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उत्तराखंड करेंट अफेयर्स 2024

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केन्द्रीय बजट 2023-24 (भाग -01)

केंद्रीय बजट 2023-24

केंद्रीय बजट 2023-24 प्रारंभिक परीक्षा के लिए अति महत्वपूर्ण है इसलिए भाग -01 में प्रारंभिक परीक्षा को ध्यान में रखकर नोट्स तैयार किए गए हैं


Union budget 2023-24

किसी भी अर्थव्यवस्था में सरकार के आगामी वर्ष के आय और व्यय के ब्यौरे को बजट कहते हैं । "बजट" फ्रांसीसी शब्द 'बुगे' से बना है जिसका अर्थ "चमड़े का बैग" होता है। 
अर्थशास्त्र की भाषा में कहें तो "एक वित्तीय वर्ष में अनुमानित प्राप्तियां और व्यय का विवरण बजट कहलाता है"।

बजट की शुरुआत

  • भारत में पहला बजट 'जेम्स विल्सन' ने 18 फरवरी 1860 को पेश किया था इसलिए उन्हें भारतीय बजट का संस्थापक भी कहते हैं। 
  • आजादी के पहले अंतरिम सरकार का बजट 'लियाकत अली खान' ने पेश किया था। 
  • आजाद भारत का पहला बजट तत्कालीन वित्त मंत्री षणमुखम चेट्टी ने 26 नवंबर 1947 को पेश किया।
  • गणतंत्र भारत का पहला बजट 1950 में जॉन मथाई ने पेश किया।
  • सर्वाधिक आम बजट पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय मोरारजी देसाई ने 10 बार पेश किया। 
  • भारत में बजट पेश करने वाली पहली महिला इंदिरा गांधी (कार्यवाहक वित्त मंत्री के रूप में) थी। जबकि पहली पूर्णकालिक एवं सर्वाधिक बार भारत का बजट पेश करने वाली महिला निर्मला सीतारमण है।
  • बजट में एकवर्थ कमेटी के सुझाव पर रेल बजट को 1924 में आम बजट से अलग कर दिया गया । और भारत सरकार ने 21 सितंबर 2016 को आम बजट के साथ रेल बजट के विलय को मंजूरी दी।
  • 1 फरवरी 2017 में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 92 साल पुरानी प्रथा खत्म करते हुए पहला संयुक्त बजट पेश किया की।
  • वर्ष 2020 में कोरोना महामारी के बाद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए पहला पेपरलेस बजट पेश किया था।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 112 में बजट शब्द के स्थान पर 'वार्षिक वित्तीय विवरण' का उल्लेख मिलता है। भारत का वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल से 31 मार्च तक का होता है। बजट को 'वित्त विधेयक' द्वारा पेश किया जाता है। वित्त विधेयक केवल लोकसभा में ही पेश किया जा सकता है। बजट लोकसभा में पास होने के बाद राज्यसभा के पास स्वीकृति के लिए भेजा जाता है। यदि राज्यसभा इस पर 14 दिन के अंदर स्वीकृति प्रदान नहीं करती है तो बजट को पास मान लिया जाता है और वित्तीय वर्ष की पहली तिथि को बजट में किए गए प्रावधान पूरे देश में लागू कर दिए जाते हैं।

राज्य सरकार द्वारा निर्मित बजट केवल राज्य की सीमाओं तक के लिए मान्य रहता है। बजट में यदि राज्य सरकार और केंद्र सरकार के बजट में विरोधाभास होता है तो केंद्र सरकार के बजट को मान्यता प्रदान की जाती है।

बजट के प्रकार

आय और व्यय के आधार पर बजट के तीन प्रकार होते हैं।
  1. अधिशेष बजट - इस बजट का अभिप्राय ऐसे बजट से है जब किसी विशेष वित्तीय वर्ष में अनुमानित कुल व्यय से अनुमानित कुल आय अधिक होती है। सरल शब्दों में कहें तो वेतन अधिक लेकिन खर्च कम।
  2. संतुलित बजट - इस बजट का अभिप्राय ऐसे बजट से है जब किसी विशेष वित्तीय वर्ष में अनुमानित कुल आय और अनुमानित कुल व्यय बराबर (सन्तुलन) होते हैं। किंतु ऐसा बजट बनाना अत्यधिक मुश्किल होता है।
  3. घाटे का बजट - इस बजट का अभिप्राय ऐसे बजट से है जब किसी विशेष वित्तीय वर्ष में अनुमानित कुल आय से अनुमानित कुल व्यय अधिक होते हैं। सरल शब्दों में कहें तो खर्च अधिक लेकिन वेतन कम।
क्योंकि भारत एक विकासशील देश है इसलिए भारत मुख्यतः घाटे के बजट का प्रयोग करता है। घाटे का बजट भारत जैसे विकासशील देशों के लिए सकारात्मक प्रभाव डालता है जब बजट घाटा एक निश्चित सीमा तक हो। घाटे के बजट का मुख्य केंद्र बिंदु बुनियादी ढांचा, स्वास्थ्य देखभाल, पेंशन कार्यक्रम और अन्य क्षेत्रों में सार्वजनिक परियोजनाओं पर सरकारी खर्च है। यह करों को भी कम कर सकता है और मंदी में रोजगार दर को बढ़ा सकता है। इस बजट में अधिक उधार और ऋण हो सकता है। इसके अलावा भारत में बजट के पांच प्रकार प्रयोग किए जाते हैं।
  1. आम बजट - इस बजट में सरकार की आय और व्यय का लेखा-जोखा होता है। इस बजट में सरकार अगले वित्त वर्ष में किस क्षेत्र में कितना धन धन खर्च करेगी उसका उल्लेख तो करती है लेकिन इस खर्च से क्या क्या परिणाम होंगे उनका ब्यौरा नहीं दिया जाता है।
  2. निष्पादन बजट - इस बजट का मुख्य उद्देश्य सरकार जिन कार्यों को पूरा करना चाहती है। उस पर आधारित होता है इस बजट को उपलब्धि बजट या कार्य पूर्ति बजट भी कहा जाता है यह कार्य के परिणामों के आधार पर बनाया जाता है
  3. जीरो बेस बजट - इस बजट में अनुमान शून्य से प्रारंभ किए जाते हैं तथा गत वर्षों के व्यय संबंधी आंकड़ों को कोई महत्व नहीं दिया जाता है इस बजट प्रणाली में कार्य इस आधार पर प्रारंभ किया जाता है कि अगली अवधि के लिए बजट शून्य है। जीरो बेस बजट को सूर्योस्त बजट भी कहा जाता है। भारत में शून्य आधारित बजट सातवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान वित्त मंत्री वी.पी. सिंह के कार्यकाल में पारित हुआ।
  4. परिणामोन्मुख बजट - यह बजट सभी मंत्रालयों और विभागों के कार्य प्रदर्शन के लिए एक मापक का कार्य करता है जिसे सेवा निर्माण प्रक्रिया कार्यक्रमों के मूल्यांकन और परिणामों को और अधिक बेहतर बनाने में मदद मिलती है। इस बजट की शुरुआत सन 2005 में की गई थी।
  5. जेंडर बजट - इस बजट का मुख्य उद्देश्य महिला विकास और सशक्तिकरण की योजनाओं के लिए राशि सुनिश्चित करना होता है यह महिला और शिशु कल्याण को ध्यान में रखकर बनाया जाता है।

केन्द्रीय बजट 2023-24

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 1 फरवरी को वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए आम बजट पेश किया। बजट का मुख्य उद्देश्य समावेशी विकास और हरित विकास पर केंद्रित है। चालू वित्तीय वर्ष 2022-23 में आर्थिक विकास दर 7% रहने का अनुमान लगाया गया है। जबकि 2023-24 के लिए 6.5% । 

बजटीय भाषण के दौरान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2014 से तुलना करते हुए भारत की प्रति व्यक्ति आय 1.97 लाख रुपए बताया। साथ ही विश्व की 5वीं अर्थव्यवस्था बन गई है।

भारत का कुल बजट 

केंद्रीय बजट 2023-24 में भारत का कुल बजट 45 लाख करोड़ रुपए है। बजट का अर्थ है कि भारत आगामी वर्ष में भारत के निर्माण और विकास के लिए लगभग 45 लाख करोड़ रुपए खर्च करेगा।

बजट के प्रमुख आयाम

बजटीय आय - ₹27.17 लाख करोड़ (उधार को छोड़कर)
बजटीय व्यय - ₹45.03 लाख करोड़ 
राजस्व आय - ₹26.32 लाख करोड़ 
पूंजीगत आय - ₹.84 लाख करोड़ 
राजस्व व्यय - ₹35 लाख करोड़ 
पूंजीगत व्यय - ₹10 लाख करोड़ 
कर राजस्व (शुद्ध) - 23.3 लाख करोड़
गैर कर राजस्व - 3.01 लाख करोड़ 


संशोधित आंकड़े और अनुमानित आंकड़े क्या होते हैं

संशोधित आंकड़े एक प्रकार के पुनरीक्षित आंकड़े होते हैं। क्योंकि बजट में आगामी वर्ष के अनुमानित आय और व्यय का लेखा जोखा होता है। जैसे 2022-23 में अनुमानित आय 22.04 लाख करोड़ रुपए थी। और वर्ष समाप्त होने के बाद कुल आय की गणना करने के बाद पुनरीक्षित आय या संशोधित आय 24.3 लाख करोड़ रुपए आंकी गई। इसी प्रकार केन्द्रीय बजट 2023-24 के लिए कुल आय 27.17 लाख करोड़ रुपए का अनुमान लगाया जा रहा है। इसलिए इसे अनुमानित आय या अनुमानित प्राप्तियां कहेंगे। वर्ष के अन्त में 2024-25 में ज्ञात होगा कि पुनरीक्षित आंकड़े या संशोधित आंकड़े क्या रहे?

बजटीय आय

राजस्व आय और पूंजीगत आय का कुल योग बजटीय आय कहलाता है। क्योंकि आय (income) धन के रूप में 'प्राप्त' होती है इसलिए इसे राजस्व प्राप्तियां और पूंजीगत प्राप्तियां भी कहते हैं।
बजटीय आय = राजस्व प्राप्तियां + पूंजीगत प्राप्तियां 

वित्तीय वर्ष 2022-23 में कुल प्राप्तियां 24.3 लाख करोड़  (संशोधित) हैं इसलिए केंद्रीय बजट 2023-24 में कुल प्राप्तियां ₹27.17 लाख करोड़ (उधार को छोड़कर) अनुमानित हैं। 

बजटीय व्यय

राजस्व व्यय और पूंजीगत व्यय का कुल योग बजटीय क्या कहलाता है।
बजटीय व्यय = राजस्व आय + पूंजीगत व्यय 

वित्तीय वर्ष 2022-23 में कुल व्यय ₹41.9 लाख करोड़ (संशोधित) हैं इसलिए केंद्रीय बजट 2023-24 में कुल व्यय ₹45 लाख करोड़ अनुमानित हैं। 

राजस्व आय (प्राप्तियां) क्या होती हैं।

राजस्व प्राप्तियां सरकार की वे प्राप्तियां होती है जिन्हें वापस नहीं करना होता है या इनके बदले में कुछ देना नहीं पड़ता है।जैसे - इनकम टैक्स से प्राप्त आय पर सरकार को ब्याज या लाभांश नहीं देना पड़ता है। एक शब्द में कहें तो यह non refundable (गैर प्रतिदेय) होती हैं। इसमें संपत्ति का निर्माण नहीं होता है। न ही वित्तीय दायित्वों का भी निर्माण होता है। यह एक प्रकार की बार-बार होने वाली आय है । राजस्व प्राप्ति का मुख्य स्रोत इनकम टैक्स है इसके अलावा गैर कर आय के स्रोतों के माध्यम से भी राजस्व की प्राप्ति की जाती है जैसे - 
  • ब्याज - जब सरकार किसी को लोन देती है तो ब्याज वसूलती है।
  • लाभ और लाभांश - सरकार जब निवेश करती है तो उसके बदले में उसे लाभ और लाभांश प्राप्त होता है। 
  • शुल्क - ड्राइविंग लाइसेंस शुल्क और अन्य किसी प्रकार के सरकारी रजिस्ट्रेशन से आय प्राप्त करती है।
  • उपहार - आपदा के समय मिला हुआ अनुदान और उपहार राशि। 
वित्तीय वर्ष 2022-23 में राजस्व प्राप्तियां 23.4 लाख करोड़ (संशोधित) हैं इसलिए केंद्रीय बजट 2023-24 में राजस्व प्राप्तियां ₹26.32 लाख करोड़ (उधार को छोड़कर) अनुमानित हैं।

पूंजीगत (आय) प्राप्तियां क्या होती हैं?

राजस्व प्राप्तियां सरकार की वे प्राप्तियां होती है जिन्हें वापस करना होता है या इनके बदले में कुछ देना पड़ता है। जैसे - सरकार द्वारा बाजार से लिया गया ऋण, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया एवं वित्तीय संस्थानों से लिया गया ऋण और विदेशों से प्राप्त ऋण। एक निश्चित समय के बाद सरकार को वापस करना पड़ता है। एक शब्द में कहें तो यह refundable (प्रतिदेय) होती हैं। ये ऐसी प्राप्तियां होती हैं जिनसे परिसंपत्तियां घटती हैं। वित्तीय दायित्वों में वृद्धि होती है। 

वित्तीय वर्ष 2022-23 में पूंजीगत प्राप्तियां ₹.83 लाख करोड़ (संशोधित) हैं इसलिए केंद्रीय बजट 2023-24 में पूंजीगत प्राप्तियां ₹.84 लाख करोड़ (उधार को छोड़कर) अनुमानित हैं।

राजस्व व्यय क्या होता है 

यह एक ऐसा खर्च है जो सरकार को चलाने या उत्पादक प्रक्रिया को चालू रखने के लिए किया जाता है। यह उपभोग प्रकृति वाला व्यय होता है यह खर्च दिखाई नहीं देता है। इस खर्च से सरकार की संपत्ति का सृजन नहीं होता है । वित्तीय दायित्व में कमी नहीं आती है । यह एक प्रकार से बार-बार होने वाला व्यय है। जैसे - सैलरी, पेंशन, रक्षा, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि पर व्यय।

वित्तीय वर्ष 2022-23 में राजस्व व्यय ₹34 लाख करोड़ (संशोधित) हैं इसलिए केंद्रीय बजट 2023-24 में पूंजीगत प्राप्तियां ₹35 लाख करोड़ (उधार को छोड़कर) अनुमानित हैं

पूंजीगत व्यय क्या होता है?

यह सरकार का ऐसा व्यय होता है जिससे वित्तीय परिसंपत्तियों बनती है जिससे वित्तीय दायित्वों में कमी आती है। जैसे - रेलवे निर्माण, सड़क निर्माण, भवन निर्माण आदि यह बार-बार होने वाला व्यय नहीं है।

वित्तीय वर्ष 2022-23 में पूंजीगत व्यय ₹7.3 लाख करोड़ (संशोधित) हैं इसलिए केंद्रीय बजट 2023-24 में पूंजीगत प्राप्तियां ₹10 लाख करोड़ (उधार को छोड़कर) अनुमानित हैं।

सरकार की प्राप्तियों में विभिन्न मदों की हिस्सेदारी (प्रतिशत में) - रूपया कहां से आता है।


  • उधार व अन्य देयताऐं - 34%
  • माल एवं सेवा कर - 17%
  • निगम कर - 15%
  • आय कर - 15%
  • केन्द्रीय उत्पाद शुल्क - 7%
  • कर भिन्न प्राप्तियां - 6%
  • सीमा शुल्क - 4%
  • ऋण भिन्न पूंजी प्राप्तियां - 2%

सरकार के व्यय (प्रतिशत में) - रुपया कहां जाता है?

  • ब्याज भुगतान - 20%
  • करों और शुल्कों में राज्य का हिस्सा - 18%
  • केंद्रीय क्षेत्र की योजनाएं - 17%
  • वित्त आयोग और अन्य अंतरण - 9%
  • केंद्रीय प्रायोजित योजनाएं -9%
  • रक्षा - 8%
  • सब्सिडी - 7%
  • पेंशन - 4%
  • अन्य व्यय - 8%


राजकोषीय घाटा

राजकोषीय घाटा सरकार के कुल व्यय और उसके कुल राजस्व (उधार को छोड़कर) के बीच का अंतर होता है। राजकोषीय घाटा बजट का वह संकेतक है जो बताता है कि सरकार को अपने कार्यों को वित्त पोषित करने के लिए किस सीमा तक उधार लेना चाहिए । इसके अलावा राजकोषीय घाटा को देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है।
राजकोषीय घाटा = कुल व्यय - कुल आय

केंद्रीय बजट 2023-24 में सरकार ने सापेक्ष राजकोषीय विवेक को अपनाने की घोषणा की और वित्त वर्ष 2023-24 में राजकोषीय घाटे में सकल घरेलू उत्पाद का 5.9% रहने का अनुमान है जबकि वित्त वर्ष 2023 में 6.4% रहा था।

राजस्व घाटा

राजस्व घाटा का अभिप्राय सरकार के राजस्व आय की तुलना में राजस्व व्यय अधिक हो तो उसे राजस्व घाटा कहा जाता है।
राजस्व घाटा = राजस्व व्यय - राजस्व प्राप्तियां

केंद्रीय बजट 2023-24 के अनुसार राजस्व घाटा 2.9% अनुमानित किया गया है। जबकि वित्त वर्ष 2022-23 में यह 4.1% रहा ।

प्राथमिक घाटा

यदि ब्याज भुगतान को राजकोषीय घाटे से घटाया जाता है उसे प्राथमिक घाटा कहा जाता है।
प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा - ब्याज भुगतान

केंद्रीय बजट 2023-24 के अनुसार प्राथमिक घाटा सकल घरेलू उत्पाद का 2.3% अनुमानित किया गया है। जबकि वित्त वर्ष 2022-23 में यह 3% रहा।

इसके अलावा रंगराजन समिति द्वारा सार्वजनिक व्यय संबंधी प्रभावी राजस्व घाटे की अवधारणा का सुझाव दिया गया। प्रभावी राजस्व घाटा का आशय है। पूंजीगत परिसंपत्तियों के निर्माण के लिए राजस्व घाटे और अनुदान के मध्य का अंतर है 

बजट द्वारा सरकार के सभी कार्य निर्धारित किए जाते हैं सरकार द्वारा संचालित सभी योजनाओं के लिए धन की व्यवस्था बजट के माध्यम से ही की जाती है सरकार बिना बजट के ₹1 का भी व्यय नहीं कर सकती।

केंद्रीय बजट 2023-24 की प्रमुख विशेषताएं

केंद्रीय बजट 2023-24 विजन को हासिल करने के लिए तीन चीजों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। बजट में युवा वर्ग पर विशेष ध्यान देते हुए नागरिकों के लिए अवसर, रोजगार सृजन में वृद्धि साथ ही सुदृढ़ और स्थिर वृहत आर्थिक वातावरण की बात कही गयी है 

बजट में सात प्राथमिकताओं को चिन्हित किया गया है जिन्हें सप्त ऋषि का नाम दिया गया है।
  1. समावेशी विकास (कृषि, स्वास्थ्य, शिक्षा)
  2. अंतिम व्यक्ति तक पहुंच 
  3. अवसंरचना विकास एवं निवेश
  4. सामर्थ्य को प्रकट करना (क्षमता उभारना)
  5. हरित विकास (हरित खेती, हरित ऊर्जा, हरित भवन)
  6. युवा शक्ति
  7. वित्तीय श्रेत्र
बजट की सभी प्राथमिकताओं सहित अन्य तथ्यों का भाग-02 में विस्तार पूर्वक उल्लेख किया गया है। जो किसी भी मेंस पेपर के लिए महत्वपूर्ण हैं। अतः केन्द्रीय बजट का भाग-02 अवश्य पढ़ें।

भाग -02 ....... coming soon

Source - drishti ias, pib, the hindu, ramesh singh, (indian economics), budget 2023-2024

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उत्तराखंड प्रश्नोत्तरी -14 उत्तराखंड की प्रमुख जनजातियां वर्ष 1965 में केंद्र सरकार ने जनजातियों की पहचान के लिए लोकर समिति का गठन किया। लोकर समिति की सिफारिश पर 1967 में उत्तराखंड की 5 जनजातियों थारू, जौनसारी, भोटिया, बोक्सा, और राजी को एसटी (ST) का दर्जा मिला । राज्य की मात्र 2 जनजातियों को आदिम जनजाति का दर्जा प्राप्त है । सर्वप्रथम राज्य की राजी जनजाति को आदिम जनजाति का दर्जा मिला। बोक्सा जनजाति को 1981 में आदिम जनजाति का दर्जा प्राप्त हुआ था । राज्य में सर्वाधिक आबादी थारू जनजाति तथा सबसे कम आबादी राज्यों की रहती है। 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य की कुल एसटी आबादी 2,91,903 है। जुलाई 2001 से राज्य सेवाओं में अनुसूचित जन जातियों को 4% आरक्षण प्राप्त है। उत्तराखंड की जनजातियों से संबंधित प्रश्न विशेष सूचना :- लेख में दिए गए अधिकांश प्रश्न समूह-ग की पुरानी परीक्षाओं में पूछे गए हैं। और कुछ प्रश्न वर्तमान परीक्षाओं को देखते हुए उत्तराखंड की जनजातियों से संबंधित 25+ प्रश्न तैयार किए गए हैं। जो आगामी परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण साबित होंगे। बता दें की उत्तराखंड के 40 प्रश्नों में से 2

उत्तराखंड के प्रमुख व्यक्तित्व एवं स्वतंत्रता सेनानी

उत्तराखंड के प्रमुख व्यक्तित्व उत्तराखंड की सभी परीक्षाओं हेतु उत्तराखंड के प्रमुख व्यक्तित्व एवं स्वतंत्रता सेनानियों का वर्णन 2 भागों में विभाजित करके किया गया है । क्योंकि उत्तराखंड की सभी परीक्षाओं में 3 से 5 मार्क्स का उत्तराखंड के स्वतंत्रता सेनानियों का योगदान अवश्य ही पूछा जाता है। अतः लेख को पूरा अवश्य पढ़ें। दोनों भागों का अध्ययन करने के पश्चात् शार्ट नोट्स पीडीएफ एवं प्रश्नोत्तरी पीडीएफ भी जरूर करें। भाग -01 उत्तराखंड के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी [1] कालू महरा (1831-1906 ई.) कुमाऊं का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम (1857) "उत्तराखंड का प्रथम स्वतंत्रा सेनानी" कालू महरा को कहा जाता है। इनका जन्म सन् 1831 में चंपावत के बिसुंग गांव में हुआ था। इनके पिता का नाम रतिभान सिंह था। कालू महरा ने अवध के नबाब वाजिद अली शाह के कहने पर 1857 की क्रांति के समय "क्रांतिवीर नामक गुप्त संगठन" बनाया था। इस संगठन ने लोहाघाट में अंग्रेजी सैनिक बैरकों पर आग लगा दी. जिससे कुमाऊं में अव्यवस्था व अशांति का माहौल बन गया।  प्रथम स्वतंत्रता संग्राम -1857 के समय कुमाऊं का कमिश्नर हेनरी रैम्