श्यामलाताल : विवेकानंद आश्रम की मनमोहक शांति हिमालय की गोद में बसा विवेकानंद आश्रम, श्यामलाताल, उत्तराखंड के चम्पावत जिले का एक ऐसा रत्न है, जो प्रकृति और आध्यात्मिकता का अनूठा संगम प्रस्तुत करता है। समुद्र तल से लगभग 5,000 फीट की ऊँचाई पर स्थित यह स्थल अपने आलौकिक सौंदर्य और शांति से हर किसी का मन मोह लेता है। यहाँ से टनकपुर-वनबसा और शारदा नदी घाटी के मनोरम दृश्यों के साथ-साथ नंदादेवी, पंचाचूली और नंदकोट जैसी बर्फीली चोटियों का लुभावना नजारा देखने को मिलता है, जो आत्मा को सुकून और आँखों को तृप्ति देता है। श्यामलाताल : एक झील का जादू आश्रम के ठीक निकट एक छोटी, परंतु अत्यंत आकर्षक झील है, जिसे श्यामलाताल के नाम से जाना जाता है। इस झील की लंबाई लगभग 500 मीटर और चौड़ाई 200 मीटर है। इसका गहरा श्याम वर्ण वाला जल इतना मनमोहक है कि स्वामी विवेकानंद ने स्वयं इसे 'श्यामलाताल' नाम दिया। झील के शांत जल में आसपास की हरी-भरी पहाड़ियों और नीले आकाश की छवि ऐसी दिखती है, मानो प्रकृति ने स्वयं एक कैनवास पर चित्र उकेरा हो। कैसे पहुँचें? विवेकानंद आश्रम, चम्पावत जिला मुख्यालय से लगभग 45 किलोमीटर ...
काव्य संग्रह किसान ही भविष्य हैं। किसान ही भविष्य होते हैं, चीर कर धरती का जिगर जब वो अनाज बोते हैं , जो बैठे हैंं इंसाफ करने को , वो तो महलों में सोते हैं , वर्षा हो या धूप कड़ी , वो फिर भी पौधे रोपते हैं, जुल्मों से जी ना भरा तो , कानून पर कानून थोपते हैं। सींचा है - जिसने भारत को, वो आज भी क्यों रोते हैं ? किसान ना चाहे शोर शराबा, फिर क्यों आंदोलन होते हैं ? उन्हें क्या मालूम ? कैसे-खेती, कैसे-खेत होते हैं ? कभी पैर रखोगे जमीं पर तब एहसास होगा , किसान कितना कुछ सहते हैंं? दलालों के आगे झुक गई हैै सत्ता , उद्योगपति ही दौलत ढोते हैं। किसान तो खिलौना है माटी का, वो तो माटी में बोते हैं। संकट आए कुटुंब पर, किसान ही हमेशा खोते हैं , घर आज भी खाली हैं उनके , सिर्फ़ वही हक से वंचित रहते हैं। क्यों भूल जाती है सरकारें ? किसान ही भविष्य होते हैं। किसान ही भविष्य हैं काव्य संग्रह जब ख्वाब पूरे होते हैं। सुकून मिलता है ना, जब ख्वाब पूरे होते हैं। जो बैठे थे - उपहास करने को वही सफलता पर हम...