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समावेशी शिक्षा
समावेशी शिक्षा क्या है ?
समावेशी शिक्षा एक ऐसी शिक्षा प्रणाली है जिसमें सभी बच्चों समान शिक्षा का अवसर प्राप्त होता है, चाहे उनकी क्षमताएं, योग्यताएं या पृष्ठभूमि कुछ भी हो, जैसे - विकलांग, प्रतिभाशाली, गरीब, अमीर, पिछड़े और सामाजिक रूप से वंचित सभी बच्चे नियमित स्कूलों में साथ-साथ पढ़ते हैं। भारतीय संविधान अनुच्छेद 21(A) 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार प्रदान करता है।
कुछ प्रमुख परिभाषाएँ इस प्रकार हैं:
यूनेस्को के अनुसार : "समावेशी शिक्षा यह सुनिश्चित करती है कि सभी शिक्षार्थी, चाहे उनकी क्षमताएं, पृष्ठभूमि या परिस्थितियां कुछ भी हों, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त कर सकें और उनका समर्थन किया जा सके।"
विश्व बैंक के अनुसार : "समावेशी शिक्षा एक ऐसी शिक्षा प्रणाली है जो सभी शिक्षार्थियों की विविधता को स्वीकार करती है और उनका समर्थन करती है, और यह सुनिश्चित करती है कि सभी को अपनी पूरी क्षमता तक पहुंचने का अवसर मिले।"
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 : "समावेशी शिक्षा का अर्थ है सभी बच्चों को उनकी क्षमता, पृष्ठभूमि या परिस्थितियों की परवाह किए बिना गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक समान पहुंच प्रदान करना।"
समावेशी शिक्षा के उद्देश्य
- सभी के लिए शिक्षा का अधिकार
- कौशलों की पहचान
- नई चुनौतियों के लिए तैयार
- मातृभाव की भावना का विकास
- संवैधानिक उत्तरदायित्वों का निर्वहन
- अभिगम्यता संबंधी सुधार व अवसंरचना का इनके अनुकूल बनाना
- दिव्यांगजन अधिकारों को मान्यता और संरक्षण
समावेशी शिक्षा का मुख्य उद्देश्य सभी बच्चों को समान शिक्षा प्रदान करना और समाज में समानता लाना है। यह विभिन्नताओं को स्वीकार करता है और सभी बच्चों को अपनी पूरी क्षमता तक पहुंचने का अवसर प्रदान करता है।
समावेशी शिक्षा के मुख्य सिद्धांत हैं:
समानता का सिद्धांत : सभी बच्चों को शिक्षा का समान अधिकार है और सभी को अपनी पूरी क्षमता तक पहुंचने का अवसर मिलना चाहिए।
सामाजिक न्याय का सिद्धांत : शिक्षा प्रणाली को सभी बच्चों के लिए न्यायसंगत और समान होनी चाहिए, चाहे उनकी पृष्ठभूमि या परिस्थितियां कुछ भी हों।
विविधता का सिद्धांत : शिक्षा प्रणाली को सभी बच्चों की विविधता को स्वीकार करना चाहिए और उनका सम्मान करना चाहिए।
भागीदारी का सिद्धांत : सभी बच्चों को समान रूप से भाग लेने का अवसर मिलना चाहिए सभी बच्चों को स्कूल के जीवन में समान रूप से भाग लेने का अवसर मिलना चाहिए, जिसमें शैक्षणिक गतिविधियों, सामाजिक गतिविधियों और निर्णय लेने की प्रक्रियाएं शामिल हैं।
सहभागिता का सिद्धांत : माता-पिता और समुदाय को समावेशी शिक्षा में शामिल होना चाहिए। समावेशी शिक्षा तभी सफल हो सकती है जब माता-पिता और समुदाय इसमें सक्रिय रूप से शामिल हों। स्कूलों को माता-पिता और समुदाय के सदस्यों के साथ साझेदारी विकसित करनी चाहिए और उन्हें समावेशी शिक्षा के बारे में शिक्षित करना चाहिए।
लोचशीलता का सिद्धांत : शिक्षा लोचशील (लचीली) और अनुकूलन योग्य होनी चाहिए ताकि सभी बच्चों की विभिन्न आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके।
इसके अलावा शिक्षक और अन्य पेशेवरों को समावेशी शिक्षा के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए शिक्षकों और अन्य पेशेवरों को समावेशी शिक्षा के सिद्धांतों और प्रथाओं के बारे में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। समावेशी शिक्षा एक सतत प्रक्रिया है जिसके लिए निरंतर मूल्यांकन और सुधार की आवश्यकता होती है। स्कूलों को अपनी समावेशी शिक्षा प्रथाओं का मूल्यांकन करना चाहिए और यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक बदलाव करना चाहिए कि सभी बच्चों की जरूरतें पूरी हो रही हैं।
समावेशी शिक्षा की शुरुआत
1. संयुक्त राज्य अमेरिका में विकलांग व्यक्तियों का शिक्षा अधिनियम (IDEA):
- इस कानून, जिसे 1990 में संशोधित किया गया था, ने विकलांग बच्चों को सार्वजनिक शिक्षा में मुख्यधारा में शामिल करने पर अधिक जोर दिया।
- इसने समावेशी शिक्षा को बढ़ावा देने में भी मदद की।
2. सलामांका घोषणा :
- यह घोषणा, जो जून 1993 में स्पेन के सलामांका शहर में आयोजित विश्व शिक्षा सम्मेलन में अपनाई गई थी, ने सभी बच्चों के लिए शिक्षा का अधिकार और समावेशी शिक्षा के महत्व पर जोर दिया।
- इस घोषणा ने विशेष शिक्षा से समावेशी शिक्षा की ओर शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन की शुरुआत की।
इसके अलावा 1993 में, यूनेस्को ने सभी बच्चों के लिए शिक्षा पर विश्व सम्मेलन आयोजित किया। इस सम्मेलन ने समावेशी शिक्षा को शिक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीति के रूप में मान्यता दी। 1993 में, विश्व बैंक ने समावेशी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए एक नई पहल शुरू की।
भारत में समावेशी शिक्षा के भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदम
समेकित शिक्षा योजना - 1974 (Integrated Education for Disabled Children - IEDC)
वर्ष 1974 से पूर्व भारत सरकार ने विकलांग व्यक्तियों की शिक्षा के लिए कोई प्रावधान नहीं किये गये थे। वर्ष 1974 में विकलांग बच्चों की शिक्षा के लिए सामान्य स्कूलों में शिक्षा प्रदान करने के लिए समेकित शिक्षा योजना शुरू की गई। उन्हें स्कूल में शिक्षा प्रदान करने हेतु सहायक सेवाएँ प्रदान की गई। यह भारत में विकलांग व्यक्तियों की शिक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण प्रारंभिक कदम था।
संशोधित राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1992
संशोधित राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1992 के तहत् वर्ष 1993 में विकलांग बच्चों को समावेशी शिक्षा प्रदान करने का भी प्रावधान है।
भारतीय पुनर्वास परिषद, नई दिल्ली
भारतीय पुनर्वास परिषद (Rehabilitation Council of India) की स्थापना 1886 ई. में एक पंजीकृत सोसायटी के रूप में की गई थी, जिसे सितंबर, 1992 में संसद द्वारा पारित भारतीय पुनर्वास परिषद अधिनियम के द्वारा 22 जून, 1993 को एक संवैधानिक निकाय बना दिया गया। इसका मुख्य उद्देश्य दिव्यांगों के पुनर्वास के संदर्भ में देश में व देश के बाहर प्रशिक्षण पाठ्यक्रम चलाने वाले संस्थानों/विश्वविद्यालयों को मान्यता देना है।
विकलांग व्यक्तियों के लिए समान अवसर, अधिकार संरक्षण और पूर्ण भागीदारी अधिनियम, 1995 (पीडब्ल्यूडी अधिनियम, 1995)
यह अधिनियम 30 दिसंबर 1995 को पारित हुआ था, जिसका उद्देश्य विकलांग व्यक्तियों (दिव्यांगजनों) के अधिकारों और सामाजिक भागीदारी को बढ़ावा देना, उन्हें समान अवसर प्रदान करना और उनके जीवन स्तर को बेहतर बनाना है। अधिनियम की मुख्य विशेषताएं:
- यह अधिनियम 7 प्रकार की विकलांगताओं को मान्यता देता है, जिनमें शारीरिक, बौद्धिक, दृष्टि, श्रवण, भाषण, और मानसिक विकलांगताएं शामिल हैं।
- दिव्यांगजनों को शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य सेवा, सामाजिक सुरक्षा, और भागीदारी सहित सभी क्षेत्रों में समान अधिकार और अवसर प्राप्त होंगे।
- सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि सभी सार्वजनिक भवन, परिवहन, और सेवाएं दिव्यांगजनों के लिए सुलभ हों।
- सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में दिव्यांगजनों के लिए 3% आरक्षण का प्रावधान है।
सर्व शिक्षा अभियान 2001
सर्व शिक्षा अभियान की शुरुआत 24 मई 2001 को भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने की थी। यह अभियान 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने का एक राष्ट्रीय कार्यक्रम था। इसका उद्देश्य सभी बच्चों, विशेष रूप से लड़कियों, वंचित समूहों और विकलांग बच्चों के लिए प्राथमिक शिक्षा तक पहुंच सुनिश्चित करना।
राष्ट्रीय विकलांग वित्त और विकास निगम 2005 (National Handicapped Finance and Development Corporation - NHFDC) : इस निगम का उद्देश्य था विकलांग व्यक्तियों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करना।
राष्ट्रीय जन विकलांग नीति 2006
राष्ट्रीय जन विकलांग नीति 2006 का पुनर्गठन वर्ष 2006 में मीरा कुमार द्वारा किया गया। इसमें भारत में नियोग्य व विकलांग व्यक्तियों के पुनर्वास हेतु अन्य अधिनियमों, शैक्षिक व चिकित्सीय प्रशिक्षण प्रदान करने वाले संस्थानों का उल्लेख किया गया है। समावेशी शिक्षा के सन्दर्भ में विकलांग व्यक्तियों के लिये शिक्षा प्रदान कारने के लिये राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2006 में सामाजिक तथा आर्थिक विकास के लिये शिक्षा सबसे उपयोगी माध्यम है।
संविधान के अनुसार अनुच्छेद 21 (a) में शिक्षा को मूलभूत अधिकार माना गया है तथा निःशक्त व्यक्ति अधिनियम, 1995 की धारा 26 के अनुसार, कम से कमम 18 वर्ष की आयु के सभी विकलांग बच्चों को निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध करायी जानी है। वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार लगभग 55 प्रतिशता विकलांग व्यक्ति अनपढ़ है। विकलांग व्यक्तियों की समावेशी शिक्षा के माध्यम से सामान्य शिक्षा पद्धति की मुख्य धारा में लाये जाने की आवश्यकता है।
दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम 2016 (Rights of Persons with Disabilities Act, 2016)
इस अधिनियम ने 1995 के अधिनियम को बदलकर विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों को और अधिक सशक्त किया। इसमें शिक्षा, रोजगार, और अन्य क्षेत्रों में विकलांग व्यक्तियों के लिए अधिक समावेशी और सुलभ उपायों को शामिल किया गया।
दिव्यांगजन अधिकार विधेयक 2016
- 14 दिसंबर 2016 राज्य सभा में पारित
- 16 दिसंबर 2016 लोकसभा में विधेयक पारित
- 27 दिसंबर 2016 राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षर के बाद अधिनियम बना
- 30 अप्रैल 2017 को सम्पूर्ण भारत में लागू किया गया।
अधिनियम की विशेषताएं
- इस एक्ट में 17 अध्याय 102 अनुच्छेद व अनुसूची है।
- यह अधिनियम 21 प्रकार की विकलांगताओं को मान्यता देता है, जिसमें शारीरिक, बौद्धिक, दृष्टि, श्रवण, भाषण, और मानसिक विकलांगताएं शामिल हैं
- 6-18 वर्ष तक के दिव्यांगजनों को अनिवार्य और निशुल्क शिक्षा का अधिकार है।
- नौकरियों में आरक्षण 3% से बढ़ाकर 4% कर दिया गया है।
- उच्च शिक्षा में आरक्षण 5%. व 5 वर्ष की छूट प्रदान की गई है।
- न्यूनतम 40% तक की दिव्यांगता को परिभाषा में शामिल किया।
दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016
यह अधिनियम 28 दिसंबर 2016 को पारित हुआ था, जिसका उद्देश्य दिव्यांगजनों (विकलांग व्यक्तियों) के अधिकारों और सामाजिक भागीदारी को बढ़ावा देना, उन्हें समान अवसर प्रदान करना और उनके जीवन स्तर को बेहतर बनाना है।
यह अधिनियम 21 प्रकार की विकलांगताओं को मान्यता देता है, जिसमें शारीरिक, बौद्धिक, दृष्टि, श्रवण, भाषण, और मानसिक विकलांगताएं शामिल हैं।
(1) मानसिक मंदता (Mental Retardation)
- व्यक्ति समझने और बोलने आदि में अन्य हम उम्र बच्चों के समान कार्य नही कर पाता है
- व्यक्ति परिवार के किसी सदस्य को कभी मिर्गी दौरे आते है? या उसका शरीर जकड़ जाता है या वह बेहोश होता है
- व्यक्ति को स्वयं की आवश्यकता अभिव्यक्त करने में कठिनाई होती है
(2) ऑटिज्म (Autism Spectrum Disorder)
- व्यक्ति को किसी कार्य पर ध्यान केन्द्रित करने में कठिनाई होती है
- आँखे मिलाकर बात न करपाना/गुमसुम रहना
- व्यक्ति को अन्य लोगों से घुलने-मिलने में कठिनाई होती है
(3) बहु निःशक्तता (Multiple Disabilities Incuding/ deaf blindness)
- मानसिक मंदता सेरेब्रल पल्सी मानसिक रोगी/ चलन निःशक्तता / मूक निःशक्तता श्रवण निःशक्तता/ ऑटिज्म दृष्टि बाधित/ कुष्ठ रोग
- उपरोक्त निःशक्कता मे से 2 या 2 अधिक निःशक्तता से ग्रसित
4) सेरेब्रल पाल्सी/पोलियो/नर्वइंजरी आदि
- परिवार के किसी सदस्य को कभी पैरों में जकड़न चलने में कठिनाई हाथ से काम करने में कठिनाई होती है परिवार में किसी भी सदस्य को चलने में कृत्रिम अंग, वैशाखी, केलिपर इत्यादि का उपयोग करता है
(5) मानसिक रोगी (Mental Illness)
- अस्वाभाविक व्यवहार करता है? (खुद से बाते करना, भ्रम जाल, मतिभ्रम, व्यसन (नशे का आदि), अधिकतम डर/भय, किसी भी वस्तु या इंसान से अत्यधिक लगाव इत्यादि)
- परिवार के किसी सदस्य को बिना किसी कारण से जल्दी गुस्सा आ जाता है या गुमसुम अथवा अकेलापन अच्छा लगता है
- व्यक्ति अपनी स्वच्छता या दुनियादारी से अन्जान है
- व्यक्ति के मन में विचार आता है कि उसको कोई भगवान/भूत या बाहरी शक्ति उसे नियंत्रित करती है
- व्यक्त्ति के मन में बारबार आत्महत्या के विचार आते हैं? एवं डरता है
(6) श्रवण बाधित (Hearing Impairment)
- परिवार के किसी भी सदस्य को बहरापन अथवा सुनने में कठिनाई होती है
- बहरापन है ऊंचा सुनना या कम सुनता है
(7) मूक विकलांगता (Speech Impairment)
- परिवार का कोई सदस्य गूंगा है? या बोलने में कठिनाई होती है
- सामान्य बोली से अलग बोलता है? (जिसे कि परिवार के सदस्यों के अलावा अन्य लोग नही समझ पाते है)
(8) दृष्टि बाधित (Blindness)
- परिवार में कोई सदस्य है जिसे देखने में कठिनाई होती है (दृष्टिहीन) अंधा है।
9) अल्प दृष्टि (Low-vision)
- कम दिखता है (60 वर्ष से कम आयु की स्थिति में)
- रंगों की पहचान नहीं कर पाता है? (60 वर्ष से कम आयु की स्थिति में)
(10) चलन निःशक्तता (Locomotor disability)
- परिवार में किसी भी सदस्य को हाथ या पैर अथवा दोनों की निःशक्ता है
- लकवा है/हाथ या पैर कट गया है
(11) कुष्ठ रोग से मुक्त (Leprosy-cured)
- हाथ या पैर या अंगुलियों में विकृति टेढ़ापन है
- शरीर की त्वचा पर रंगहीन धब्बे
- हाथ या पैर या अंगुलियों में सुन्न हो जाना
(12) बौनापन (Dwarfism)
- व्यक्ति का कद व्यस्क होने पर भी 4 फुट 10 इंच/147 cm या इससे कम है
13) तेजाब हमला पीड़ित (Acid attack victim)
- शरीर के अंग हाथ पैर/आंख आदि तेजाब हमले की वजह से असामान्य/प्रभावित है
(14) मांसपेशी दुर्विकास (Muscular Distrophy)
- मांसपेशियां कमजोर है, मांसपेशियों में विकृति है
(15) स्पेसिफिक लर्निंग डिसप्ऐबिलिटी (Pecific Learning disabilities)
- बोलने, समझने, श्रुत लेख, लेखन, साधारण जोड, बाकी, गुणा, भाग में कठिनाई होती है
- व्यक्ति को आकार, भार, दूरी आदि को समझने में कठिनाई होती है
- व्यक्ति को एवं परिवार के किसी भी सदस्य को भाषा समझने या शब्दों का अर्थ समझने में कठिनाई होती है
- व्यक्ति को एवं किसी भी सदस्य को दिशा, चिन्ह समझने में एवं वस्तुओं का बोध करने में कठिनाई होती है
(16) बौद्धिक निःशक्तता (Intellectual disabilities)
- सीखने, समस्या समाधान, तार्किकता आदि में कठिनाई है
- प्रतिदिन के कार्यों में सामाजिक कार्यों में एवं अनुकूलन व्यवहार (Adaptive Behaviour) मे कठिनाई आती है
(17) मल्टीपल स्कलेरोसिस (Multiple Sclerosis)
- व्यक्ति के दिमाग एवं रीढ़ की हड्डी के समन्वय में परेशानी होती है
(18) पार्किंसंस रोग (parkinsons disease)
- हाथ पांव/मांसपेशियों में जकडन, तंत्रिका तंत्र प्रणाली संबंधी कठिनाई होना
(19) हीमोफीलिया/अधि रक्तस्त्राव (Haemophilia)
- चोट लगने पर अत्याधिक रक्त स्त्राव होता है रक्त बहना बन्द ही नहीं होना
(20) थैलेसीमिया (Thalassemia)
- डाक्टर ने खून में हीमोग्लोबीन की विकृति एवं मात्रा कम होना बताई हो
(21) सिकल सैल डिजीज (Sickle cell disease)
- चिकित्सक ने खून की अत्याधिक कमी (रक्त अल्पता) बताई हो
- खून की कमी से शरीर के अंग/अवयव खराब हो गये हो
अधिनियम की बाधाऐं व चुनौतियां
कार्यान्वयन में कठिनाइयां : अधिनियम के कार्यान्वयन में कई चुनौतियां हैं, जैसे कि शिक्षकों और सहायक कर्मचारियों की सहभागिता का अभाव पाया जाता है। उचित बुनियादी ढांचे की और जागरूकता की कमी भी दिखाई देती है।
सामाजिक कलंक और भेदभाव : विकलांग व्यक्तियों के प्रति सामाजिक कलंक और भेदभाव अभी भी मौजूद है, जो समावेशी शिक्षा को बाधित कर सकता है।
अनुसंधान और डेटा की कमी : विकलांग शिक्षा के क्षेत्र में अनुसरण और डेटा की कमी है, जो प्रभावी नीति निर्माण और कार्यक्रमों के विकास में बाधा डाल सकती है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 और समावेशी शिक्षा
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में विकलांग व्यक्तियों के लिए अंग्रेजी व हिंदी में "दिव्यांग" शब्द का प्रयोग करने को कहा गया है। सर्वप्रथम प्रधानमंत्री मोदी जी ने 2016 में दिव्यांग शब्द का प्रयोग किया था । दिव्यांग का शाब्दिक अर्थ है 'दिव्य आत्मा'
दिव्यांग का आशय ऐसे बालकों से है जो जन्म से शरीर के किसी अंग में दोष होता है या बाद में किसी बीमारी, दुर्घटना, आपात या चोट लगने के कारण उनके शरीर का अंग दोष-युक्त हो जाता है, दिव्यांग बालक कहलाते हैं।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में समावेशी शिक्षा के अंतर्गत मुख्य रूप से दिव्यंगता के दो प्रकारों पर फोकस किया गया है।
- रेसेरेब्रल पाल्सी/पोलियो/नर्वइंजरी आदि
- ऑटिज्म (Autism Spectrum Disorder)
नयी शिक्षा नीति 2020 (NEP 2020) में समावेशी शिक्षा (Inclusive Education) के लिए कई महत्वपूर्ण प्रावधान किए गए हैं। इनमें से कुछ प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित हैं:
समावेशी और समान शिक्षा का अधिकार : NEP 2020 में सभी बच्चों के लिए समान और समावेशी शिक्षा का प्रावधान किया गया है, विशेष रूप से समाज के वंचित और हाशिए पर पड़े समूहों के लिए।
विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चों के लिए प्रावधान : विकलांग बच्चों और विशेष जरूरतों वाले बच्चों के लिए समुचित संसाधन और सहायक उपकरण प्रदान करने पर जोर दिया गया है। इसमें शिक्षकों के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम और विशेष शिक्षकों की नियुक्ति शामिल है।
लिंग समानता : नीति में लड़कियों की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया गया है और लिंग समानता को बढ़ावा देने के लिए कई उपाय प्रस्तावित किए गए हैं, जैसे छात्रवृत्तियाँ, फ्री साइकल वितरण, और सुरक्षित स्कूल परिवहन व्यवस्था।
प्रवासी बच्चों के लिए समर्थन : प्रवासी बच्चों के शिक्षा की निरंतरता बनाए रखने के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं, जैसे फ्लेक्सिबल स्कूलिंग और कैच-अप पाठ्यक्रम।
विभिन्न भाषाओं में शिक्षा : नीति में मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा में शिक्षा प्रदान करने की सिफारिश की गई है, जिससे बच्चों को बेहतर समझ और समावेशिता मिल सके।
समुदाय और सामाजिक सहभागिता : नीति में स्कूलों और समुदाय के बीच मजबूत संबंध स्थापित करने और समाज के सभी वर्गों के बच्चों को एक साथ लाने के प्रयास शामिल हैं।
आर्थिक सहायता : वंचित समूहों के बच्चों के लिए छात्रवृत्ति, फ्रीशिप, और अन्य वित्तीय सहायता की व्यवस्था की गई है ताकि कोई भी बच्चा आर्थिक तंगी के कारण शिक्षा से वंचित न रह जाए।
भारत के संविधान में समावेशी शिक्षा के लिए सशक्त व्यक्तियों के लिए प्रावधान :
भारत का संविधान सभी नागरिकों, जिनमें सशक्त व्यक्ति भी शामिल हैं, के लिए शिक्षा के अधिकार की गारंटी देता है। यह विभिन्न प्रावधानों के माध्यम से समावेशी शिक्षा को भी बढ़ावा देता है।
मौलिक अधिकार :
अनुच्छेद 14 : यह अनुच्छेद सभी नागरिकों को कानून के समक्ष समानता और समान सुरक्षा प्रदान करता है, जिसमें शिक्षा का समान अवसर भी शामिल है।
अनुच्छेद 15 : यह अनुच्छेद धर्म, जाति, लिंग, जन्म स्थान या किसी अन्य आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित करता है। इसमें शिक्षा तक समान पहुंच का अधिकार भी शामिल है।
अनुच्छेद 21 : यह अनुच्छेद जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है, जिसमें शिक्षा का अधिकार भी शामिल है।
अनुच्छेद 21(a) 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार प्रदान करता है।
अनुच्छेद 46 : यह अनुच्छेद राज्य को सभी नागरिकों, विशेष रूप से कमजोर वर्गों के लिए, शिक्षा को बढ़ावा देने और उसे संरक्षण प्रदान करने का निर्देश देता है।
महत्वपूर्ण तथ्य
- 13 दिसंबर 2006 को UNO ने दिव्यांगजनों के अधिकार के लिए अधिवेशन का आयोजन किया। भारत ने इस पर 1 अक्टूबर, 2007 को हस्ताक्षर किए।
- 2011 की जनगणना के आधार पर दिव्यांगजनों का कुल जनसंख्या में 2.21% है।
- भारतीय दृष्टि दिव्यांगजन सशक्तीकरण संस्थान (देहरादून)
- दीपेंद्र सिंह बनाम भारत मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि विकलांग बच्चों को शिक्षा तक समान पहुंच का अधिकार है और उन्हें नियमित स्कूलों में समावेशित किया जाना चाहिए।
भारत के प्रसिद्ध दिव्यांग व्यक्ति
भारत में कई प्रसिद्ध विकलांग व्यक्तियों ने अपने संघर्ष और सफलता की कहानियों से समाज को प्रेरित किया है। इनमें से कुछ प्रमुख नाम हैं:
सुधा चंद्रन : एक प्रसिद्ध नृत्यांगना और अभिनेत्री, जिन्होंने दुर्घटना में पैर खोने के बाद भी अपनी नृत्यकला को नहीं छोड़ा और जयपुर फुट की मदद से नृत्य करना जारी रखा।
रविंद्र जैन : एक प्रसिद्ध संगीतकार और गायक, जिन्होंने जन्म से ही दृष्टिहीन होने के बावजूद भारतीय संगीत में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
गिरीश शर्मा : एक पैर के बिना बैडमिंटन खिलाड़ी, जिन्होंने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई पुरस्कार जीते।
दीपक कुमार चौधरी : दृष्टिहीन पर्वतारोही, जिन्होंने माउंट एवरेस्ट समेत कई पर्वत चोटियों पर चढ़ाई की है।
अरुणिमा सिन्हा : पहली विकलांग महिला जिन्होंने माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई की। एक ट्रेन दुर्घटना में उन्होंने अपना पैर खो दिया था।
शीतल देवी : जम्मू और कश्मीर की रहने वाली एक भारतीय पैरा तीरंदाज हैं। वे जन्मजात रूप से बाजुओं से विकलांग हैं, लेकिन उन्होंने अपनी दृढ़ता और लगन से तीरंदाजी में महारत हासिल की है और कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीते हैं।
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