कस्तूरी मृग
उत्तराखंड का राज्य पशु - कस्तूरी मृग
चाहे भारत का राष्ट्र पशु हो या हो, किसी भी राज्य का राज्य पशु। यह जानना बहुत जरूरी है कि किसी भी देश व राज्य के लिए राज्य प्रतीक चिन्ह की आवश्यकता क्यों होती है? या फिर किसी भी पुष्प, पशु, पक्षी को प्रतीक चिन्ह का दर्जा क्यों दिया जाता है तो आइए जानते हैं।
प्रतीक चिन्हों की आवश्यकता क्यों?
किसी भी देश या राज्य के विकास को सही दिशा प्रदान करने के लिए प्रतीक चिन्ह बनाए जाते हैं। प्रतीक चिन्हों से देश को एक विशिष्ट पहचान मिलती है और यह प्रतीक चिन्ह देश की उन्नति में सहायक होते हैं। प्रतीक चिन्हों का चुनाव प्रतीक चिन्हों की विशेषता व लाभ देखकर किया जाता है। जैसे - भारत के राष्ट्रीय पुष्प कमल की मुख्य विशेषता यह है कि वह कीचड़ में पैदा होने के बाद भी स्वयं को स्वच्छ और सुंदर बनाए रखता है। जो संदेश देता है की जन्म कहीं भी हो 'मानव को अपना व्यवहार और आचरण सदैव मधुर रखना चाहिए' इसी प्रकार हम जानेंगे आखिर उत्तराखंड राज्य ने कस्तूरी मृग को राज्य पशु क्यों बनाया।
कस्तूरी मृग की विशेषता
देवभूमि उत्तराखंड में पाए जाने वाले कस्तूरी मृग प्रकृति की सुंदरतम जीवो में से एक है। कस्तूरी मृग देखने में तो हिरण जैसे ही दिखते हैं । लोक मान्यताओं के अनुसार इन्हें हिरण ही समझा जाता है लेकिन जीव विज्ञान की दृष्टि से कस्तूरी मृग को हिरणों की कैटेगरी में शामिल नहीं किया जाता है। कस्तूरी मृग की बनावट असली हिरणों से अलग होती है। इनके हिरणों के सामान सींग नहीं होते हैं । आत्मरक्षा के लिए दोनों दांत बाहर की तरफ निकले रहते हैं। इनकी सूघने की शक्ति कुत्तों से भी अधिक तेज होती है। कस्तूरी मृग मुख्यता हिमालय श्रेणी के 3600 मीटर से 4400 मीटर की ऊंचाई पर पाए जाते हैं। इनके पीछे के पाँव आगे के पांव की अपेक्षा लंबे होते हैं जो पर्वतीय क्षेत्रों के कठिन भाग में चलने के अनुकूल बनाते हैं। कस्तूरी मृग भूरे रंग के होते हैं । उनके शरीर में काले पीले रंग के धब्बे पाए जाते हैं। इन जानवरों की मुख्य विशेषता यह है कि वह अपना निवास स्थान नहीं छोड़ते है। कस्तूरी मृग को "हिमालय का मस्क डियर" कहा जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम मास्कस काइसोगास्टर है इन्हें जुगाली करने वाला भी मृग कहा जाता है। कस्तूरी मृग को मुख्य भोजन केदारपाती होता है।
कस्तूरी मृग के प्रकार
कस्तूरी मृग तीन प्रकार की होती हैं -
- कपिल - नेपाल की कस्तूरी मृृग को कपिल कहा जाता है।
- पिंगल - कश्मीर की कस्तूरी मृग पिंंगल कहा जाता है।
- कृष्णा - सिक्किम की कस्तूरी मृग कृष्णा कहा जाता है ।
उत्तराखंड राज्य में कस्तूरी मृग 4 प्रजाति पाई जाती है। वर्ष 2005 में उत्तराखंड में 279 कस्तूरी मृग थे। कस्तूरी मृग अंगूरलोटा कुल व मोशिडे परिवार का सदस्य है। कस्तूरी मृग. राज्य मे बहुतायात केदारनाथ , फूलों की घाटी, पिथौरागढ़, उत्तरकाशी में पाए जाते हैं।
कस्तूरी मृग के महत्व
कस्तूरी मृग अपनी सुंदरता के लिए नहीं अपितु अपनी नाभि में पाए जाने वाली कस्तूरी के लिए अधिक प्रसिद्ध है। कस्तूरी नर मृग के गुर्दा में स्थित ग्रंथि से प्राप्त की जाती है। कस्तूूूरी एक प्रकार का सुगंधित पदार्थ होता है। इसका रासायनिक रुप कस्तूरी मिथाइल ट्राईक्लोरो पेंटाडेकनाल है। एक मृग से कस्तूरी 3-3 वर्ष के अंतराल में 30 से 45 ग्राम तक प्राप्त किया जा सकता है। कस्तूरी का प्रयोग मुख्यतया औषधि उद्योग में दमा, मिर्गी का, हृदय संबंधी रोगों की दवाई बनाने में प्रयोग किया जाती है।
कस्तूरी मृग संरक्षण केंद्र
कस्तूरी मृग के महत्व को देखते हुए उत्तराखंड राज्य सरकार ने कस्तूरी मृगों के संरक्षण के लिए 2001 में राज्य पशु घोषित किया। वर्ष 1972 में कस्तूरी मृग संरक्षण के लिए केदारनाथ वन्य जीव विहार के अंतर्गत कस्तूरी मृग विहार की स्थापना की गई । और वर्ष 1974 में बागेश्वर जनपद में महरूड़ी कस्तूरी मृग अनुसंधान की स्थापना की।
कस्तूरी मृग प्रजनन केंद्र - काँचुला खर्क (1982)
कस्तूरी मृग की औसत आयु लगभग 20 वर्ष होती है और कस्तूरी मृग गर्भधारण अवधि 6 माह होती.है। वर्ष 1982 में कस्तूरी मृग प्रजनन व संरक्षण केंद्र स्थापना चमोली जिले काँचुला खर्क में की गई। उत्तराखंड राज्य में सर्वाधिक मात्रा में कस्तूरी मृग अस्कोट वन्यजीव अभ्यारण्य पिथौरागढ़ में पाए जाते हैं ।
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