श्यामलाताल : विवेकानंद आश्रम की मनमोहक शांति हिमालय की गोद में बसा विवेकानंद आश्रम, श्यामलाताल, उत्तराखंड के चम्पावत जिले का एक ऐसा रत्न है, जो प्रकृति और आध्यात्मिकता का अनूठा संगम प्रस्तुत करता है। समुद्र तल से लगभग 5,000 फीट की ऊँचाई पर स्थित यह स्थल अपने आलौकिक सौंदर्य और शांति से हर किसी का मन मोह लेता है। यहाँ से टनकपुर-वनबसा और शारदा नदी घाटी के मनोरम दृश्यों के साथ-साथ नंदादेवी, पंचाचूली और नंदकोट जैसी बर्फीली चोटियों का लुभावना नजारा देखने को मिलता है, जो आत्मा को सुकून और आँखों को तृप्ति देता है। श्यामलाताल : एक झील का जादू आश्रम के ठीक निकट एक छोटी, परंतु अत्यंत आकर्षक झील है, जिसे श्यामलाताल के नाम से जाना जाता है। इस झील की लंबाई लगभग 500 मीटर और चौड़ाई 200 मीटर है। इसका गहरा श्याम वर्ण वाला जल इतना मनमोहक है कि स्वामी विवेकानंद ने स्वयं इसे 'श्यामलाताल' नाम दिया। झील के शांत जल में आसपास की हरी-भरी पहाड़ियों और नीले आकाश की छवि ऐसी दिखती है, मानो प्रकृति ने स्वयं एक कैनवास पर चित्र उकेरा हो। कैसे पहुँचें? विवेकानंद आश्रम, चम्पावत जिला मुख्यालय से लगभग 45 किलोमीटर ...
उत्तराखंड की प्रसिद्ध लोककथाएं
लोककथा : एक गंगोल सौ रंगोल
बहुत समय पहले की बात है। पिथौरागढ़ जिले के गंगोलीहाट क्षेत्र में हर महीने 'हाट' यानी 'बाजार' लगा करती थी। जिसमें लगभग सौ व्यापारियों की दुकान लगती थी। दूर-दूर से व्यापारी उस बाजार में व्यापार करने आते थे। तत्कालीन समय में व्यापार के लिए विनिमय प्रणाली और सिक्कों के माध्यम से व्यापार होता था। व्यापार में मुख्य रूप से सूती व ऊनी वस्त्र, सूखे मेवे, विभिन्न प्रकार के बर्तन चीनी, तेल, गुड़, तम्बाकू, साबुन, सौन्दर्य सामग्री, जूते व खालें आदि प्रमुख थे।
गंगोलीहाट के लोग उन व्यापारियों को अपने खेतों में दुकान लगाने के लिए जगह देते थे। जिसके बदले किराया और उनकी सामग्री मुफ्त में लिया करते थे जो व्यापारियों के लिए घाटे का सौदा होता था। इससे नाखुश होकर व्यापारियों को एक तरकीब सूझी। और उन्होंने मिलकर यह फैसला किया कि वह अगली बार अपने व्यापार के लिए किसी दूसरे स्थान पर बाजार लगाएंगे।
यह बात एक गंगोल यानी कि गंगोलीहाट के व्यक्ति को मालूम पड़ गई और उसने एक योजना बनाई। वह उन व्यापारियों के पास गया और उनसे कहा - मेरे पास 4 नाली का एक बड़ा खेत है। (आज के वर्तमान समय में 4 नाली को 8640 वर्ग के बराबर फुट माना जाता है) जहां आप सभी लोग मुफ्त में अपना व्यापार कर सकते हो । सभी व्यापारी इस बात से सहमत हुए और उन्होंने व्यापार करने के लिए हामी भर दी।
व्यक्ति ने उनसे कहा - आप सभी लोग अपना सामान सुरक्षित तरीके से इस खेत में रख दें और कल प्रातः आकर अपनी बाजार लगाएं। व्यापारी अपना सारा सामान उस खेत में रखकर निश्चिंत होकर अपने-अपने स्थान पर चले गए। उनके जाने के बाद वह व्यक्ति उस क्षेत्र के स्थानीय राजा के मंत्री को बुलाकर लाया। और एक निश्चित राशि में पूरा खेत सामान सहित उसे बेचकर वहां से चला गया।
अगली सुबह जब सभी व्यापारी उस जगह पर आए और मंत्री ने उनसे वहां आने का कारण पूछा ? व्यापारियों ने उसे अपने व्यापार के बारे में बताया । यह सुनकर मंत्री ने कहा - यह जगह सामान सहित मैंने खरीद ली है। अगर तुम्हें यहां बाजार लगानी है तो तुम्हें जगह और सामान का किराया देना पड़ेगा। मजबूरन व्यापारियों को उसकी बात माननी पड़ी। व्यापारी अपना फायदा करने के स्थान पर अपना दोगुना घाटा कर चुके थे और एक गंगोल (गंगोलीहाट का व्यक्ति) सौ व्यापारियों को बेवकूफ बनाकर वहां से जा चुका था।
इस घटना के बाद से पूरे क्षेत्र में एक कहावत "एक गंगोल सौ रंगोल" प्रचलित हो गई। जिसका अर्थ है - गंगोलीहाट का एक व्यक्ति सौ अन्य लोगों के बराबर बुद्धिमान व चालक हो सकता है।
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