सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

UKSSSC MOCK TEST - 166

  UKSSSC MOCK TEST - 166 उत्तराखंड समूह ग मॉडल पेपर  देवभूमि उत्तराखंड द्वारा उत्तराखंड समूह ग परीक्षा हेतु टेस्ट सीरीज का संचालन किया जा रहा है। सभी टेस्ट पाने के लिए संपर्क करें -9568166280 Uksssc mock test -166 ( 1) निम्नलिखित में से कौन-सा वर्ण ह्रस्व स्वर नहीं है? (A) अ (B) इ (C) ऊ (D) उ (2) निम्नलिखित में से कौन-सा संयुक्त वाक्य है? (A) वह खेल रहा था क्योंकि बारिश हो रही थी। (B) वह बाजार गया और फल खरीद लाया। (C) वह इतना थका हुआ था कि तुरंत सो गया। (D) उसने कहा कि परीक्षा कठिन थी। (3) नीचे दिए गए समास और उनके प्रकार का सुमेलित करें।     कॉलम A 1. गुरुकुल 2. जलपान 3. देवालय 4. यथाशक्ति     कॉलम B A. तत्पुरुष B. कर्मधारय C. अव्ययीभाव D. द्वंद्व विकल्प: (A) 1-A, 2-B, 3-C, 4-D (B) 1-A, 2-C, 3-D, 4-B (C) 1-A, 2-B, 3-D, 4-C (D) 1-A, 2-B, 3-A, 4-C (4) वाक्य "राम ने सीता को फूल दिया।" में 'सीता को' किस कारक का उदाहरण है? (a) करण (b) अपादान (c) संप्रदान (d) अधिकरण (05) निम्नलिखित को सुमेलित कीजिए है?       ...

Nobel prize 2023

Nobel prize 2023

नोबेल पुरस्कार हर वर्ष किसी ऐसे व्यक्ति को दिया जाता है जिसने मानवता के कल्याण के लिए कोई बड़ा काम किया हो ये पुरस्कार स्वीडन के आविष्कारक अल्फ्रेड नोबेल द्वारा बनाए गए फंड से दिया जाता है। नोबेल पुरस्कार की शुरुआत 1901 में हुई थी। अब तक 621 पुरस्कार कुल 989 व्यक्तियों/संस्थाओं को दिए जा चुके हैं।

चिकित्सा के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार 

2 अक्टूबर को चिकित्सा के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार 2023 की घोषणा की गई है। इस वर्ष चिकित्सा के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार हंगरी में जन्मी अमेरिकी नागरिक कैटलिन कारिको और अमेरिकी विज्ञानी ड्रीव वीजमैन को संयुक्त रूप से पुरस्कार दिया जाएगा। यह पुरस्कार इन्हें MRNA तकनीक की खोज के लिए दिया गया है। इस तकनीक से कोरोना रोधी टीका बनाया गया है। 

MRNA तकनीक क्या है?

एमआरएनए (MRNA) तकनीक पारंपरिक टीकों से अलग है। जब हमारे शरीर में कोई वायरस या बैक्टरिया हमला करता है तो यह तकनीक उस वायरस से लड़ने के लिए हमारी कोशिकाओं को प्रोटीन बनाने का संदेश भेजती है इससे हमारे प्रतिरोधक तंत्र को जो जरूरी प्रोटीन चाहिए वह मिल जाता है।

वैज्ञानिकों ने एमआरएनए टीको को कोरोना वायरस महामारी को रोकने में मदद करने वाला गेम चेंजर बताया। उन्होंने लाखों लोगों की जान बचाने का श्रेय इन टिकों को दिया और माना जाता है कि एमआरएफ तकनीक में यह बदलाव नहीं हुआ होता तो महामारी की स्थिति और गंभीर हो सकती है । 

परंपरागत रूप से टीका बनाने के लिए वायरस या वायरस के हिस्सों को विकसित करने की आवश्यकता होती है और फिर वैक्सीन के अगले चरण से उन्हें शुरू करना होता है।

कैटलिन कारिको

कैटलिन कारिको पेंसिलवेनिया विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर है। 

ड्रीव वीजमैन (ड्रू वाइसमैन)

ड्रीव वीजमैन पेन इंस्टीट्यूट फॉर इनोवेशन में प्रोफेसर और इसके निदेशक है।

दोनों वैज्ञानिकों की मुलाकात पिछली सदी के आखिरी दशक में अपने रिसर्च पेपर की फोटोकापी कराते समय हुई थी। इस दौरान हुआ परिचय आगे चलकर वैज्ञानिक अनुसंधान में संयुक्त सहयोग तक पहुंचे । दोनों ने संयुक्त रूप से एमआरएनए वैक्सीन के लिए नई तकनीक का विकास किया और फिर चिकित्सा के लिए नोबेल पुरस्कार भी जीता।

भौतिकी नोबेल पुरस्कार

परमाणु के भीतर अति अल्प अवधि में इलेक्ट्रॉन की गतिविधियों का ज्ञान अध्ययन करने के लिए तीन वैज्ञानिकों को इस बार भौतिकी का नोबेल पुरस्कार संयुक्त रूप से प्रदान किया गया।

  1. पियरे एगोस्टिनी (अमेरिका)
  2. एनी (स्वीडन)
  3. फेरेंक क्राज (जर्मनी)

रसायन में नोबेल पुरस्कार

रसायन विज्ञान में नोबेल पुरस्कार 2023 में क्वांटम डॉट्स की खोज और संश्लेषण के लिए तीन वैज्ञानिकों को दिया गया है। इन वैज्ञानिकों ने उच्च गुणवत्ता के क्वांटम डॉट्स बनाने के लिए 10 वर्षों तक काम किया है।

  1. मोंगी जी. बावेंडी (MIT)
  2. लुईस ई ब्रूस (कोलंबिया यूनिवर्सिटी न्यूयॉर्क)
  3. एलेक्सी आई एकीमोव (नैनोक्रिस्टल्स टेक्नोलॉजी इंक : न्यूयॉर्क)

क्या है क्वांटम डॉट्स

किसी अव्यक्त के गुण इस बात पर निर्भर करते हैं कि उसमें कितने इलेक्ट्रॉन हैं हालांकि अगर पदार्थ बहुत छोटे जैसी नैनो कर के हैं तो उनके गुण जाकर पर निर्भर करते हैं कल जितने छोटे होते हैं उसके इलेक्ट्रॉन एक साथ इतने ही दबे होते हैं और इससे उसके गुण प्रभावित होते हैं ऐसे कर जिनके आकर ही उनका व्यवहार तय करता है क्वांटम डॉट्स का जाते हैं सिद्धांत में विज्ञानी लंबी समय से जानते थे कि ऐसे पर मौजूद हो सकते हैं तीनों नोबेल विशेषताओं में 10 को तक उच्च गुणवत्ता क्वांटम डॉट बनाने में सफलता हासिल की इसका व्यावहारिक इस्तेमाल किया जा सकता है।

साहित्य में नोबेल पुरस्कार  

5 अक्टूबर 2023 को स्वीडिश अकादमी (स्टॉकहोम) ने साहित्य के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार नॉर्वे के साहित्यकार जॉन फॉसे को प्रदान करने की घोषणा की है। 

साहित्यकार जॉन फॉसे

उन्हें यह पुरस्कार उनके अभिनय नाटकों का गद्य के लिए दिया गया है। जॉन फॉसे को अपनी विशिष्ट लेखन शैली फॉसे मिनिमैलिज्म के लिए विख्यात हैं। जिसमें उन्होंने अनेक उपन्यास नाटक कविताएं कहानियां निबंध व बाल साहित्य की 70 से अधिक रचनाएं लिखी है। उनका पहला उपन्यास Raut, Svart, (Red Black) 1983 है।

शांति के लिए नोबेल पुरस्कार

6 अक्टूबर 2023 को नोबेल कमेटी (ओस्लो) ने ईरान कि नरगिस मोहम्मदी को उनके अनवरत संघर्ष के लिए वर्ष 2023 का नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान करने की घोषणा की। 

नरगिस मोहम्मदी

नरगिस मोहम्मदी महिला अधिकारों व उनके आजादी के लिए संघर्षरत्‌ हैं । अपने इन संघर्षों के लिए विगत 12 वर्षों से जेल में निरुद्ध नरगिस मोहम्मदी को अलग-अलग मामलों में 13 बार गिरफ्तार किया जा चुका है तथा मामलों में 31 वर्ष के कारावास की सजा उन्हें सुनाई जा चुकी है उन्हें पहली बार 2011 में गिरफ्तार किया गया था। 51 वर्षीय नरगिस मोहम्मदी शांति का नोबेल पुरस्कार पाने वाली 19वीं महिला थी। वह यह पुरस्कार पाने वाली ईरान की दूसरी महिला हैं। इससे पूर्व ईरान की मानवाधिकार कार्यकर्ता शिरीन एबादी को 2003 में यह पुरस्कार दिया गया था।

अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार

9 अक्टूबर 2023 को रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ़ साइंसेज द्वारा श्रम बाजार के परिणाम के बारे में हमारी समझ को उन्नत करने के लिए अर्थशास्त्री क्लाउडिया गोल्डन को यह पुरस्कार दिए जाने की घोषणा की गई थी।

अर्थशास्त्री क्लाउडिया गोल्डन

अर्थशास्त्र के क्षेत्र में क्लाउडिया गोल्डन नोबेल पुरस्कार पाने वाली तीसरी महिला हैं। इन्होंने श्रम बाजार के विगत 200 वर्षों से अधिक के आंकड़े एकत्र कर इस बाजार में महिलाओं के काफी कम प्रतिनिधित्व व पुरुषों की तुलना में उनकी आय के अंतर आदि पर शोध किया। 2013-14 में अमेरिकन इकोनामिक एसोसिएशन की अध्यक्ष रहे चुकी हैं। इन्होंने अर्थशास्त्र से संबंधित अनेक पुस्तकों की रचना की है।

*नोट्स :- अर्थशास्त्र के क्षेत्र का नोबेल पुरस्कार अन्य पांचो नोबेल पुरस्कार से भिन्न है, इसकी स्थापना एल्फ्रेड नोबेल ने अपनी वसीयत के द्वारा नहीं की थी। इस पुरस्कार की शुरुआत 1968 में स्वीडन के केंद्रीय बैंक स्वेरिग्स रिक्सबैंक द्वारा की गयी थी। भारतीय मूल के अभिजीत बनर्जी व उनकी पत्नी ईस्टर डुफ्लो को अर्थशास्त्र के क्षेत्र में 2019 में पुरस्कार दिया गया था। इन्हें यह पुरस्कार संयुक्त रूप से अमेरिका के माइकल क्रेमर के साथ दिया था। अर्थशास्त्र के क्षेत्र में प्रथम नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले भारतीय एवं प्रोफ़ेसर अमर्त्यसेन है।

नोबेल विजेता पुरस्कार राशि

नोबेल पुरस्कार विजेता को एक नोबेल डिप्लोमा, नोबेल मेडल,  और पुरस्कार की राशि के तौर पर 1.01 स्वीडिश क्रोनर मिलते हैं। डॉलर में यह राशि लगभग 9.86 डालर होगी। वहीं रुपए में ये लगभग 8 करोड़ रुपए होंगे।

अभी तक 9 भारतीयों (भारतीय मूल सहित) को नोबेल पुरस्कार मिला चुका है । जबकि मूल भारतीयों में केवल 5 व्यक्तियों को ही यह पुरस्कार प्राप्त हुआ है। 

  1. अर्थशास्त्र के लिए अभिजीत बैनर्जी - 2019
  2. शांति के लिए कैलाश सत्यार्थी - 2014
  3. रसायन विज्ञान के लिए वेंकट रमन - 2009
  4. अर्थशास्त्र के लिए अमृत्यसेन - 1998
  5. भौतिक विज्ञान के लिए सुब्रमण्यम चंद्रशेखर - 1983
  6. शांति के लिए मदर टेरेसा -1979
  7. मेडिसिन के लिए हरगोविंद खुराना - 1968
  8. भौतिक विज्ञान के लिए सीवी रमन - 1930
  9. साहित्य के लिए रविंद्र नाथ टैगोर - 1913
केवल भारतीय मूल के रबीन्द्र नाथ टैगोर, हरगोविंद खुराना, सी.वी. रमन, प्रो अमर्त्यसेन, वेंकटरमण रामकृष्णन ।

Related posts :- 




टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

If you have any doubts.
Please let me now.

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

ब्रिटिश कुमाऊं कमिश्नर : उत्तराखंड

ब्रिटिश कुमाऊं कमिश्नर उत्तराखंड 1815 में गोरखों को पराजित करने के पश्चात उत्तराखंड में ईस्ट इंडिया कंपनी के माध्यम से ब्रिटिश शासन प्रारंभ हुआ। उत्तराखंड में अंग्रेजों की विजय के बाद कुमाऊं पर ब्रिटिश सरकार का शासन स्थापित हो गया और गढ़वाल मंडल को दो भागों में विभाजित किया गया। ब्रिटिश गढ़वाल और टिहरी गढ़वाल। अंग्रेजों ने अलकनंदा नदी का पश्चिमी भू-भाग पर परमार वंश के 55वें शासक सुदर्शन शाह को दे दिया। जहां सुदर्शन शाह ने टिहरी को नई राजधानी बनाकर टिहरी वंश की स्थापना की । वहीं दूसरी तरफ अलकनंदा नदी के पूर्वी भू-भाग पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया। जिसे अंग्रेजों ने ब्रिटिश गढ़वाल नाम दिया। उत्तराखंड में ब्रिटिश शासन - 1815 ब्रिटिश सरकार कुमाऊं के भू-राजनीतिक महत्व को देखते हुए 1815 में कुमाऊं पर गैर-विनियमित क्षेत्र के रूप में शासन स्थापित किया अर्थात इस क्षेत्र में बंगाल प्रेसिडेंसी के अधिनियम पूर्ण रुप से लागू नहीं किए गए। कुछ को आंशिक रूप से प्रभावी किया गया तथा लेकिन अधिकांश नियम स्थानीय अधिकारियों को अपनी सुविधानुसार प्रभावी करने की अनुमति दी गई। गैर-विनियमित प्रांतों के जिला प्रमु...

परमार वंश - उत्तराखंड का इतिहास (भाग -1)

उत्तराखंड का इतिहास History of Uttarakhand भाग -1 परमार वंश का इतिहास उत्तराखंड में सर्वाधिक विवादित और मतभेद पूर्ण रहा है। जो परमार वंश के इतिहास को कठिन बनाता है परंतु विभिन्न इतिहासकारों की पुस्तकों का गहन विश्लेषण करके तथा पुस्तक उत्तराखंड का राजनैतिक इतिहास (अजय रावत) को मुख्य आधार मानकर परमार वंश के संपूर्ण नोट्स प्रस्तुत लेख में तैयार किए गए हैं। उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में 688 ईसवी से 1947 ईसवी तक शासकों ने शासन किया है (बैकेट के अनुसार)।  गढ़वाल में परमार वंश का शासन सबसे अधिक रहा।   जिसमें लगभग 12 शासकों का अध्ययन विस्तारपूर्वक दो भागों में विभाजित करके करेंगे और अंत में लेख से संबंधित प्रश्नों का भी अध्ययन करेंगे। परमार वंश (गढ़वाल मंडल) (भाग -1) छठी सदी में हर्षवर्धन की मृत्यु के पश्चात संपूर्ण उत्तर भारत में भारी उथल-पुथल हुई । देश में कहीं भी कोई बड़ी महाशक्ति नहीं बची थी । जो सभी प्रांतों पर नियंत्रण स्थापित कर सके। बड़े-बड़े जनपदों के साथ छोटे-छोटे प्रांत भी स्वतंत्रता की घोषणा करने लगे। कन्नौज से सुदूर उत्तर में स्थित उत्तराखंड की पहाड़ियों में भी कुछ ऐसा ही...

उत्तराखंड में भूमि बंदोबस्त का इतिहास

  भूमि बंदोबस्त व्यवस्था         उत्तराखंड का इतिहास भूमि बंदोबस्त आवश्यकता क्यों ? जब देश में उद्योगों का विकास नहीं हुआ था तो समस्त अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर थी। उस समय राजा को सर्वाधिक कर की प्राप्ति कृषि से होती थी। अतः भू राजस्व आय प्राप्त करने के लिए भूमि बंदोबस्त व्यवस्था लागू की जाती थी । दरअसल जब भी कोई राजवंश का अंत होता है तब एक नया राजवंश नयी बंदोबस्ती लाता है।  हालांकि ब्रिटिश शासन से पहले सभी शासकों ने मनुस्मृति में उल्लेखित भूमि बंदोबस्त व्यवस्था का प्रयोग किया था । ब्रिटिश काल के प्रारंभिक समय में पहला भूमि बंदोबस्त 1815 में लाया गया। तब से लेकर अब तक कुल 12 भूमि बंदोबस्त उत्तराखंड में हो चुके हैं। हालांकि गोरखाओ द्वारा सन 1812 में भी भूमि बंदोबस्त का कार्य किया गया था। लेकिन गोरखाओं द्वारा लागू बन्दोबस्त को अंग्रेजों ने स्वीकार नहीं किया। ब्रिटिश काल में भूमि को कुमाऊं में थात कहा जाता था। और कृषक को थातवान कहा जाता था। जहां पूरे भारत में स्थायी बंदोबस्त, रैयतवाड़ी बंदोबस्त और महालवाड़ी बंदोबस्त व्यवस्था लागू थी। वही ब्रिटिश अधिकारियों ...

कुणिंद वंश का इतिहास (1500 ईसा पूर्व - 300 ईसवी)

कुणिंद वंश का इतिहास   History of Kunid dynasty   (1500 ईसा पूर्व - 300 ईसवी)  उत्तराखंड का इतिहास उत्तराखंड मूलतः एक घने जंगल और ऊंची ऊंची चोटी वाले पहाड़ों का क्षेत्र था। इसका अधिकांश भाग बिहड़, विरान, जंगलों से भरा हुआ था। इसीलिए यहां किसी स्थाई राज्य के स्थापित होने की स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती है। थोड़े बहुत सिक्कों, अभिलेखों व साहित्यक स्रोत के आधार पर इसके प्राचीन इतिहास के सूत्रों को जोड़ा गया है । अर्थात कुणिंद वंश के इतिहास में क्रमबद्धता का अभाव है।               सूत्रों के मुताबिक कुणिंद राजवंश उत्तराखंड में शासन करने वाला प्रथम प्राचीन राजवंश है । जिसका प्रारंभिक समय ॠग्वैदिक काल से माना जाता है। रामायण के किस्किंधा कांड में कुणिंदों की जानकारी मिलती है और विष्णु पुराण में कुणिंद को कुणिंद पल्यकस्य कहा गया है। कुणिंद राजवंश के साक्ष्य के रूप में अभी तक 5 अभिलेख प्राप्त हुए हैं। जिसमें से एक मथुरा और 4 भरहूत से प्राप्त हुए हैं। वर्तमान समय में मथुरा उत्तर प्रदेश में स्थित है। जबकि भरहूत मध्यप्रदेश में है। कुणिंद वंश का ...

उत्तराखंड की जनजातियों से संबंधित प्रश्न (उत्तराखंड प्रश्नोत्तरी -14)

उत्तराखंड प्रश्नोत्तरी -14 उत्तराखंड की प्रमुख जनजातियां वर्ष 1965 में केंद्र सरकार ने जनजातियों की पहचान के लिए लोकर समिति का गठन किया। लोकर समिति की सिफारिश पर 1967 में उत्तराखंड की 5 जनजातियों थारू, जौनसारी, भोटिया, बोक्सा, और राजी को एसटी (ST) का दर्जा मिला । राज्य की मात्र 2 जनजातियों को आदिम जनजाति का दर्जा प्राप्त है । सर्वप्रथम राज्य की राजी जनजाति को आदिम जनजाति का दर्जा मिला। बोक्सा जनजाति को 1981 में आदिम जनजाति का दर्जा प्राप्त हुआ था । राज्य में सर्वाधिक आबादी थारू जनजाति तथा सबसे कम आबादी राज्यों की रहती है। 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य की कुल एसटी आबादी 2,91,903 है। जुलाई 2001 से राज्य सेवाओं में अनुसूचित जन जातियों को 4% आरक्षण प्राप्त है। उत्तराखंड की जनजातियों से संबंधित प्रश्न विशेष सूचना :- लेख में दिए गए अधिकांश प्रश्न समूह-ग की पुरानी परीक्षाओं में पूछे गए हैं। और कुछ प्रश्न वर्तमान परीक्षाओं को देखते हुए उत्तराखंड की जनजातियों से संबंधित 25+ प्रश्न तैयार किए गए हैं। जो आगामी परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण साबित होंगे। बता दें की उत्तराखंड के 40 प्रश्नों में से 2...

चंद राजवंश : उत्तराखंड का इतिहास

चंद राजवंश का इतिहास पृष्ठभूमि उत्तराखंड में कुणिंद और परमार वंश के बाद सबसे लंबे समय तक शासन करने वाला राजवंश है।  चंद वंश की स्थापना सोमचंद ने 1025 ईसवी के आसपास की थी। वैसे तो तिथियां अभी तक विवादित हैं। लेकिन कत्यूरी वंश के समय आदि गुरु शंकराचार्य  का उत्तराखंड में आगमन हुआ और उसके बाद कन्नौज में महमूद गजनवी के आक्रमण से ज्ञात होता है कि तो लगभग 1025 ईसवी में सोमचंद ने चंपावत में चंद वंश की स्थापना की है। विभिन्न इतिहासकारों ने विभिन्न मत दिए हैं। सवाल यह है कि किसे सच माना जाए ? उत्तराखंड के इतिहास में अजय रावत जी के द्वारा उत्तराखंड की सभी पुस्तकों का विश्लेषण किया गया है। उनके द्वारा दिए गए निष्कर्ष के आधार पर यह कहा जा सकता है । उपयुक्त दिए गए सभी नोट्स प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से सर्वोत्तम उचित है। चंद राजवंश का इतिहास चंद्रवंशी सोमचंद ने उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में लगभग 900 वर्षों तक शासन किया है । जिसमें 60 से अधिक राजाओं का वर्णन है । अब यदि आप सभी राजाओं का अध्ययन करते हैं तो मुमकिन नहीं है कि सभी को याद कर सकें । और अधिकांश राजा ऐसे हैं । जिनका केवल नाम पता...

भारत की जनगणना 2011 से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न (भाग -01)

भारत की जनगणना 2011 मित्रों वर्तमान परीक्षाओं को पास करने के लिए रखने से बात नहीं बनेगी अब चाहे वह इतिहास भूगोल हो या हमारे भारत की जनगणना हो अगर हम रटते हैं तो बहुत सारे तथ्यों को रटना पड़ेगा जिनको याद रखना संभव नहीं है कोशिश कीजिए समझ लीजिए और एक दूसरे से रिलेट कीजिए। आज हम 2011 की जनगणना के सभी तथ्यों को समझाने की कोशिश करेंगे। यहां प्रत्येक बिन्दु का भौगोलिक कारण उल्लेख करना संभव नहीं है। इसलिए जब आप भारत की जनगणना के नोट्स तैयार करें तो भौगोलिक कारणों पर विचार अवश्य करें जैसे अगर किसी की जनसंख्या अधिक है तो क्यों है ?, अगर किसी की साक्षरता दर अधिक है तो क्यों है? अगर आप इस तरह करेंगे तो शत-प्रतिशत है कि आप लंबे समय तक इन चीजों को याद रख पाएंगे साथ ही उनसे संबंधित अन्य तथ्य को भी आपको याद रख सकेंगे ।  भारत की जनगणना (भाग -01) वर्ष 2011 में भारत की 15वीं जनगणना की गई थी। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत का कुल क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग किलोमीटर था तथा भारत की कुल आबादी 121,08,54,922 (121 करोड़) थी। जिसमें पुरुषों की जनसंख्या 62.32 करोड़ एवं महिलाओं की 51.47 करोड़ थी। जनसंख्या की दृष...