वनबसा : शारदा नदी के तट पर बसा एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक नगर उत्तराखंड के चम्पावत जिले में वनबसा, एक ऐसा कस्बा है जो भारत-नेपाल सीमा पर बसा है और अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत व प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है। टनकपुर से मात्र 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह ग्राम पंचायत, जनपद की सबसे बड़ी पंचायतों में से एक है, जहाँ लगभग 10,000+ लोग निवास करते हैं। यहाँ अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग और अन्य समुदायों का सामंजस्यपूर्ण मिश्रण देखने को मिलता है, जो इस क्षेत्र को एक जीवंत सामाजिक ताने-बाने से जोड़ता है। प्रकृति और इतिहास का संगम शारदा नदी के तट पर बसा वनबसा, मैदानी और पर्वतीय संस्कृतियों का एक अनूठा मेल है। यह स्थान सदियों से पर्वतीय लोगों का प्रिय ठिकाना रहा है। पुराने समय में, जब लोग माल भावर की यात्रा करते थे, वनबसा उनका प्रमुख विश्राम स्थल था। सर्दियों में पहाड़ी लोग यहाँ अपनी गाय-भैंस चराने आते और दिनभर धूप में समय बिताकर लौट जाते। घने जंगलों के बीच बसे होने के कारण, संभवतः इस क्षेत्र का नाम "वनबसा" पड़ा। यहाँ की मूल निवासी थारू और बोक्सा जनजातियाँ इस क्ष...
पहाड़ी फौज
सामाजिक स्थिति
  क्या आपने कभी सोचा है? की फौज में पहाड़ियों की संख्या अधिक क्यों है? गांव से प्रत्येक तीसरे घर में एक फौजी है? 
 नहीं न,  आइए मैं बताता हूं आपको इसका राज क्या है ? 
            अगर इतिहास के पन्नों को टटोला जाए तो भारत में सभी मनुष्य 4 जातियों बटा हुआ है जिसका वर्णन ऋग्वेद के दसवें मंडल में "पुरुष सूक्ति" में किया गया है । ब्राह्मण, क्षत्रिय,  शूद्र और वैश्य । उस समय शूद्र और वैश्य जातियों को पढ़ने का अधिकार नहीं दिया गया थाा। इसलिए उन्हें वेदों और पुराणों का कोई ज्ञान नहीं था। लेकिन ब्राह्मणों द्वारा शूद्र और  वैश्य को कहानियां सुनाई जाती थी। और उस समय जो व्यापारी वर्ग और किसान वर्ग था। उनके घरों में पूजा-पाठ व हवन ब्राह्मणों के द्वारा संपन्न कराया जाता था । संपन्न कराने वाले लोग ब्राह्मण  जाति से थे । जिनका जीवन यापन राजा व्यापारी और किसान वर्ग के द्वारा दी गई दान दक्षिणा पर निर्भर था । जिसके कारण संपूर्ण वेदों और पुराणों का ज्ञान केवल ब्राह्मणों तक ही सीमित रह गया । लेकिन जैसे-जैसे समय बदला और बाहरी शक्तियों का आक्रमण होने लगा । भारतीय राजाओं के बाद मुगलों ने शासन किया और उसके बाद  16वीं शताब्दी में अंग्रेज आए। जिन्होंने संपूर्ण भारत पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला । जिस कारण यहां के जो राजा और उसकी प्रजा तथा लोगों के रहन-सहन में काफी बदलाव आए ।
1947 के बाद भारत
1947 के बाद जब  जब राजतंत्र खत्म हो गया और लोकतंत्र की स्थापना की गई । राजाओं के साथ ब्राह्मणों की भी स्थिति खराब हो गई। हालांकि आजादी को दिलाने के लिए ब्राह्मण वर्ग राजा और व्यापारी आदि लोगों ने काफी संघर्ष किए साथ ही साथ किसानों ने भी पूरी मदद की । लेकिन आजादी के बाद सबसे ज्यादा लाभ ब्राह्मणों जो बहुत ज्यादा शिक्षित थे,  और और व्यापारियों का हुआ। जो शिक्षित और समझदार व्यक्ति थे। उन्हें तो यह ज्ञान था कि राष्ट्रीय क्या होता है ? और भारत देश क्या है लेकिन जिनके पास यह ज्ञान नहीं था । इन सब बातों से अनभिज्ञ थे। इस तरह जब आजादी मिली तो हमें एक सेना की आवश्यकता थी। इस तरह जितने भी शिक्षित व्यक्ति थे। वह सेना में भर्ती हो रहे थे । और ऊंचे ऊंचे पदों पर उनकी नियुक्ति चल रही थी। (
चीन युद्ध - 1962
सन 1962 में चीन के युद्ध के बाद यह नियुक्ति और तेज हो गई । और ज्यादा मजबूत सेना बनाने के लिए अधिक से अधिक लोगों की सेना में भर्ती की गई । तो केवल उन दिनों ब्राह्मण वर्ग ही सबसे ज्यादा शिक्षित था। इसलिए उच्च पदों पर ब्राह्मण वर्ग को ही बिठाया गया। उसके बाद भाई भतीजावाद शुरू हुआ। हालांकि अंबेडकर द्वारा संविधान में दलित और शूद्र व्यक्तियों के लिए भी कई प्रावधान किए गए । लेकिन भाई - भतीजावाद काफी स्तर पर पहले ही फैल चुका था जो अभी भी काफी स्तर पर यह काम चल रहा है तो मेरा सवाल यह है कि जब किसी के परिवार का सेना में पहले से ही भर्ती है तो उसके भाई या पुत्र या फिर कोई अन्य व्यक्ति को सेना में आरक्षण क्यों?
सवाल देश की रक्षा का
             अब हम अपने टॉपिक पर आते हैं कि पहाड़ से ही फौजियों का सबसे ज्यादा सिलेक्शन क्यों होता है ? जैसा कि मैंने बताया था। ब्राह्मण वर्ग का जो जीवन यापन था । वह दान दक्षिणा पर आधारित था। जिसके कारण उसके पास पर्याप्त धन होने के कारण उसने अपना जीवन एक अनुकूल वातावरण में चुना , जहां पहाड़ हुआ करते थे। जिसके कारण संपूर्ण पहाड़ पर पहाड़ी वर्गों का अर्थात पहाड़ी शासको का नियंत्रण हो गया। पहले कत्यूरी,  परमार फिर सोमचंद( 11 वीं सदी)  ने अल्मोड़ा में चंद वंश की स्थापना की । वहीं पर अपना राज्य स्थापित कर लिया। लेकिन जब देश आजाद हुआ । तो इनकी  जिंदगी  खतरे में आ गई और इस तरह फिर जीवन यापन ना होने के कारण एक ही विकल्प था । कि सेना में जाएं हालांकि विकल्प और भी थे। लेकिन बात थी देश की रक्षा की और देश की रक्षा के लिए अधिक से अधिक सैनिकों की जिन्होंने 1962, 1965, 1971 और 1999 में हमें पड़ोसी देशों से सुरक्षित रखा । इसके लिए उनका बहुत-बहुत धन्यवाद। 
निष्कर्ष
वर्तमान समय में सरकार के द्वारा रोजगार प्रदान करने के लिए अनेक प्रकार की योजनाएं एवं संस्थाएं चलाई जा रही हैं  जहां रोजगार प्राप्त करने के बहुत सारे विकल्प है । लेकिन आप सभी लोगों से प्रार्थना है कि क्याभतीजावाद को बढ़ावा ना देकर जो सक्षम एवं कुशल नौजवान है। उन्हीं को सेवा का मौका दें । और आरक्षण पर उंगली ना उठाएं,  क्योंकि इतिहास गवाह है - शूद्र और वैश्य का सदियों से शोषण होता रहा है। कोशिश करें - कि आप लोग अधिक से अधिक उन लोगों की मदद कर सकें । अभी भी देश में अशिक्षित लोगों की संख्या बहुत अधिक है,  और जब तक देश में अशिक्षित रहेंगे । तभी तक देश में गरीबी रहेगी और जब तक गरीबी रहेगी तब तक किसी भी देश का विकास नहीं हो सकता ।
धन्यवाद।
                      जय हिंद जय भारत
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Thoda or sudhar karte..ud viram chini ka use nhi hua h
जवाब देंहटाएंJi jarur.. Aapki baat ka dyan rakhenge
हटाएंThanku ...aapne ek mehtsvpurn jaankari di h..
जवाब देंहटाएंNice information
जवाब देंहटाएंNice
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