाबा नागनाथ की मृत्यु के बाद कीर्ति चंद ने चम्पावत में स्थित राजबुंगा किले के पास बाबा नागनाथ की समाधि बनवायी वहीं पर "नागनाथ मंदिर" की स्थापना की।

(38) प्रताप चंद 
(39) तारा चंद
(40) मानिकचंद 
(41) कल्याण चंद 
(42) पूर्ण चंद
(43) भीष्म चंद

1506 से 1545 के बीच यह सभी एक के बाद एक राजा बने। और इनका भी नाम के अलावा अन्य कार्य और राज्य विस्तार का वर्णन नहीं मिलता है। लेकिन इसमें एक विशेष घटना घटी ।भीष्म चंद के द्वारा चंपावत से अल्मोड़ा राजधानी हस्तांतरित करने की योजना बनाई। और कुछ समय पश्चात ही अल्मोड़ा में "खगमरा किला" का निर्माण कराया। भीष्म चंद ने शूरवंश के विद्रोही सेनानायक खास खां को संरक्षण प्रदान किया था।

(44वां) बालों कल्याण चंद (1545-1565 ईसवी)

बालों कल्याण चंद भीष्म चंद का गोद लिया पुत्र था। कल्याण चंद चंपावत से समस्त कर्मचारियों को अल्मोड़ा ले आया और पूर्ण रूप से बालों कल्याण चंद ने आलमनगर (अल्मोड़ा) को राजधानी बनाई । आलमनगर अल्मोड़ा का प्राचीन नाम है।
कल्याण चंद्र का विवाह डोटी के मल्ल वंश की राजकुमारी के साथ हुआ और विवाह के बाद रैका का राजा हरिमल्ल ने अपनी बहन को दान स्वरूप सोर प्रांत दिया । लेकिन कल्याण चंद सीर प्रांत को भी चाहते थे। इसने मणकोटि राज्य, गंगोली व दानपुर को भी चंद राज्य में मिला लिया। और साम्राज्य का विस्तार किया। कल्याण चंद्र ने अल्मोड़ा में "लालमंडी किले" का निर्माण करवाया। इसी ने अपने शासनकाल के दौरान "स्थानीय स्वशासन" अर्थात पंचायती व्यवस्था लागू की।

साक्ष्य :- कलपानी गाड़ ताम्रपत्र (पिथौरागढ़)

(45वां) रूद्र चंद (1565-1597 ईसवी )

बालों कल्याण चंद के पश्चात रुद्र चंद गद्दी पर बैठा। रूद्र चंद मुगल बादशाह अकबर के समकालीन था । अकबरनामा के अनुसार रुद्र चंद की 1588 ईस्वी में अकबर से लाहौर में भेंट हुई। रुद्र प्रारंभ में एक स्वतंत्र शासक था। लेकिन जब अकबर उत्तर में हिमालय के राज्यों पर विजय अभियान पर निकला तो 1587 ईस्वी में रुद्र चंद्र ने अकबर की बड़ी सेना को देखकर अधीनता स्वीकार कर ली। अकबर की विशाल और कुशल सेना देख कर उसे ज्ञात हुआ कि एक अच्छी सेना से कोई भी जंग जीती जा सकती है । और लंबे समय तक शासन स्थापित किया जा सकता है । परिणामस्वरूप रूद्रचंद ने भी "मिलिट्री कैंप" की स्थापना की ।                   

                रुद्र चंद ने सीरगढ के किले पर 7 बार आक्रमण किया। रुद्र चंद का प्रमुख सेनापति "पुरुषोत्तम पंत" था। सेनापति पुरुषोत्तम पंत की सहायता से 1581 ईस्वी में सीरगढ़ का किला जीता और अपने पिता की इच्छा पूरी की । सीरा विजय के बाद अस्कोट , दारमा , व जोहार रूद्र चंद के अधीन हो गए थे। सीरा से रुद्र चंद के भूमि संबंधी दस्तावेज भी प्राप्त हुए हैं। उसके समय में हुसैन खां ने तराई पर कब्जा कर लिया था। रूद्रचंद ने हुसैन खां को पराजित करके तराई पर आधुनिक शहर रुद्रपुर की स्थापना की। और वहीं पर पास में अटरिया मंदिर का निर्माण कराया । जीतने की खुशी में अकबर को तिब्बती याक,  कस्तूरी हिरणों की खालें भेंट की। अकबर भी उसकी भेंट से खुश होकर रुद्र चंद को "84 माल परगना" का फरमान दे दिया । जिस कारण रूद्र चंद्र को "जमींदर" कहना प्रारंभ कर दिया गया । रुद्रपुर शहर का इतिहास


रुद्र चंद्र के कार्य एवं सुधार

 उसने राज्य व्यवस्था में अनेक सुधार किए अल्मोड़ा में "मल्ला महल" बनवाया ।  रूद्र चंद ने थल के राम गंगा तट पर 1590 ईस्वी में भव्य शिव मंदिर की स्थापना की और "धर्म-निर्णय" नामक पुस्तक संकलन  करवाया। इसमें ब्राह्मणों के गोत्र व उनके पारस्परिक संबंधों का अंकन किया गया था। इसने गढ़वाल के सरोला ब्राह्मणों की भांति कुमाऊं में चौथानी ब्राह्मणों की मंडली बनवाई व चैथानी ब्राह्मणों के नीचे पचबिडिये या तिथानी व उनके नीचे वाले हलिए या पितलिए ब्राह्मणों के वर्ग स्थापित किए। इसके साथ ही रूद्र चंद ने "ययाति चरित्र" नामक नाटक की रचना की
                रूद्र चंद ने समाज को विभिन्न वर्गों को निम्न पदों में विभाजित किया । गुरु, पुरोहित , वैद्य , पौराणिक सईस, राजकोली , पहरी,  बाजदार, बजनिया , टम्टा आदि। इसके अलावा ओले पड़ने पर थाली बजाकर सभी को सतर्क करने वाले ओली ब्राह्मणों का वर्ग बनाया। इसके अलावा राज्यकीय खर्चे पर युवाओं को संस्कृत शिक्षा प्राप्त करने के लिए बनारस व कश्मीर भेजा। चंद के समय भूमि के मालिक को 'थातवान' कहते थे। 

(46वां) लक्ष्मीचंद - (1597-1616 ईसवी)

रुद्र चंद के बाद 1597 ईस्वी में उसका पुत्र लक्ष्मीचंद गद्दी पर बैठा । सीरा से प्राप्त चंदों की वंशावली में लछिमन चंद,  मूनाकोट ताम्रपत्र में लछिमन चंद तथा "मानोदय काव्य" में लक्ष्मण कहा गया है। इसके अलावा "लखुली विराली" के उपनाम से जाना जाता है।
               लख्मीचंद का बड़ा भाई शक्ति गोसाई था। जो जन्म से अंधा था। जिस कारण प्रशासन की राज्य-व्यवस्था लक्ष्मीचंद संभालता था। इसने भी साम्राज्य में विस्तार किया । लक्ष्मी चंद के सेनापति का नाम गैंडा सिंह था।  इसने सबसे पहले शौका समुदाय के अधिकार व कर्तव्य निर्धारित किए। साथ ही नए सिरे से दारमा घाटी की व्यवस्था की।

लक्ष्मी चंद के कार्य


लक्ष्मीचंद एक बड़ा निर्माता था । लक्ष्मीचंद के कार्य को देखकर  यह कहा जा सकता है कि चंद वंश के साम्राज्य को सुव्यवस्थित करने के लिए सर्वाधिक कार्य लक्ष्मीचंद ने कराए।

कृषि-व्यवस्था

चंदों की नई राजधानी अल्मोड़ा में भूमि-बंदोबस्ती कार्यालय की स्थापना की। भूमि पर अनेक प्रकार के कर लगाए जैसे -ज्यूलिया,  सिरती , बैकर , रचता, कूच, बात,   नेगि,  साऊ, रतगलि, कनक, बखरिया, सीकदार,  नेगी आदि। पर्यावरण की ओर ध्यान देते हुए बड़े-बड़े बगीचे लगवाए। नरसिंह बाड़ी,  पांडे खोला , कबीना तथा लक्ष्मीश्वर।

न्याय व्यवस्था

लक्ष्मीचंद ने न्याय व्यवस्था पर विशेष ध्यान दिया और न्याय के लिए अलग-अलग  कचहरियां बनवाई।
(1) न्योवाली कचहरी - जनता के न्याय के लिए
(2) बिष्टाली कचहरी - सैनिकों मामलों के लिए

प्रशासन व्यवस्था

राज्य के कर्मचारियों को तीन श्रेणियों में बांटा :-
  1. सरदार - जो परगने का शासक होता था।
  2. फौजदार - यह सेना का अधिकारी होता था।
  3. नेगी - राज्य के छोटे कर्मचारी होते थे।
नागरिक प्रशासन इन्हीं तीनों के हाथों में था।

धार्मिक व सांस्कृतिक व्यवस्था

लक्ष्मीचंद धार्मिक विचार का व्यक्ति था। धर्म व संस्कृति को बनाए रखने के लिए यत्र-तत्र  मंदिर बनवाए , पुराने जीर्ण-शीर्ण मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया । साथ ही लक्ष्मी चंद ने बागेश्वर के बागनाथ मंदिर का 1602 ईसवी में जीर्णोद्धार  कराया।

साक्ष्य :- 

मानोदय काव्य - भरत कवि द्वारा रचित मनोदय काव्य में लक्ष्मीचंद का नाम लक्ष्मण मिलता है।
मूनाकोट ताम्रपत्र - मूनाकोट ताम्रपत्र में लक्ष्मीचंद का नाम लक्ष्मण मिलता है। मूनाकोट ताम्रपात्र (पिथौरागढ़) चंद राजाओं के करों से संबंधित है।

चंद वंश से संबंधित प्रश्न

(1) चंद राजवंश की प्रारंभिक राजधानी कहां थी ?
(a) आलमनगर
(b) चंपावत
(c) कन्नौज
(d) झूसी ( इलाहाबाद)

(2) किस शासक ने राजकीय  खर्चे पर युवाओं को  संस्कृत शिक्षा प्राप्त करने के लिए बनारस व कश्मीर भेजा ?
(a) रुद्र चंद
(b) सोमचंद
(c) बाज बहादुर चंद
(d) भीष्म चंद

(3) "लखुली विराली" किस चंद  का शासक उपनाम  है ?
(a) कल्याण चंद
(b) लक्ष्मीचंद
(c) सोमचंद
(d) जगत चंद

(4) थल के राम गंगा तट पर 1590 ईस्वी में किस शासक ने भव्य शिव मंदिर की स्थापना की ?
(a) कीर्ति चंद
(b) रत्नचंद
(c) रूद्र चंद
(d) कल्याण चंद

(5) किस शासक ने पूर्ण रूप से राजधानी चंपावत से आलमनगर स्थापित की ?
(a) रूद्र चंद
(b) बालों कल्याण चंद
(c) गरुण ज्ञानचंद
(d) लक्ष्मीचंद

(6) चंद्र राजवंश प्रथम शासक सोमचंद कहां का रहने वाला था
(a) आलमनगर
(b) चंपावत
(c) डोटी नेपाल
(d) झूंसी इलाहाबाद

(7) अल्मोड़ा में 'मल्ला महल' किसने बनबाया था ?
(a) रूद्र चंद
(b) कल्याण चंद बहादुर
(c) गरुण ज्ञानचंद
(d) लक्ष्मीचंद

 (8) रेशम उत्पादन व उससे रेशमी वस्त्र बनाने का कार्य कुमाऊं में किस शासक द्वारा प्रारंभ किया गया ?
(a) विक्रम चंद
(b) इंद्र चंद
(c) महेंद्र चंद
(d) पूर्ण चंद

(9) न्याय के लिए "न्योवाली व बिष्टाली कचहरी" की शुरुआत किस शासक ने की थी ?
(a) प्रताप चंद
(b) लक्ष्मी चन्द
(c) गरुण ज्ञानचंद
(d) भीष्म चंद

(10) "धर्म-निर्णय" नामक पुस्तक का संकलन किसके द्वारा करवाया गया था ?
(a) रुद्र चंद
(b) गरुण ज्ञानचंद
(c) बाज बहादुर चंद
(d) भीष्म चंद

(11) निम्न में से किस शासक ने "लालमंडी किले" का निर्माण कराया?
(a) रुद्र चंद
(b) गरुण ज्ञानचंद
(c) बालों कल्याण चंद
(d) भीष्म चंद

(12) चंपावत में स्थित 'नागनाथ मंदिर' का निर्माण किसने करवाया?
(a) रुद्र चंद
(b) गरुण ज्ञानचंद
(c) बाज बहादुर चंद
(d) कीर्ति चंद

(13) 'ज्यूलिया व सिरती कर' किस शासक द्वारा लगाए गए थे ?
(a) रुद्र चंद
(b) लक्ष्मी चन्द
(c) बाज बहादुर चंद
(d) सोम चंद

(14) निम्नलिखित में से रूद्र चंद के सेनापति थे ?
(a) हिरूदेऊबा
(b) पुरूषोत्तम पंत
(c) गेंडा सिंह
(d) खतड़ सिंह

(15) निम्नलिखित में से किस शासक ने बागेश्वर में स्थित बाघनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था?
(a) जगत चंद
(b) गरुण ज्ञानचंद
(c) बाज बहादुर चंद
(d) लक्ष्मी चन्द



Answer :- (1)b, (2)a, (3)b, (4)c, (5)b, (6)d, (7)a,  (8)b, (9)b, (10)a, (11)c, (12)d, (13)b, (14)b, (15)d

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ब्रिटिश कुमाऊं कमिश्नर : उत्तराखंड

ब्रिटिश कुमाऊं कमिश्नर उत्तराखंड 1815 में गोरखों को पराजित करने के पश्चात उत्तराखंड में ईस्ट इंडिया कंपनी के माध्यम से ब्रिटिश शासन प्रारंभ हुआ। उत्तराखंड में अंग्रेजों की विजय के बाद कुमाऊं पर ब्रिटिश सरकार का शासन स्थापित हो गया और गढ़वाल मंडल को दो भागों में विभाजित किया गया। ब्रिटिश गढ़वाल और टिहरी गढ़वाल। अंग्रेजों ने अलकनंदा नदी का पश्चिमी भू-भाग पर परमार वंश के 55वें शासक सुदर्शन शाह को दे दिया। जहां सुदर्शन शाह ने टिहरी को नई राजधानी बनाकर टिहरी वंश की स्थापना की । वहीं दूसरी तरफ अलकनंदा नदी के पूर्वी भू-भाग पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया। जिसे अंग्रेजों ने ब्रिटिश गढ़वाल नाम दिया। उत्तराखंड में ब्रिटिश शासन - 1815 ब्रिटिश सरकार कुमाऊं के भू-राजनीतिक महत्व को देखते हुए 1815 में कुमाऊं पर गैर-विनियमित क्षेत्र के रूप में शासन स्थापित किया अर्थात इस क्षेत्र में बंगाल प्रेसिडेंसी के अधिनियम पूर्ण रुप से लागू नहीं किए गए। कुछ को आंशिक रूप से प्रभावी किया गया तथा लेकिन अधिकांश नियम स्थानीय अधिकारियों को अपनी सुविधानुसार प्रभावी करने की अनुमति दी गई। गैर-विनियमित प्रांतों के जिला प्रमु

परमार वंश - उत्तराखंड का इतिहास (भाग -1)

उत्तराखंड का इतिहास History of Uttarakhand भाग -1 परमार वंश का इतिहास उत्तराखंड में सर्वाधिक विवादित और मतभेद पूर्ण रहा है। जो परमार वंश के इतिहास को कठिन बनाता है परंतु विभिन्न इतिहासकारों की पुस्तकों का गहन विश्लेषण करके तथा पुस्तक उत्तराखंड का राजनैतिक इतिहास (अजय रावत) को मुख्य आधार मानकर परमार वंश के संपूर्ण नोट्स प्रस्तुत लेख में तैयार किए गए हैं। उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में 688 ईसवी से 1947 ईसवी तक शासकों ने शासन किया है (बैकेट के अनुसार)।  गढ़वाल में परमार वंश का शासन सबसे अधिक रहा।   जिसमें लगभग 12 शासकों का अध्ययन विस्तारपूर्वक दो भागों में विभाजित करके करेंगे और अंत में लेख से संबंधित प्रश्नों का भी अध्ययन करेंगे। परमार वंश (गढ़वाल मंडल) (भाग -1) छठी सदी में हर्षवर्धन की मृत्यु के पश्चात संपूर्ण उत्तर भारत में भारी उथल-पुथल हुई । देश में कहीं भी कोई बड़ी महाशक्ति नहीं बची थी । जो सभी प्रांतों पर नियंत्रण स्थापित कर सके। बड़े-बड़े जनपदों के साथ छोटे-छोटे प्रांत भी स्वतंत्रता की घोषणा करने लगे। कन्नौज से सुदूर उत्तर में स्थित उत्तराखंड की पहाड़ियों में भी कुछ ऐसा ही हुआ। उत्

उत्तराखंड में भूमि बंदोबस्त का इतिहास

  भूमि बंदोबस्त व्यवस्था         उत्तराखंड का इतिहास भूमि बंदोबस्त आवश्यकता क्यों ? जब देश में उद्योगों का विकास नहीं हुआ था तो समस्त अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर थी। उस समय राजा को सर्वाधिक कर की प्राप्ति कृषि से होती थी। अतः भू राजस्व आय प्राप्त करने के लिए भूमि बंदोबस्त व्यवस्था लागू की जाती थी । दरअसल जब भी कोई राजवंश का अंत होता है तब एक नया राजवंश नयी बंदोबस्ती लाता है।  हालांकि ब्रिटिश शासन से पहले सभी शासकों ने मनुस्मृति में उल्लेखित भूमि बंदोबस्त व्यवस्था का प्रयोग किया था । ब्रिटिश काल के प्रारंभिक समय में पहला भूमि बंदोबस्त 1815 में लाया गया। तब से लेकर अब तक कुल 12 भूमि बंदोबस्त उत्तराखंड में हो चुके हैं। हालांकि गोरखाओ द्वारा सन 1812 में भी भूमि बंदोबस्त का कार्य किया गया था। लेकिन गोरखाओं द्वारा लागू बन्दोबस्त को अंग्रेजों ने स्वीकार नहीं किया। ब्रिटिश काल में भूमि को कुमाऊं में थात कहा जाता था। और कृषक को थातवान कहा जाता था। जहां पूरे भारत में स्थायी बंदोबस्त, रैयतवाड़ी बंदोबस्त और महालवाड़ी बंदोबस्त व्यवस्था लागू थी। वही ब्रिटिश अधिकारियों ने कुमाऊं के भू-राजनैतिक महत्

चंद राजवंश : उत्तराखंड का इतिहास

चंद राजवंश का इतिहास पृष्ठभूमि उत्तराखंड में कुणिंद और परमार वंश के बाद सबसे लंबे समय तक शासन करने वाला राजवंश है।  चंद वंश की स्थापना सोमचंद ने 1025 ईसवी के आसपास की थी। वैसे तो तिथियां अभी तक विवादित हैं। लेकिन कत्यूरी वंश के समय आदि गुरु शंकराचार्य  का उत्तराखंड में आगमन हुआ और उसके बाद कन्नौज में महमूद गजनवी के आक्रमण से ज्ञात होता है कि तो लगभग 1025 ईसवी में सोमचंद ने चंपावत में चंद वंश की स्थापना की है। विभिन्न इतिहासकारों ने विभिन्न मत दिए हैं। सवाल यह है कि किसे सच माना जाए ? उत्तराखंड के इतिहास में अजय रावत जी के द्वारा उत्तराखंड की सभी पुस्तकों का विश्लेषण किया गया है। उनके द्वारा दिए गए निष्कर्ष के आधार पर यह कहा जा सकता है । उपयुक्त दिए गए सभी नोट्स प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से सर्वोत्तम उचित है। चंद राजवंश का इतिहास चंद्रवंशी सोमचंद ने उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में लगभग 900 वर्षों तक शासन किया है । जिसमें 60 से अधिक राजाओं का वर्णन है । अब यदि आप सभी राजाओं का अध्ययन करते हैं तो मुमकिन नहीं है कि सभी को याद कर सकें । और अधिकांश राजा ऐसे हैं । जिनका केवल नाम पता है । उनक

भारत की जनगणना 2011 से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न (भाग -01)

भारत की जनगणना 2011 मित्रों वर्तमान परीक्षाओं को पास करने के लिए रखने से बात नहीं बनेगी अब चाहे वह इतिहास भूगोल हो या हमारे भारत की जनगणना हो अगर हम रटते हैं तो बहुत सारे तथ्यों को रटना पड़ेगा जिनको याद रखना संभव नहीं है कोशिश कीजिए समझ लीजिए और एक दूसरे से रिलेट कीजिए। आज हम 2011 की जनगणना के सभी तथ्यों को समझाने की कोशिश करेंगे। यहां प्रत्येक बिन्दु का भौगोलिक कारण उल्लेख करना संभव नहीं है। इसलिए जब आप भारत की जनगणना के नोट्स तैयार करें तो भौगोलिक कारणों पर विचार अवश्य करें जैसे अगर किसी की जनसंख्या अधिक है तो क्यों है ?, अगर किसी की साक्षरता दर अधिक है तो क्यों है? अगर आप इस तरह करेंगे तो शत-प्रतिशत है कि आप लंबे समय तक इन चीजों को याद रख पाएंगे साथ ही उनसे संबंधित अन्य तथ्य को भी आपको याद रख सकेंगे ।  भारत की जनगणना (भाग -01) वर्ष 2011 में भारत की 15वीं जनगणना की गई थी। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत का कुल क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग किलोमीटर था तथा भारत की कुल आबादी 121,08,54,922 (121 करोड़) थी। जिसमें पुरुषों की जनसंख्या 62.32 करोड़ एवं महिलाओं की 51.47 करोड़ थी। जनसंख्या की दृष्टि

उत्तराखंड की जनजातियों से संबंधित प्रश्न (उत्तराखंड प्रश्नोत्तरी -14)

उत्तराखंड प्रश्नोत्तरी -14 उत्तराखंड की प्रमुख जनजातियां वर्ष 1965 में केंद्र सरकार ने जनजातियों की पहचान के लिए लोकर समिति का गठन किया। लोकर समिति की सिफारिश पर 1967 में उत्तराखंड की 5 जनजातियों थारू, जौनसारी, भोटिया, बोक्सा, और राजी को एसटी (ST) का दर्जा मिला । राज्य की मात्र 2 जनजातियों को आदिम जनजाति का दर्जा प्राप्त है । सर्वप्रथम राज्य की राजी जनजाति को आदिम जनजाति का दर्जा मिला। बोक्सा जनजाति को 1981 में आदिम जनजाति का दर्जा प्राप्त हुआ था । राज्य में सर्वाधिक आबादी थारू जनजाति तथा सबसे कम आबादी राज्यों की रहती है। 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य की कुल एसटी आबादी 2,91,903 है। जुलाई 2001 से राज्य सेवाओं में अनुसूचित जन जातियों को 4% आरक्षण प्राप्त है। उत्तराखंड की जनजातियों से संबंधित प्रश्न विशेष सूचना :- लेख में दिए गए अधिकांश प्रश्न समूह-ग की पुरानी परीक्षाओं में पूछे गए हैं। और कुछ प्रश्न वर्तमान परीक्षाओं को देखते हुए उत्तराखंड की जनजातियों से संबंधित 25+ प्रश्न तैयार किए गए हैं। जो आगामी परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण साबित होंगे। बता दें की उत्तराखंड के 40 प्रश्नों में से 2

उत्तराखंड की प्रमुख योजनाएं

उत्तराखंड की प्रमुख योजनाऐं उत्तराखंड की टॉप 10 सबसे महत्वपूर्ण योजना उपयुक्त लेख में उत्तराखंड की प्रमुख योजनाओं की व्याख्या की गई है। जो उत्तराखंड की आगामी परीक्षाओं के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण साबित हो सकती हैं। अतः लेख को अन्त तक जरूर पढ़ें व उनसे संबंधित प्रश्नों के उत्तर दें ।  (1) मुख्यमंत्री आंचल अमृत योजना उत्तराखंड में महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा संचालित ‘मुख्यमंत्री आँचल अमृत योजना’ का शुभारंभ 7 मार्च 2019 को किया गया। हाल ही में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने देहरादून में आयोजित एक कार्यक्रम में प्रतिभाग करते हुए ‘मुख्यमंत्री आँचल अमृत योजना’ का पुन: शुभारंभ किया। मुख्यमंत्री ने 11 बच्चों को दूध वितरित कर योजना का शुभारंभ किया। जिस कारण यह योजना प्रतियोगी परीक्षा की दृष्टि से अत्यधिक हो जाती है। उद्देश्य मुख्यमंत्री ने कहा कि योजना का पुन: शुभारंभ होने से बच्चों के विकास एवं उन्हें पर्याप्त पोषण मिलने में बड़ी मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार माँ का आँचल बच्चे का धूपछाँव से बचाव करता है, उसी प्रकार ‘आँचल अमृत योजना’ बच्चों में कुपोषण को द