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महासागरों का अध्ययन

महासागरों का अध्ययन  देवभूमि उत्तराखंड द्वारा कक्षा 6 एनसीईआरटी भूगोल की पुस्तक से नोट्स तैयार किए जा रहे हैं। इस लेख में एनसीईआरटी पुस्तक और प्रतियोगी परीक्षाओं से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्यों का समावेशन किया गया है। इस लेख में विश्व में कितने महासागर हैं और उनके सीमांत सागरों के साथ प्रमुख जलसंधियों का उल्लेख किया गया है। अतः लेख को अंत तक जरूर पढ़ें। साथ ही विश्व का मानचित्र साथ रखें।  पृष्ठभूमि  अक्सर फिल्मों में, गानों में, कविताओं में और जिंदगी के उन तमाम पन्नों में "सात समुद्र" का जिक्र सुना होगा। और तो और इस शब्द प्रयोग मुहावरों भी करते हैं। तो क्या आप जानते हैं "सात समुद्र" ही क्यों? और यदि बात सात समुद्र की जाती है तो वे कौन-से सात समुद्र हैं? यूं तो अंक सात का अपना एक ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व हैं । क्योंकि दुनिया में इंद्रधनुष के रग सात हैं, सप्ताह के दिन सात हैं, सप्तर्षि हैं, सात चक्र हैं, इस्लामी परंपराओं में सात स्वर्ग हैं, यहां तक कि दुनिया के प्रसिद्ध 7 अजूबे हैं। संख्या सात इतिहास की किताबों में और कहानियों में बार-बार आती है और इस वजह से...

ब्रह्मांड की उत्पत्ति और सौरमंडल (भाग -01)

ब्रह्मांड की उत्पत्ति और सौर मंडल 

हमारे द्वारा प्रतियोगी परीक्षाओं हेतु भूगोल विषय से संबंधित नोट्स उपलब्ध कराए जा रहे हैं जिसका मुख्य स्त्रोत NCERT पुस्तकें हैं। इस लेख में कक्षा 6 की भूगोल की किताब से नोट्स तैयार किए गए हैं। साथ ही इसके पश्चात अभ्यास प्रश्न भी तैयार किये जाएंगे। अतः लेख को अन्त तक पढ़ें।

ब्रह्मांड क्या है ?

ब्रह्मांड वह सब कुछ है जो अस्तित्व में है। इसमें अरबों-खरबों तारे, ग्रह, आकाशगंगाएँ, धूमकेतु, ब्लैक होल और बहुत कुछ शामिल है। ये सभी चीजें अंतरिक्ष में फैली हुई हैं और एक-दूसरे से गुरुत्वाकर्षण बल से जुड़ी हुई हैं। ब्रह्मांड की संरचना का सर्वप्रथम उल्लेख टॉलमी ने किया।

दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि आकाश गंगाओं का समूह ब्रह्मांड कहलाता है। हमारी आकाशगंगा का नाम मिल्की वे है।
  • ब्रह्मांड में मौजूद सभी चीज़ों को हम छू सकते हैं, महसूस कर सकते हैं, अनुभव कर सकते हैं, माप सकते हैं या पता लगा सकते हैं। 
  • ब्रह्मांड की विशालता का अंदाज़ा लगाना बहुत मुश्किल है। ब्रह्मांड की शुरुआत बिग बैंग से हुई थी. 
  • ब्रह्मांड में मौजूद सभी चीज़ें, बिग बैंग से फैले पदार्थ से बनी हैं. ब्रह्मांड में मौजूद सभी चीज़ों का निर्माण गुरुत्वाकर्षण के कारण हुआ है. 
  • ब्रह्मांड में मौजूद सभी चीज़ों का अध्ययन खगोल विज्ञान और ब्रह्मांड विज्ञान के ज़रिए किया जाता है। 
  • ब्रह्मांड को कॉसमॉस (cosmos) भी कहा जाता है। 

ब्रह्मांड की उत्पत्ति कैसे हुई?

ब्रह्मांड एक डार्क मैटर का बना है। जो बिंदु या पिंड की भांति मौजूद था इस बिंदु को विलक्षणता (Singularity) कहा गया। जब यह बहुत ज्यादा सिकुड़ा तो तापमान में वृद्धि व घनत्व कम होने के कारण एक बड़ा विस्फोट हुआ। महाविस्फोट के बाद पिंड में मौजूद पदार्थ फैला और ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई। इस विस्फोट में प्रोटॉन का निर्माण हुआ और नाभकीय संलयन प्रक्रिया शुरू हुई। यह ब्रह्मांड का पहला प्रकाश था।

(बिंग बैंग का सिद्धांत जॉर्ज लेमैत्रे ने 1927 में प्रतिपादित किया। जबकि 1949 में प्रथम बार बिग बैंग शब्द का प्रयोग 'फ्रेड हॉयल' ने किया । बिंग बैंग सिद्धांत को विस्तार ब्रह्मांड परिकल्पना भी कहा जाता है)

आकाशगंगा

आकाशगंगा करोड़ों तारों, बादलों तथा गैसों की एक प्रणाली है। महाविस्फोट के बाद ब्रह्मांड में मौजूद पदार्थों व कणों से तारों का निर्माण हुआ। विशालकाय तारों के ढहने (मृत होने) से ब्लैक होल का निर्माण हुआ। जिससे बची धूल और गैसें घूमने लगी । धीरे-धीरे गैसों ने घूर्णनशील डिस्क का आकार ले लिया। इस डिस्क के बाह्य भाग में बची गैस और धूल से आज भी तारे बन रहे हैं। इस प्रकार की लाखों आकाशगंगाएँ मिलकर ब्रह्मांड का निर्माण करती हैं। हमारी आकाशगंगा को मिल्की वे के नाम से जाना जाता है। 

आकाशगंगा का आकार सर्पिलाकार है, व इसकी तीन भुजाएं हैं -
  • आंतरिक भुजा - यह ब्लैक के निकट का भाग होता है। इस भाग में तारों में में नाभिकीय संलयन और विखंडन की प्रक्रिया समाप्त हो जाती है। अर्थात् हाइड्रोजन गैस हीलियम में परिवर्तित होना बंद हो जाती है। या हम कह सकते हैं तारे का ईंधन समाप्त हो जाता है। वह मृत अवस्था में पहुंच जाता है।
  • मध्य भुजा - जब नये तारों में नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया मध्यम स्तर पर होती है। सूर्य आकाशगंगा की दूसरी भुजा में स्थित है। सूर्य को मध्यम आयु का तारा कहा जाता है।
  • बाह्य भुजा - महाविस्फोट सिद्धांत के बाद तारों, उल्का पिंड, ग्रहों का निर्माण हो चुका था किन्तु बची धूल और गैसों से नए तारों का भी निर्माण आज भी हो रहा है। आकाशगंगा के बाह्य भाग में बची गैस और धूल से नये तारों का निर्माण होता हैं।

नये तारों का निर्माण 

बाह्य भुजा में गैसों के बदल पाए जाते हैं। ये बादल नेबुला कहलाते हैं गुरुत्वाकर्षण के कारण ये सिकुड़ते है। सिकुड़ने से बादलों के बीच टकराव होता है जिससे ऊर्जा उत्पन्न होती है। इस ऊर्जा की उपस्थिति में हाइड्रोजन, हीलियम में बदलता है। और नये तारों का निर्माण होता है। 

तारों का अंत या ढहना

जब तारों में नाभिकीय संलयन प्रक्रिया के दौरान किसी भी प्रकार का विस्फोट नहीं होता है तो तारों का ईंधन हाइड्रोजन का हीलियम में बदलना रुक जाता है तो वह स्वत: ही समाप्त हो जाते हैं। जिन्हें श्वेत वामन और काला वामन कहा जाता है किन्तु नाभिकीय संलयन प्रक्रिया के दौरान अधिक ऊष्मा और दाब के कारण जब विस्फोट होता है तो वह न्यूट्रॉन तारा और पल्सर तारा में परिवर्तित हो जाता है। 

सुपरनोवा विस्फोट 

कभी-कभी तारों में सिकुड़न की वजह से विस्फोट हो जाता है। जिसे सुपरनोवा या विस्फोटी तारा कहते हैं। सुपरनोवा स्पॉट इतनी शक्तिशाली होती है कि वे नए परमाणु नाभिक बनाते हैं। जिन्हें न्यूट्रॉन कहा जाता है ।

न्यूट्रॉन तारा - किसी विशालकाय तारे के सुपरनोवा विस्फोट के बाद बनने वाला अवशेष न्यूट्रॉन तारा कहलाता है। यह तारा मुख्य रूप से न्यूट्रॉन से बना होता है इसमें नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया द्वारा ऊष्मा उत्पन्न नहीं होती है।

पल्सर तारा - यह घूमता हुआ एक न्यूट्रॉन तारा होता है जो लगातार विद्युत चुंबकीय विकिरण छोड़ता है। पल्सर में बहुत  मजबूत चुंबकीय क्षेत्र होते हैं। पल्सर तारा ही ब्लैक हॉल बनाते हैं 

श्वेत वामन व काला वामन - ये तारे विशालकाय तारों के अवशेष होते है। श्वेत वामन तारा वह होता है जो अपने विकास के अंतिम चरण में होता है। यह बहुत छोटा और अत्यधिक गर्म वाला होता है। जबकि काला बोना तारा वह होता है जो बहुत कम या बिल्कुल भी रोशनी और गर्मी नहीं देता। सामान्यतः श्वेत वामन तारे ही ठंडे होकर काले बौन तारे में बदल जाते हैं।

सौरमंडल  क्या है ?

सौरमंडल, जिसमें हमारा सूर्य और उसके चारों ओर चक्कर लगाने वाले ग्रह, उपग्रह, क्षुद्रग्रह और धूमकेतु शामिल हैं। इसकी उत्पत्ति एक अत्यंत रोचक और जटिल प्रक्रिया रही है। वैज्ञानिकों ने इस प्रक्रिया को समझने के लिए कई सिद्धांत प्रस्तुत किए हैं, जिनमें से सबसे व्यापक रूप से स्वीकृत सिद्धांत बिंग बैंग थ्योरी (महाविस्फोट सिद्धांत) है।

सौरमंडल की उत्पत्ति 

महाविस्फोट के बाद ब्रह्मांड में बिंदु में उपस्थित धूल, कण व गैसें चारों ओर फैल गये । जो अपेक्षाकृत बड़े और ऊर्जावान कण थे, वो तारे कहलाए। विशालकाय तारों ने गुरुत्वाकर्षण ऊर्जा का प्रयोग कर अपने आसपास के ग्रह, उपग्रह, उल्कापिंड व क्षुद्र ग्रहों को नियंत्रित कर लिया जिससे वह अपनी कक्षा में सूर्य की परिक्रमा करने लगे। 

सौरमंडल

सूर्य, आठ ग्रह, उपग्रह तथा कुछ अन्य खगोलीय पिंड, जैसे - क्षुद्र ग्रह एवं उल्कापिंड मिलकर सौरमंडल का निर्माण करते हैं। जिसे सौर परिवार के नाम से भी जाना जाता हैं। जिसका मुखिया सूर्य है।

सूर्य

सूर्य सौरमंडल के केंद्र में स्थित है। यह बहुत बड़ा है एवं अत्यधिक गर्म गैसों से बना है। इसका खिंचाव बल इससे सौरमंडल को बाँधे रखता है। सूर्य, सौरमंडल के लिए प्रकाश एवं ऊष्मा का एकमात्र स्रोत है। सूर्य पृथ्वी से लगभग 15 करोड़ किलोमीटर दूर है। इसका व्यास लगभग 13.9 लाख किलोमीटर है। और इसकी वर्तमान आयु लगभग 4.7 अब वर्ष है। सूर्य का ना कोई अपना चंद्रमा है और ना ही किसी प्रकार के छल्ले की विद्यमानता है। सूर्य का वह भाग जो हमें दिखाई देता है उसे प्रकाश मंडल कहते हैं इसका तापमान लगभग 5500 डिग्री सेल्सियस है । सूर्य आकाशगंगा की परिक्रमा करता है।

कुछ वैज्ञानिकों ने सौरमंडल की उत्पत्ति के लिए नेबुला सिद्धांत दिया हैं।

इस सिद्धांत के अनुसार, लगभग 4.6 अरब वर्ष पहले एक विशाल गैस और धूल के बादल (नेबुला) था। इस बादल में मुख्य रूप से हाइड्रोजन और हीलियम गैसें थीं। इस बादल के भीतर गुरुत्वाकर्षण बल के कारण धीरे-धीरे सिकुड़न शुरू हुई। सिकुड़ने के साथ-साथ बादल घूमने लगा और इसका केंद्र गर्म होता गया। केंद्र में गर्म और घने पदार्थ का एक बड़ा गोला बन गया, जो बाद में सूर्य बना। बाकी बचे हुए पदार्थ एक चपटी डिस्क के रूप में सूर्य के चारों ओर घूमने लगा। इस डिस्क में धूल और गैस के कण आपस में टकराकर बड़े-बड़े पिंड बनाते गए। यही पिंड बाद में ग्रहों, उपग्रहों और अन्य खगोलीय पिंडों में विकसित हुए।

अन्य सिद्धांत

ज्वारीय सिद्धांत: इस सिद्धांत के अनुसार, एक बड़ा तारा सूर्य के पास से गुजरा और सूर्य से कुछ पदार्थ खींच लिया। इस खींचे गए पदार्थ से ग्रहों का निर्माण हुआ।

प्रोटोप्लानेटरी डिस्क सिद्धांत : यह सिद्धांत नेबुला सिद्धांत का ही विस्तारित रूप है। इसमें यह बताया गया है कि प्रोटोप्लानेटरी डिस्क में कैसे छोटे-छोटे कण आपस में टकराकर बड़े पिंड बनाते हैं।

खगोलीय पिंड क्या है ?

सूर्य, चंद्रमा तथा वे सभी वस्तुएँ जो रात के समय आसमान में चमकती हैं, खगोलीय पिंड कहलाती हैं।

कुछ खगोलीय पिंड बड़े आकार वाले तथा गर्म होते हैं। ये गैसों से बने होते हैं। इनके पास अपनी ऊष्मा तथा प्रकाश होता है, जिसे वे बहुत बड़ी मात्रा में उत्सर्जित करते हैं। इन खगोलीय पिंडों को तारा कहते हैं। सूर्य भी एक तारा है।

रात के समय चमकते हुए अनगिनत तारे सूर्य के समान ही हैं। लेकिन हमसे बहुत अधिक दूर होने के कारण हम लोग उनकी ऊष्मा या प्रकाश को महसूस नहीं करते हैं तथा वे अत्यंत छोटे दिखाई पड़ते हैं।

उदाहरण - अत्यधिक ऊँचाई पर उड़ रहा हवाई जहाज छोटा दिखाई देता है। ठीक उसी प्रकार तारे भी छोटे दिखाई देते हैं।

नक्षत्रमंडल किसे कहते हैं 

रात्रि में आसमान की ओर देखते समय आकृतियों को देख सकते हैं। ये नक्षत्रमंडल कहलाते हैं। अर्सा मेजर या बिग बीयर इसी प्रकार का एक नक्षत्रमंडल है। बहुत आसानी से पहचान में आने वाला नक्षत्रमंडल है. स्मॉल बीयर या सप्तऋषि (सप्त-सात, ऋषि-संत)। यह सात तारों का समूह है, जो कि एक बड़े नक्षत्रमंडल अर्सा मेजर का भाग है ।

उत्तरी तारा उत्तर दिशा को बताता है। इसे ध्रुव तारा भी कहा जाता है। यह आसमान में हमेशा एक ही स्थान पर रहता है। हम सप्तऋषि की सहायता से ध्रुव तारे की स्थिति को जान सकते हैं। 

ग्रह क्या है ?

कुछ खगोलीय पिंडों में अपना प्रकाश एवं ऊष्मा नहीं होती है। वे तारों के प्रकाश से प्रकाशित होते हैं। ऐसे पिंड ग्रह कहलाते हैं। ग्रह जिसे अंग्रेजी में प्लेनेट (Planet) कहते हैं। ग्रीक भाषा के प्लेनेटाइ (Planetai) शब्द से बना है जिसका अर्थ होता है परिभ्रमक अर्थात् चारों ओर घूमने वाले। अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ ने वर्ष 2006 में ग्रहों की नई परिभाषा दी जिसके अनुसार ग्रह उन्हें आकाश पिंडों को माना जाएगा जो अपनी निश्चित कक्षा में सूर्य की परिक्रमा करेंगे।

पृथ्वी, जिस पर हम रहते हैं, एक ग्रह है। यह अपना संपूर्ण प्रकाश एवं ऊष्मा सूर्य से प्राप्त करती है,

उपग्रह क्या है ?

आसमान में दिखने वाला चंद्रमा एक उपग्रह है। यह हमारी पृथ्वी का सहचर है तथा इसके चारों ओर चक्कर लगाता है। हमारी पृथ्वी के समान, आठ अन्य ग्रह हैं जो सूर्य से प्रकाश एवं ऊष्मा प्राप्त करते हैं। उनमें से कुछ के पास अपने चंद्रमा भी हैं।

चंद्रमा

हमारी पृथ्वी के पास केवल एक उपग्रह है, चंद्रमा। इसका व्यास पृथ्वी के व्यास का केवल एक-चौथाई है। यह हमसे लगभग 3,84,400 किलोमीटर दूर है। चंद्रमा पृथ्वी का एक चक्कर लगभग 27 दिन में पूरा करता है। लगभग इतने ही समय में यह अपने अक्ष पर एक चक्कर भी पूरा करता है। इसके परिणामस्वरूप पृथ्वी से हमें चंद्रमा का केवल एक ही भाग दिखाई पड़ता है।

चंद्रमा की परिस्थितियाँ जीवन के लिए अनुकूल नहीं हैं। यहाँ न पानी है और न वायु। इसकी सतह पर पर्वत, मैदान एवं गड्ढे हैं जो चंद्रमा की सतह पर छाया बनाते हैं। पूर्णिमा के दिन चंद्रमा पर इनकी छाया को देखा जा सकता है।

क्षुद्र ग्रह क्या है ?

तारों, ग्रहों एवं उपग्रहों के अतिरिक्त, असंख्य छोटे पिंड भी सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाते हैं। इन पिंडों को क्षुद्र ग्रह कहते हैं। ये मंगल एवं बृहस्पति की कक्षाओं के बीच पाए जाते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार क्षुद्र ग्रह, ग्रह के ही भाग होते हैं, जो कि बहुत वर्ष पहले विस्फोट के बाद ग्रहों से टूटकर अलग हो गए।

उल्कापिंड क्या है ?

सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने वाले पत्थरों के छोटे-छोटे टुकड़ों को उल्कापिंड कहते हैं। कभी-कभी ये उल्कापिंड पृथ्वी के इतने नजदीक आ जाते हैं कि इनकी प्रवृत्ति पृथ्वी पर गिरने की होती है। इस प्रक्रिया के दौरान वायु के साथ घर्षण होने के कारण ये गर्म होकर जल जाते हैं। फलस्वरूप, चमकदार प्रकाश उत्पन्न होता है। कभी कभी कोई उल्का पूरी तरह जले बिना पृथ्वी पर गिरती है जिससे धरातल पर गड्ढे बन जाते हैं।

धूमकेतु 

सौरमंडल के बीच छोटे पिंड है जो मुख्यतः बर्फ, धूल और चट्टानों से बने होते हैं । यह सूर्य की परिक्रमा करते हैं और जब सूर्य के करीब आते हैं तो इनकी बर्फ वाष्पित होकर एक विशाल पूंछ बनती है जिसके कारण यह आकाश में चमकदार दिखाई देते हैं। इन्हें पुच्छल तारा भी कहा जाता है।

सौरमंडल के ग्रहों का विस्तार से अध्ययन 

हमारे सौरमंडल में आठ ग्रह हैं। सूर्य से दूरी के अनुसार, वे हैं: बुध, शुक्र. पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति. शनि. यूरेनस तथा नेप्च्यून।

परिक्रमण - किसी वस्तु के चारों ओर घूमना परिक्रमण कहलाता है। जैसे - सौरमंडल के सभी ग्रह सूर्य की परिक्रमा कर रहे हैं। परिक्रमण के कारण ही ऋतु परिवर्तन होता है। 

घूर्णन - जब कोई वस्तु या ग्रह अपने ही अक्ष या स्थान पर घूमते हैं उसे घूर्णन या परिभ्रमण कहते हैं। घूर्णन के कारण दिन-रात होते हैं।

सूर्य से दूरी के अनुसार : आठ ग्रह 

पहला - बुध 

  • परिक्रमण - 88 दिन 
  • घूर्णन - 59 दिन
  • उपग्रह - कोई उपग्रह नहीं है 
  • सूर्य का सबसे निकट का ग्रह 
  • सौरमंडल का सबसे छोटा ग्रह 
  • बुध पर वायुमंडल का अभाव है

दूसरा - शुक्र 

  • परिक्रमण - 255 दिन
  • घूर्णन - 243 दिन
  • उपग्रह - कोई भी उपग्रह नहीं 
  • पृथ्वी का सबसे नजदीक का ग्रह 
  • सूर्य एवं चंद्रमा के बाद तीसरा सबसे चमकीला खगोलीय पिंड 
  • शाम को पश्चिम में एवं सुबह को पूर्व में दिखाई देने के कारण इसे कम से 'सांझ का तारा' तथा 'भोर का तारा' भी कहा जाता है। 
  • आकर घनत्व एवं व्यास में पृथ्वी के लगभग बराबर है इसलिए इस 'पृथ्वी की बहन' तथा शुक्र को 'पृथ्वी का जुड़वाँ ग्रह' कहा जाता है।
  • 243 दिन होने के कारण यहां सर्वाधिक लंबे दिन रात होते हैं।
  • सर्वाधिक कार्बन डाइऑक्साइड (95%) होने के कारण 'सबसे गर्म ग्रह' कहा जाता है।

तीसरा - पृथ्वी 

  • परिक्रमण - 365 दिन 
  • घूर्णन - 1 दिन 
  • चंद्रमा की संख्या - 1 दिन (चंन्द्रमा)
  • आकार की दृष्टि से यह पांचवा सबसे बड़ा ग्रह है। जबकि पार्थिव ग्रहों में सबसे बड़ा ग्रह है। 
  • पृथ्वी अपने अक्ष पर साडे 23 डिग्री झुकी हुई है ध्रुव के पास थोड़ी चपटी होने के कारण इसके आकार को भूआभ कहा जाता है।
  • जल की अधिकता के कारण इसे 'नीला ग्रह' कहा जाता है। 
  • पृथ्वी को सूर्य का एक चक्कर लगाने में लगे समय को सौर वर्ष कहा जाता है। 

चौथा - मंगल 

  • परिक्रमण - 687 दिन 
  • घूर्णन - 1 दिन
  • उपग्रह - 2 (फोबोस तथा डीमोस)
  • यह आकार की दृष्टि से सातवां बड़ा ग्रह है। 
  • मंगल ग्रह की मिट्टी में आएं ऑक्साइड की अधिकता होने के कारण यह लाल रंग का दिखाई देता है इसलिए इसे 'लाल ग्रह' भी कहते हैं। 
  • इस ग्रह के वायुमंडल में 95% कार्बन डाइऑक्साइड तथा अन्य गैसों के रूप में नाइट्रोजन, आर्गेन व कार्बन मोनोऑक्साइड आदि पायी जाती हैं 

पांचवा - बृहस्पति 

  • परिक्रमण - लगभग 12 साल
  • घूर्णन - 9 घंटे 56 मिनट
  • उपग्रह की संख्या - 79 
  • यह सर्वाधिक उपग्रहों वाला ग्रह है। ज्यादातर उपग्रह छोटे आकार के हैं
  • सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है। 

छठवां - शनि 

  • परिक्रमण - 29 वर्ष 5 महीने 
  • घूर्णन - 10 घंटे 40 मिनट 
  • उपग्रह की संख्या - 30 से अधिक (टाइटन उपग्रह)
  • आकार में यह दूसरा सबसे बड़ा ग्रह है
  • इस ग्रह के वायुमंडल में हाइड्रोजन, हीलियम, मीथेन, तथा अमोनिया गैस से पाई जाती है जिस कारण इसे गैसों का गोला भी कहा जाता है।

सातवां - यूरेनस 

  • परिक्रमण - 84 वर्ष 
  • घूर्णन - 17 घंटे 14 मिनट 
  • उपग्रह की संख्या - लगभग 27
  • आकार में तीसरा सबसे बड़ा ग्रह 
  • मीथेन गैस की अधिकता के कारण यह नीला हरा दिखाई देता है। 
  • अक्षांश झुकाव अधिक होने के कारण इसे 'लेटा हुआ ग्रह' भी कहते हैं। 

आठवां - नैप्च्यून

  • परिक्रमण - 164 वर्ष 
  • घूर्णन - 16 घंटे 7 मिनट
  • चंद्रमा की संख्या - 8
  • सौरमंडल का सबसे बाहरी ग्रह व आकार की दृष्टि से चौथा बड़ा ग्रह है।
  • सर्वाधिक ठंडा ग्रह 

ग्रहों से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य 

  • बुध, शुक्र, पृथ्वी व मंगल को सौरमंडल के पार्थिव (आंतरिक) ग्रह कहे जाते हैं. यह चट्टान और धातु से बने हैं। बृहस्पति, शनि, यूरेनस और नेपच्यून को जोवियन (बाह्य) ग्रह कहा जाता है।
  • बृहस्पति, शनि, यूरेनस तथा नेपच्यून के चारों ओर छाले हैं यह छल्ले विभिन्न पदार्थों के असंख्य छोटे-छोटे पिंडों से बनी पट्टियां हैं।
  • शुक्र एवं यूरेनस की परिक्रमण दिशा पूरब से पश्चिम अर्थात दक्षिणावर्त है जबकि अन्य सभी ग्रहों की वामावर्त है।
  • सौरमंडल के पांच ग्रहों में सक्रिय ज्वालामुखी पाए जाते हैं। शुक्र, पृथ्वी, बृहस्पति, शनि, और नेपच्यून 
  • अभी तक प्लूटो भी एक ग्रह माना जाता था। परन्तु अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संगठन ने अपनी बैठक (अगस्त 2006) में यह निर्णय लिया कि कुछ समय पहले खोजे गए अन्य खगोलीय पिण्ड (2003 UB सिरस) तथा प्लूटो 'बौने ग्रह' कहे जा सकते हैं।

पृथ्वी

ज्योग्राफी एक अंग्रेजी शब्द है यह ग्रीक भाषा से लिया गया है जिसका अर्थ है पृथ्वी का विवरण । यह दो ग्रीक शब्दों से मिलकर बना है ‘ge’ जी शब्द का अर्थ है पृथ्वी । ग्राफिया graphia का अर्थ है “लिखना”

पृथ्वी के अध्ययन को जियोलॉजी कहा जाता है। पृथ्वी के मापन को ज्योमैट्रिया कहा जाता है 

जीवन के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ संभवतः केवल पृथ्वी पर ही पाई जाती हैं। पृथ्वी न तो अधिक गर्म है और न ही अधिक ठंडी। यहाँ पानी एवं वायु उपस्थित है, जो हमारे जीवन के लिए आवश्यक है। वायु में जीवन के लिए आवश्यक गैसें, जैसे ऑक्सीजन मौजूद है। इन्हीं कारणों से. पृथ्वी सौरमंडल का सबसे अ‌द्भुत ग्रह है।

अंतरिक्ष से देखने पर पृथ्वी नीले रंग की दिखाई पड़ती है, क्योंकि इसकी दो-तिहाई सतह पानी से ढकी हुई है। इसलिए इसे. नीला ग्रह कहा जाता है।

महत्वपूर्ण तथ्य 

  • पौराणिक रोमन कहानियों में सोल सूर्य देवता को कहा जाता है।
  • प्रकाश की गति - लगभग 3,00,000 किलोमीटर प्रति घंटा सेकंड (3×10⁸ मीटर प्रति सेकंड)
  • सूर्य का प्रकाश पृथ्वी तक पहुंचने में लगा समय - 8 मिनट 
  • नील आर्मस्ट्रांग पहले व्यक्ति थे जिन्होंने 29 जुलाई 1969 को सबसे पहले चंद्रमा पर कदम रखा। 
  • मानव निर्मित उपग्रह एक कृत्रिम उपग्रह होता है यह वैज्ञानिक द्वारा बनाया जाता है जिसका उपयोग ब्रह्मांड के बारे में जानकारी प्राप्त करने एवं पृथ्वी पर संचार माध्यम के लिए किया जाता है इसे रॉकेट के द्वारा अंतरिक्ष में भेजा जाता है एवं पृथ्वी की कक्षा में स्थापित कर दिया जाता है अंतरिक्ष में उपस्थित कुछ भारतीय उपग्रह इंसेंट, एडूसैट, इत्यादि है।
  • अंतरिक्ष पर जाने वाला प्रथम व्यक्ति यूरी गागरिन (12 अप्रैल 1961) था।
  • अंतरिक्ष पर जाने वाला प्रथम महिला वैलैंटिना टेरेश्कोवा (16 जून 1963) थी।
  • अंतरिक्ष पर जाने वाला प्रथम भारतीय व्यक्ति राकेश शर्मा (3 अप्रैल 1984) था।
  • अंतरिक्ष पर जाने वाला प्रथम महिला कल्पना चावला (1997) थी। 1 फरवरी 2003 को दूसरे अंतरिक्ष अभियान के दौरान मृत्यु हो गई थी।
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उत्तराखंड का इतिहास History of Uttarakhand भाग -1 परमार वंश का इतिहास उत्तराखंड में सर्वाधिक विवादित और मतभेद पूर्ण रहा है। जो परमार वंश के इतिहास को कठिन बनाता है परंतु विभिन्न इतिहासकारों की पुस्तकों का गहन विश्लेषण करके तथा पुस्तक उत्तराखंड का राजनैतिक इतिहास (अजय रावत) को मुख्य आधार मानकर परमार वंश के संपूर्ण नोट्स प्रस्तुत लेख में तैयार किए गए हैं। उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में 688 ईसवी से 1947 ईसवी तक शासकों ने शासन किया है (बैकेट के अनुसार)।  गढ़वाल में परमार वंश का शासन सबसे अधिक रहा।   जिसमें लगभग 12 शासकों का अध्ययन विस्तारपूर्वक दो भागों में विभाजित करके करेंगे और अंत में लेख से संबंधित प्रश्नों का भी अध्ययन करेंगे। परमार वंश (गढ़वाल मंडल) (भाग -1) छठी सदी में हर्षवर्धन की मृत्यु के पश्चात संपूर्ण उत्तर भारत में भारी उथल-पुथल हुई । देश में कहीं भी कोई बड़ी महाशक्ति नहीं बची थी । जो सभी प्रांतों पर नियंत्रण स्थापित कर सके। बड़े-बड़े जनपदों के साथ छोटे-छोटे प्रांत भी स्वतंत्रता की घोषणा करने लगे। कन्नौज से सुदूर उत्तर में स्थित उत्तराखंड की पहाड़ियों में भी कुछ ऐसा ही...

उत्तराखंड में भूमि बंदोबस्त का इतिहास

  भूमि बंदोबस्त व्यवस्था         उत्तराखंड का इतिहास भूमि बंदोबस्त आवश्यकता क्यों ? जब देश में उद्योगों का विकास नहीं हुआ था तो समस्त अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर थी। उस समय राजा को सर्वाधिक कर की प्राप्ति कृषि से होती थी। अतः भू राजस्व आय प्राप्त करने के लिए भूमि बंदोबस्त व्यवस्था लागू की जाती थी । दरअसल जब भी कोई राजवंश का अंत होता है तब एक नया राजवंश नयी बंदोबस्ती लाता है।  हालांकि ब्रिटिश शासन से पहले सभी शासकों ने मनुस्मृति में उल्लेखित भूमि बंदोबस्त व्यवस्था का प्रयोग किया था । ब्रिटिश काल के प्रारंभिक समय में पहला भूमि बंदोबस्त 1815 में लाया गया। तब से लेकर अब तक कुल 12 भूमि बंदोबस्त उत्तराखंड में हो चुके हैं। हालांकि गोरखाओ द्वारा सन 1812 में भी भूमि बंदोबस्त का कार्य किया गया था। लेकिन गोरखाओं द्वारा लागू बन्दोबस्त को अंग्रेजों ने स्वीकार नहीं किया। ब्रिटिश काल में भूमि को कुमाऊं में थात कहा जाता था। और कृषक को थातवान कहा जाता था। जहां पूरे भारत में स्थायी बंदोबस्त, रैयतवाड़ी बंदोबस्त और महालवाड़ी बंदोबस्त व्यवस्था लागू थी। वही ब्रिटिश अधिकारियों ...

कुणिंद वंश का इतिहास (1500 ईसा पूर्व - 300 ईसवी)

कुणिंद वंश का इतिहास   History of Kunid dynasty   (1500 ईसा पूर्व - 300 ईसवी)  उत्तराखंड का इतिहास उत्तराखंड मूलतः एक घने जंगल और ऊंची ऊंची चोटी वाले पहाड़ों का क्षेत्र था। इसका अधिकांश भाग बिहड़, विरान, जंगलों से भरा हुआ था। इसीलिए यहां किसी स्थाई राज्य के स्थापित होने की स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती है। थोड़े बहुत सिक्कों, अभिलेखों व साहित्यक स्रोत के आधार पर इसके प्राचीन इतिहास के सूत्रों को जोड़ा गया है । अर्थात कुणिंद वंश के इतिहास में क्रमबद्धता का अभाव है।               सूत्रों के मुताबिक कुणिंद राजवंश उत्तराखंड में शासन करने वाला प्रथम प्राचीन राजवंश है । जिसका प्रारंभिक समय ॠग्वैदिक काल से माना जाता है। रामायण के किस्किंधा कांड में कुणिंदों की जानकारी मिलती है और विष्णु पुराण में कुणिंद को कुणिंद पल्यकस्य कहा गया है। कुणिंद राजवंश के साक्ष्य के रूप में अभी तक 5 अभिलेख प्राप्त हुए हैं। जिसमें से एक मथुरा और 4 भरहूत से प्राप्त हुए हैं। वर्तमान समय में मथुरा उत्तर प्रदेश में स्थित है। जबकि भरहूत मध्यप्रदेश में है। कुणिंद वंश का ...

उत्तराखंड की जनजातियों से संबंधित प्रश्न (उत्तराखंड प्रश्नोत्तरी -14)

उत्तराखंड प्रश्नोत्तरी -14 उत्तराखंड की प्रमुख जनजातियां वर्ष 1965 में केंद्र सरकार ने जनजातियों की पहचान के लिए लोकर समिति का गठन किया। लोकर समिति की सिफारिश पर 1967 में उत्तराखंड की 5 जनजातियों थारू, जौनसारी, भोटिया, बोक्सा, और राजी को एसटी (ST) का दर्जा मिला । राज्य की मात्र 2 जनजातियों को आदिम जनजाति का दर्जा प्राप्त है । सर्वप्रथम राज्य की राजी जनजाति को आदिम जनजाति का दर्जा मिला। बोक्सा जनजाति को 1981 में आदिम जनजाति का दर्जा प्राप्त हुआ था । राज्य में सर्वाधिक आबादी थारू जनजाति तथा सबसे कम आबादी राज्यों की रहती है। 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य की कुल एसटी आबादी 2,91,903 है। जुलाई 2001 से राज्य सेवाओं में अनुसूचित जन जातियों को 4% आरक्षण प्राप्त है। उत्तराखंड की जनजातियों से संबंधित प्रश्न विशेष सूचना :- लेख में दिए गए अधिकांश प्रश्न समूह-ग की पुरानी परीक्षाओं में पूछे गए हैं। और कुछ प्रश्न वर्तमान परीक्षाओं को देखते हुए उत्तराखंड की जनजातियों से संबंधित 25+ प्रश्न तैयार किए गए हैं। जो आगामी परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण साबित होंगे। बता दें की उत्तराखंड के 40 प्रश्नों में से 2...

चंद राजवंश : उत्तराखंड का इतिहास

चंद राजवंश का इतिहास पृष्ठभूमि उत्तराखंड में कुणिंद और परमार वंश के बाद सबसे लंबे समय तक शासन करने वाला राजवंश है।  चंद वंश की स्थापना सोमचंद ने 1025 ईसवी के आसपास की थी। वैसे तो तिथियां अभी तक विवादित हैं। लेकिन कत्यूरी वंश के समय आदि गुरु शंकराचार्य  का उत्तराखंड में आगमन हुआ और उसके बाद कन्नौज में महमूद गजनवी के आक्रमण से ज्ञात होता है कि तो लगभग 1025 ईसवी में सोमचंद ने चंपावत में चंद वंश की स्थापना की है। विभिन्न इतिहासकारों ने विभिन्न मत दिए हैं। सवाल यह है कि किसे सच माना जाए ? उत्तराखंड के इतिहास में अजय रावत जी के द्वारा उत्तराखंड की सभी पुस्तकों का विश्लेषण किया गया है। उनके द्वारा दिए गए निष्कर्ष के आधार पर यह कहा जा सकता है । उपयुक्त दिए गए सभी नोट्स प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से सर्वोत्तम उचित है। चंद राजवंश का इतिहास चंद्रवंशी सोमचंद ने उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में लगभग 900 वर्षों तक शासन किया है । जिसमें 60 से अधिक राजाओं का वर्णन है । अब यदि आप सभी राजाओं का अध्ययन करते हैं तो मुमकिन नहीं है कि सभी को याद कर सकें । और अधिकांश राजा ऐसे हैं । जिनका केवल नाम पता...

भारत की जनगणना 2011 से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न (भाग -01)

भारत की जनगणना 2011 मित्रों वर्तमान परीक्षाओं को पास करने के लिए रखने से बात नहीं बनेगी अब चाहे वह इतिहास भूगोल हो या हमारे भारत की जनगणना हो अगर हम रटते हैं तो बहुत सारे तथ्यों को रटना पड़ेगा जिनको याद रखना संभव नहीं है कोशिश कीजिए समझ लीजिए और एक दूसरे से रिलेट कीजिए। आज हम 2011 की जनगणना के सभी तथ्यों को समझाने की कोशिश करेंगे। यहां प्रत्येक बिन्दु का भौगोलिक कारण उल्लेख करना संभव नहीं है। इसलिए जब आप भारत की जनगणना के नोट्स तैयार करें तो भौगोलिक कारणों पर विचार अवश्य करें जैसे अगर किसी की जनसंख्या अधिक है तो क्यों है ?, अगर किसी की साक्षरता दर अधिक है तो क्यों है? अगर आप इस तरह करेंगे तो शत-प्रतिशत है कि आप लंबे समय तक इन चीजों को याद रख पाएंगे साथ ही उनसे संबंधित अन्य तथ्य को भी आपको याद रख सकेंगे ।  भारत की जनगणना (भाग -01) वर्ष 2011 में भारत की 15वीं जनगणना की गई थी। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत का कुल क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग किलोमीटर था तथा भारत की कुल आबादी 121,08,54,922 (121 करोड़) थी। जिसमें पुरुषों की जनसंख्या 62.32 करोड़ एवं महिलाओं की 51.47 करोड़ थी। जनसंख्या की दृष...