लोककथा : खरिया और भरिया नमस्कार दोस्तों आज हम थारू जनजाति कि संस्कृति के संरक्षण के लिए सदियों से प्रचलित लोककथाओं और लोकगीतों को शुरू करने जा रहे हैं। यूं तो थारू जनजाति के लोगों की अपनी कोई भाषा नहीं है। लेकिन सर्वाधिक प्रभाव ब्रजभाषा का देखने को मिलता है। किंतु समय परिर्वतन के साथ पहाड़ी, खड़ी बोली और हिन्दी का प्रभाव देखने को मिलता है। यदि हमारे द्वारा लिखी यह कहानी आपने कभी सुनी हो तो कमेंट अवश्य करें। खरिया और भरिया : लोककथा यह कहानी दो भाइयों की है - खरिया और भरिया। इस कहानी में खरिया बड़ा भाई और थोड़ा चालक था वहीं बढ़िया छोटा भाई और बहुत सीधा साधा था। यह कथा थारू समाज के उसे समय की है जब उनके पास धन के रूप में केवल खेती और मवेशी हुआ करते थे। एक गांव में दो भाई रहा करते थे। दोनों भाई बहुत मेहनती थे लेकिन अक्सर वे आपस के छोटे छोटे विवादों में फंस जाया करते थे। एक दिन अचानक पिता की मृत्यु जाती है। उनके पिता की मृत्यु के बाद, खरिया ने चालाकी से घर की संपत्तियों का बंटवारा कुछ इस तरह किया : कंबल का बंटवारा : खरिया ने कहा, "भाई, यह कंबल दिन में मेरा रहेगा और रात में तुम्...
कविता संग्रह रूक जाना नहीं अगर नसीब में तुम हो, तो हम जरूर मिलेंगे। ये वक्त एक दिलाशा है, ये दिल , ये दिल नसीं वक्त का ही तमाशा है। रूक जाना जिंदगी नहीं है। यूं ही चलते रहे तो साथ मेरे हम नये साल पर हर बार मिलेंगे। Happy new year 2022 इन्हींं पंक्तियों के साथ आप सभी को देवभूमि उत्तराखंड की ओर से अंग्रेजी कलेंडर के अनुसार नये साल 2022 की दिल से हार्दिक शुभकामनाएं । हम आशा करते हैं इस वर्ष जितनी भी विज्ञप्ति निकाली गयी हैं। वो समय से पूर्ण हो जाए और दिल से तैयारी करने वाले आप सभी साहसियों का सिलेक्शन हो जाए। और पढ़ें.......... दोस्तों मैं न तो कोई शायर हूं न ही कोई कवि। बस जो करता हूं दिल से करता हूं। जो दिल से पढ़ाई करते हैं तो उनके मन में विचार आना तो लाजिमी बस फर्क इतना है। कुछ शब्दों में पिरों लेते हैं। कुछ दिलों में रख लेते हैं। ऐसे ही मैंने भी एक कविता लिखने का प्रयास किया हैं। कविता बहुत ही साधारण शब्दों में हैं। यदि आपको मेरे द्वारा स्वरचित कविता पसंद आए तो अपनी राय जरुर व्यक्त करना। यादों का घर सुनो......... चलो धड़कते दिल को ...