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Uksssc Mock Test - 132

Uksssc Mock Test -132 देवभूमि उत्तराखंड द्वारा आगामी परीक्षाओं हेतु फ्री टेस्ट सीरीज उपलब्ध हैं। पीडीएफ फाइल में प्राप्त करने के लिए संपर्क करें। और टेलीग्राम चैनल से अवश्य जुड़े। Join telegram channel - click here उत्तराखंड समूह ग मॉडल पेपर  (1) सूची-I को सूची-II से सुमेलित कीजिए और सूचियां के नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।              सूची-I.                  सूची-II  A. पूर्वी कुमाऊनी वर्ग          1. फल्दाकोटी B. पश्चिमी कुमाऊनी वर्ग       2. असकोटी  C. दक्षिणी कुमाऊनी वर्ग       3. जोहार D. उत्तरी कुमाऊनी वर्ग.        4.  रचभैसी कूट :        A.   B.  C.   D  (a)  1.    2.  3.   4 (b)  2.    1.  4.   3 (c)  3.    1.   2.  4 (d) 4.    2.   3.   1 (2) बांग्ला भाषा उत्तराखंड के किस भाग में बोली जाती है (a) दक्षिणी गढ़वाल (b) कुमाऊं (c) दक्षिणी कुमाऊं (d) इनमें से कोई नहीं (3) निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए 1. हिंदी में उच्चारण के आधार पर 45 वर्ण है 2. हिंदी में लेखन के आधार पर 46 वर्ण है उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/ कौन से सही है? (a) केवल 1 (b) केवल 2  (c) 1 और 2 द

थारू समाज : एक विकसित सभ्यता

थारू समाज : एक विकसित सभ्यता

क्या आप जानते हैं कि थारू  समाज एक विकसित सभ्यता है? 


यदि कोई इस सभ्यता का पूर्ण रूप से अध्ययन करें तो उसको नजर आएगा कि जो विश्व जिस तरह के समाज की कल्पना करता है। वह सारे गुण थारू सभ्यता में सम्मिलित है शायद आपको इस बात का यकीन ना हो लेकिन यदि आप अपनी पूरी जीवन शैली और थोड़ा प्राचीन इतिहास टटोलकर देखेंगे तो आप पाएंगे कि थारू सभ्यता  एक विकसित सभ्यता थी।हालांकि वर्तमान समय में तकनीकी स्तर पर पीछे रह गई हैै। शायद तकनीकी स्तर पर पीछे रहने का भी एक कारण हो जैसा कि आपको मालूम है कि थारू सभ्यता एक प्रकृति की रक्षक हैै। वह सदैव प्रकृति से जुड़ कर रही है। और प्रकृति में ही देवी-देवताओं का निवास माना है 1947 में आजादी के बाद यह सभ्यता निरंतर विकास करती रही। और काफी प्रसिद्धि हासिल कर ली। लेकिन अशिक्षित होने के कारण इस सभ्यता का कोई इतिहास नहीं है। बाहरी इतिहासकारों ने अपने अपने अनुसार इस सभ्यता का वर्णन किया है।

पलायन की मुख्य वजह

         जब-जब कोई भी सभ्यता अगर तेजी से विकास करती है तो उसके आलोचक बहुत सारे हो जाते हैं । उसी प्रकार थारू समाज जो महाराणा प्रताप को अपना पूर्वज मानते हैं और राणा अपने आप को राजपूत कहलाना पसंद करते हैं। थारू समाज के अनुसार वह थार मरुस्थल से पलायन होकर आए हैं । सन 1576 में महाराणा प्रताप और अकबर और मानसिंह की संयुक्त सेना ने जब महाराणा प्रताप के राज्य चित्तौड़ पर आक्रमण किया । तब भारी मात्रा में पलायन हुआ लेकिन विभिन्न इतिहासकार विभिन्न प्रकार के मत प्रस्तुत करते हैं, और बताते हैं कि थारू समाज शाक्य वंश से संबंधित है, तो कोई नेपाल का मूल निवासी बताता है तो कोई मंगोलॉयड बताते हैं उन्हीं में से एक इतिहासकार रहे हैं। रामानंद प्रसाद सिंह जिन्होंने एक पुस्तक में "द रियल स्टोरी ऑफ द थारूज "(१९८८ ई़) ने लिखा है कि थारू नेपाल से हैं और राजपूतों का वंशज मानने वाला दावा गलत ठहराते हैं । उनके अनुसार पद्मावती प्रेम कथा काल्पनिक मानी जाती है । _1303 में अलाउद्दीन खिलजी का आक्रमण राजा रतन सिंह के महल पर हुआ था । जोकि मेवाड़ में है उनके अनुसार उस समय कोई पलायन नहीं हुआ था । हो सकता है यह बात सच है कुछ इतिहासकार इस घटना को भी राणा राजपूत होने का कारण मानते हैंं। वही रामानंद प्रसाद सिंह के अनुसार 1576 में भी कोई पलायन नहीं हुआ था। यदि वह पलायन होने की वजह को मान भी लेते हैं तो उनका कहना है कि युद्ध के कारण जिन रानियों ने किसानों और शिल्पकारों व अन्य वर्गों के साथ पलायन किया होगा तथा बाद में विवाह भी किया होगााा ।। तो उनके अनुसार रानियां राजपूत थी लेकिन किसान और शिल्पकार राजपूत नहीं थे। इसलिए राणा अर्थात थारू राजपूत नहीं कह लाए जा सकते क्योंकि उनका कहना है कि भारत एक पितृसत्तात्मक देश है ना कि मातृसत्तात्मक।
         तो मैं रामानंद प्रसाद जी की बुक की कड़ी आलोचना करता हूं और सच यह है कि रामानंद प्रसाद सिंह जी थारू जाति के निवासी नहीं है। इसलिए उन्होंने ऐसी बात कही होंगी। क्योंकि जब भी कोई सभ्यता तेजी से विकास करती है तो आलोचक मिल ही जाते हैं। हालांकि थारू जाति का इतिहास अभी अंधकार में है। और धूमिल है लेकिन यह पूर्ण सत्य है कि 1576 में पलायन हुआ था। जैसा की एनसीईआरटी किताब में बताया है कि जब अकबर और मानसिंह की संयुक्त 8000 की सेना चित्तौड़ की ओर आगे बढ़ती है। तभी राणा प्रताप पूर्वानुमान लगा लेते हैं । चित्तौड़ के आसपास के सभी इलाकों को बंजर कर देते हैं ताकि मुगल सेना उसमें छुप ना सके साथ ही साथ राजपूत सैनिकों की रानियां और पलायन कर देते हैंं। और खुद 3000 सैनिक तथा 500 किलो के साथ अकबर की सेना से लड़ाई करने के लिए हल्दीघाटी नामक स्थान पर पहुंच जाते हैं । जिस पर 4 घंटे की भयंकर मारकाट होती है । लेकिन जब राणा जी को यह आभास हो जाता है कि मैं युद्ध हार जाऊंगा तभी झाला माना नामक सरदार ने उनके प्राणों की रक्षा की और वहां से भाग निकलने में मदद की उस युद्ध में 1600 सैनिकों की मृत्यु हो जाती है और शेष सैनिक राणा जी के साथ जंगल मैं घास की रोटियां खा कर सही समय का इंतजार करते हैं (1585 के आसपास पुनः गद्दी पर बैठ जाते हैं । सन 1597 में राणा प्रताप जी की मृत्यु हो जाती है) लेकिन इन सब के पीछे जो पलायन हुआ। उनका कहीं इतिहास नहीं मिलता है तो सोचने वाली बात यह है कि यदि पलायन नहीं हुआ होगा। तो वह 3000 सैनिकों की रानियां कहां गई होंगी जैसा कि आप सब जानते हैं,  कि अकबर और उसके सैनिक  निर्दयी थेे। जब भी किसी राज्य पर आक्रमण करते थे तो बहुत अधिक अत्याचार मारकाट और बहू बेटियों के साथ बलात्कार किया करते थे। तो राणा प्रताप इतने बेवकूफ तो नहीं होंगे जो युद्ध जाने से पहले इस समस्या का समाधान नहीं किया होगा। जो इतिहासकार यह कहते हैं कि पलायन नहीं हुआ तो आपसे प्रश्न है कि उस स्थिति में क्या हुआ होगाा। जैसा कि पता है कि मालवा में रूपमती को पाने के लिए किस प्रकार अकबर ने उसके राज्य पर अधिकार किया । उसके बाद रानी दुर्गावती से भी लड़ाई की तो चित्तौड़ को इतनी आसानी से कैसे छोड़  सकते थेे। यह भी एक तथ्य है जो पलायन की ओर इंगित करता है तथा मुगल सेनाओं से काफी परेशान हो चुके थेे। इसलिए एक शांत वातावरण की तलाश में नैनीताल से खटीमा तक के क्षेत्र में अपना निवास स्थल बनाया और इस तरह 12 गांव की स्थापना की जिस की स्मृति में बारह राणा हॉस्टल की स्थापना की जो सिडकुल सितारगंज में स्थित है।
 (१२  गांव के बारे में मैं अगले पेज में बताऊंगा) 

निष्कर्ष

इस तरह राणा अपने आप को राजपूत कहलाते हैं और रही बात पितृसत्तात्मक की तो भारत देश पितृसत्तात्मक है ना कि भारत की समस्त जनजातियां और सभी कबीले पितृसत्तात्मक हैं और यह दिन  ब्राह्मणों की है ।हमेशा से ही यह रहा है कि जिसका प्रभाव अधिक होगा वही वंश को आगे बढ़ाएगा तो थारू समाज मातृसत्तात्मक सभ्यता है अर्थात माता का प्रभाव अधिक रहा है जिसके आधार पर यह कहा जा सकता है । कि राणा राजपूतों में शामिल है क्योंकि उनके अंदर भी राजपूतों का खून दौड़ रहा है । राजपूतों की भांति ही तेज और फुर्ती है । महाराणा प्रताप की तरह ही स्वाभिमानी है । जिन्होंने कभी किसी की गुलामी नहीं की अंग्रेजों के भी समय में खटीमा से सितारगंज तक के क्षेत्रों में अंग्रेजों का प्रभाव कम रहा है ।धार्मिक और सामाजिक स्थिति में पूर्ण रूप से राजपूतों के समान है इस आधार पर हम राणा राजपूत महाराणा की सेना थी। राणा राजपूत ने कभी यह नहीं कहा कि वह महाराणा प्रताप के वंशज थे उन्होंने यह माना है कि वह महाराणा प्रताप की सेना थी जोकि यह एक सच्चाई है और इसे इतिहासकार झुठला नहीं सकते। 
                        
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नानक सागर (नानकमत्ता)      

हस्तकला और भारतीय शिल्पकार  


जय हिंद जय भारत

           

टिप्पणियाँ

  1. नमस्ते sir,
    में नेपाल से हु। मेरा नाम रमेश राना हे ।
    हमारे यहाँ पुर्खो से हमारे इतिहास के बारे मे एक कहानी चल्ती आ रही हे।।हमा
    रे पुर्खो का कहेना हे कि !जब राणा और मुस्लिम मे युद्ध हो रहा था ,तब राणा के तर्फ के कुल १२ सैनिक बचे थे।उसके बाद भागते भागते
    रस्ते पर चौराहा(चार रास्ते) आया। तो ऊस चौराहे पर कुछ किन्नर बोतल पाम(बोतल के जैसा दिख्ने वाला पेड) काट रहे थे।तो राणा सैनिकको ने ऊन किन्नरों से मदद के लिए कहा।और कहा कि हमारे पिछे सैनिक पडे हे ।हम पुरब कि और जा रहे हे अगर सैनिक पुँछे तो कहेना ऊत्तर कि तरफ गए हे।इस बजह से राणा सैनिकको जान बची।फिर भी राणा सैनिको कि तलास बहुत दिनो ताक किया गया।
    इसी वजह से राणाओं ने अपने बंशको बचाने के लिए जातीको राना बाताया।इसी लिये
    नाम के पिछे राणा कि जगह राना लिखा जाने लगा।
    हमारी इस कहानी मे आप का क्या बिचार हे।

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