कत्यूरी राजवंश का इतिहास
(भाग - 2)
कत्यूरी राजवंश का भौगोलिक विस्तार
कत्यूरी राजवंश की प्रारंभिक राजधानी जोशीमठ ( चमोली ) में थी। कत्यूरी नरेशों का राज्य चमोली के पश्चिम में सतलुज नदी के तट से लेकर दक्षिण के मैदान तक फैला था। पूरब में भारत तिब्बत की सीमा पर कुछ गांव तक सीमित था। वर्तमान काशीपुर, पीलीभीत और संपूर्ण रूहेलखंड उनके शासन के अंतर्गत आते थे।
राजनैतिक व्यवस्था
मौर्य वंश की भांति ही कत्यूरी नरेश ने प्रशासन व्यवस्था बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण पद नियुक्त किए थे।
- राजा ने सीमाओं की सुरक्षा के लिए प्रांतपाल नियुक्त किया था। ताकि बाहरी आक्रमणों से सुरक्षा मिल सके। और सीमाओं में होने वाली गतिविधियों की सूचना अति शीघ्र प्राप्त हो ।
- जैसे कि कत्यूरी राजवंश ने पहाड़ों पर शासन व्यवस्था स्थापित की थी। तो जरूरी था उसके क्षेत्र में सभी पहाड़ों की रक्षा की जाए । इसके लिए प्रत्येक पहाड़ पर घटृपाल नियुक्त किए थे ।
- इसके अलावा सड़क परिवहन की सुविधाएं बनाए रखने के लिए वर्मपाल पद स्थापित किया । वर्मपाल सीमावर्ती मार्गो से आने-जाने वाले प्रत्येक व्यक्ति पर कड़ी निगाह रखता था ।
प्रशासनिक व्यवस्था
कत्यूरी राजाओं की उपाधि रजबार थी। राजा राज्य में सर्वोपरि शासक होता था। और सुव्यवस्थित राज्य को चलाने के लिए "उपरिक" नियुक्त करता था। (उपरिक अर्थात वर्तमान समय के राज्यपाल ) । जनपद को प्रांतों में विभाजित किया गया था। और प्रांतों को जिलों में जिन्हें विषय कहा जाता था। विषय के संचालक को विषयपति कहते थे। कत्यूरी शासन को पांच विषयों (ज़िलों) में विभाजित किया गया था।
- कार्तिकेयपुर विषय - चमोली जिले वाला क्षेत्र
- टंकणपुर विषय - अलकनंदा भागीरथी संगम से उत्तर वाला क्षेत्र
- अंतरराग विषय - भागीरथी तथा अलकनंदा के मध्यवर्ती वाला क्षेत्र
- एशाल विषय - भागीरथी तथा यमुना वाला क्षेत्र
- मायापुरहाट - हरिद्वार के निकटवर्ती भाबर क्षेत्र
कत्यूरी प्रशासन में तहसील स्तर की प्रशासनिक इकाई को "कर्मांत" कहा जाता था।
पांडुकेश्वर दान पत्र तथा सुभिक्षराज लेख के अनुसार कत्यूरी वंश के प्रशासनिक संरचना के तहत् तहसील स्तर की प्रशासनिक इकाई को 'कर्मांत' कहा जाता था । कत्यूरी शासन में प्रांतों को विषयों (जिलों) में विभाजित किया गया था। विषयों को प्रशासनिक दृष्टि से छोटी इकाइयां कर्मांत में विभाजित किया गया था। कत्यूरी अभिलेखों एवं ताम्रपत्रों में प्रशासनिक संरचना तथा अधिकारियों का उल्लेख मिलता है।
पुलिस व्यवस्था
किसी भी राज्य व शासक को शांति एवं सुव्यवस्था बनाए रखने के लिए एक पुलिस विभाग बनाना ही पड़ता है। ऐसे ही सुव्यवस्था कत्यूरी के ताम्रपत्रों में उल्लेख है जिसमें विभाग के अधिकारियों का नाम और पद लिखा है।
दांण्डिक (खडि्ग़क) - राज्य तथा जनता की सुरक्षा का दायित्व
दोषापराधिक - अपराधियों को पकड़ने वाला (दरोगा)
चोरोद्धरणिक - चोर डाकू को पकड़ने वाला सिपाही
दुःसाध्यसाधनिक - गुप्तचर विभाग
दण्डपाशिक या महादण्डनायक - पुलिस विभाग के प्रमुख एवं सर्वोच्च अधिकारी
सैन्य व्यवस्था
कत्यूरी वीर वाहिनी अपने शौर्य व सफलताओं के लिए जग - प्रसिद्ध थे। इसी के बल पर 300 से अधिक वर्षों तक उत्तराखंड पर शासन किया। इसका मुख्य श्रेय सेना को जाता है । सेना को चार भागों में विभाजित किया था
- पदातिक - पैदल सैनिकों के सर्वोच्च अधिकारी को "गोल्मिक" कहा जाता था।
- अश्वारोही - अश्वों की सेना के सर्वोच्च अधिकारी को "अश्बबलाधिकृत" कहा जाता था।
- गजारोही - हाथियों की सेना के सर्वोच्च अधिकारी को "हस्तीबलाधिकृत" कहते थे।
- उष्ट्रारोही - ऊंटों की सेना के सर्वोच्च अधिकारी को "उष्ट्राबलाधिकृृत" कहते थे।
आर्थिक स्थिति
कर व्यवस्था
किसी भी राज्य की आय का मुख्य साधन कर होता है। कत्यूरी शासकों ने आय प्राप्त करने के लिए नरपति पद की नियुक्ति की थी । "नरपति" सीमा पर कर की वसूली करता था। अजनबी लोगों की जांच पड़ताल करता था। इसके अतिरिक्त "भोगपति" व "शौल्किक" नामक अधिकारी राज्य के अंदर शुल्क व कर वसूला करते थे।
कृषि व्यवस्था
कृषि की उन्नति का उत्थान के लिए क्षेत्रपाल के पद की नियुक्ति की गई थी जिसका कार्य वर्तमान पटवारी के रूप में होता था। भूमिका मापना और सहायता प्राप्त करना आदि कार्य क्षेत्रपाल करता थाा। कत्यूरी शासन में द्रोणाबापम (पाथा) व नालीबापम (२ सेेेर) भूमि का उल्लेख हैै। आज भी उत्तराखंड में द्रोणबापम और नाली पाथा का प्रयोग करते हैं।
खनिज वन संपदा
पहाड़ों में सबसे बड़ी संपत्ति खनिज और वन संपदा को माना जाता है। खनिज व वनों की रक्षा के लिए खण्डपति (खण्डरक्षास्थाधिपति) की पद व्यवस्था की गयी थी। इसके अतिरिक्त उद्योग व व्यापार की देखरेख भी इसी को प्रदान की गई।
धार्मिक एवं सांस्कृतिक व्यवस्था
कत्यूरी राजवंश की प्रमुख भाषा संस्कृत थी । जबकि आम बोलचाल की भाषा पाली थी। कत्यूरी राज्य में अधिकांश हिंदू धर्म के अनुयायी थे। और कुछ क्षेत्रों में बौद्ध धर्म और जैन धर्म के लोग बसे हुए थे। कत्यूरी शासन के अंतर्गत बौद्ध तथा जैन मतावलंबियों को अपने मत के अनुसरण की एवं प्रचार की पूर्ण अनुमति दी। कत्यूरी भगवान शिव के उपासक थे। कत्यूरी वंश का शासक ललितसूरदेव कट्टर ब्राह्मण धर्मावलंबी था। कत्यूरी शासकों ने साम्राज्य विस्तार के साथ स्थापत्य कला पर विशेष ध्यान दिया। और अनेकों मंदिर एक विशेष शैली से बनवाए । जिसे इतिहास में कत्यूरी शैली के नाम से जाना गया। प्रारंभिक समय में कत्यूरी शैली को नागर शैली कहा गया।
- नरसिंह मंदिर (जोशीमठ) -- वसंतनदेव द्वारा - कत्यूर शैली
- जागेश्वर धाम (अल्मोड़ा) नटराज मंदिर , दुर्गा मंदिर, लकुलिश मंदिर और महेशमंदिनी मंदिर --- इष्टगणदेव द्वारा - कत्यूर शैली
- बैजनाथ मंदिर (बागेश्वर) - भू-देव द्वारा - नागर शैली/कत्यूर शैली
- कटारमल सूर्य मंदिर (अल्मोड़ा) - कटारमल देव (उत्तरवर्ती कत्यूर शासक)
आज भी उत्तराखंड के पोखरी, सुकोलो, बोनी, रुमा, बोहरा गांव, (ताडी़खेत) , धनियाकोट आदि गांवों में कत्यूरी के वंशज निवास करते हैं ।
कत्यूर राजवंश से संबंधित प्रश्न
(b) पदातिक
(c) गजारोही
(d) उष्ट्रारोही
(5) कत्यूरी राजवंश में "भोगपति" व "शौल्किक" का क्या कार्य होता था ?
(b) गुप्त सूचनाओं का पता लगाना ।
(c) कर वसूलना ।
(d) पहाड़ों की रक्षा करना।
Bahut badiya...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंBahut sundar
जवाब देंहटाएंChand vansh pr bhi notes bnaa dijiye
जवाब देंहटाएंAns key nhi h isme
जवाब देंहटाएंअब कर दी upload answer key ...dekh lijiye
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