उत्तराखंड के लोकगीत और लोक नृत्य पहाड़ की अपनी ही बोली और संस्कृति है यहाँ के लोक गीतों का विस्तृत स्वरूप मुक्तको के रूप में मिलता है। विभिन्न अवसरों तथा विविध प्रसंगी में मुक्तकों का व्यवहार होता है, पहाड़ी समाज में अपनी विशिष्ट संस्कृति पौराणिक काल से रही है. न्यौली इसे न्यौली, न्यौल्या या वनगीत के नामों से पुकारा जाता है, न्यौली का अर्थ किसी नवीन स्त्री को नवीन रुप में सम्बोधन करना और स्वर बदल बदलकर प्रेम परक अनुभूतियों को व्यक्त करना है। न्यौली प्रेम परक संगीत प्रधान गीत है जिसमें दो-दो पंक्ति होती है। पहली पंक्ति प्रायः तुक मिलाने के लिए होती है। न्यौली में जीवन चिन्तन की प्रधानता का भाव होता है। ब्योली ब्योली रैना, मेरो मन बस्यो परदेश, कब आलो मेरो सैंया, मेरो मन लियो हदेश। (अर्थ: रात बीत रही है, मेरा मन परदेश में बसा है। कब आएगा मेरा प्रिय, जिसने मेरा मन ले लिया।) "सबै फूल फुली यौछ मैथा फुलौ ज्ञान, भैर जूँला भितर भूला माया भूलै जन, न्यौली मया भूलै जन", बैरा (नृत्य गीत) बैरा का शाब्दिक अर्थ संघर्ष है जो गीत युद्ध के रूप में गायकों के बीच होता है। अर्थात् यह कुमाऊं क्षे...
उत्तराखंड की प्रसिद्ध लोककथाएं
लोककथा : एक गंगोल सौ रंगोल
बहुत समय पहले की बात है। पिथौरागढ़ जिले के गंगोलीहाट क्षेत्र में हर महीने 'हाट' यानी 'बाजार' लगा करती थी। जिसमें लगभग सौ व्यापारियों की दुकान लगती थी। दूर-दूर से व्यापारी उस बाजार में व्यापार करने आते थे। तत्कालीन समय में व्यापार के लिए विनिमय प्रणाली और सिक्कों के माध्यम से व्यापार होता था। व्यापार में मुख्य रूप से सूती व ऊनी वस्त्र, सूखे मेवे, विभिन्न प्रकार के बर्तन चीनी, तेल, गुड़, तम्बाकू, साबुन, सौन्दर्य सामग्री, जूते व खालें आदि प्रमुख थे।
गंगोलीहाट के लोग उन व्यापारियों को अपने खेतों में दुकान लगाने के लिए जगह देते थे। जिसके बदले किराया और उनकी सामग्री मुफ्त में लिया करते थे जो व्यापारियों के लिए घाटे का सौदा होता था। इससे नाखुश होकर व्यापारियों को एक तरकीब सूझी। और उन्होंने मिलकर यह फैसला किया कि वह अगली बार अपने व्यापार के लिए किसी दूसरे स्थान पर बाजार लगाएंगे।
यह बात एक गंगोल यानी कि गंगोलीहाट के व्यक्ति को मालूम पड़ गई और उसने एक योजना बनाई। वह उन व्यापारियों के पास गया और उनसे कहा - मेरे पास 4 नाली का एक बड़ा खेत है। (आज के वर्तमान समय में 4 नाली को 8640 वर्ग के बराबर फुट माना जाता है) जहां आप सभी लोग मुफ्त में अपना व्यापार कर सकते हो । सभी व्यापारी इस बात से सहमत हुए और उन्होंने व्यापार करने के लिए हामी भर दी।
व्यक्ति ने उनसे कहा - आप सभी लोग अपना सामान सुरक्षित तरीके से इस खेत में रख दें और कल प्रातः आकर अपनी बाजार लगाएं। व्यापारी अपना सारा सामान उस खेत में रखकर निश्चिंत होकर अपने-अपने स्थान पर चले गए। उनके जाने के बाद वह व्यक्ति उस क्षेत्र के स्थानीय राजा के मंत्री को बुलाकर लाया। और एक निश्चित राशि में पूरा खेत सामान सहित उसे बेचकर वहां से चला गया।
अगली सुबह जब सभी व्यापारी उस जगह पर आए और मंत्री ने उनसे वहां आने का कारण पूछा ? व्यापारियों ने उसे अपने व्यापार के बारे में बताया । यह सुनकर मंत्री ने कहा - यह जगह सामान सहित मैंने खरीद ली है। अगर तुम्हें यहां बाजार लगानी है तो तुम्हें जगह और सामान का किराया देना पड़ेगा। मजबूरन व्यापारियों को उसकी बात माननी पड़ी। व्यापारी अपना फायदा करने के स्थान पर अपना दोगुना घाटा कर चुके थे और एक गंगोल (गंगोलीहाट का व्यक्ति) सौ व्यापारियों को बेवकूफ बनाकर वहां से जा चुका था।
इस घटना के बाद से पूरे क्षेत्र में एक कहावत "एक गंगोल सौ रंगोल" प्रचलित हो गई। जिसका अर्थ है - गंगोलीहाट का एक व्यक्ति सौ अन्य लोगों के बराबर बुद्धिमान व चालक हो सकता है।
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