कुर्मांचल केसरी : बद्रीदत्त पांडे - एक निर्भीक क्रांतिकारी का अमर गान बद्रीदत्त पांडे, जिन्हें 'कुर्मांचल केसरी' के नाम से जाना जाता है, कुमाऊं की धरती के एक ऐसे सपूत थे जिन्होंने ब्रिटिश राज के खिलाफ अपनी कलम और वाणी को हथियार बनाया। उनका जीवन संघर्ष, समर्पण और परिवर्तन की एक प्रेरणादायक गाथा है। आइए, उनके जीवन के प्रमुख अध्यायों को मुख्य बिंदुओं और उप-बिंदुओं के माध्यम से जीवंत रूप से देखें, जो न केवल इतिहास को उजागर करते हैं बल्कि आज भी प्रेरणा का स्रोत बने रहते हैं। बद्रीदत्त पांडे का सम्पूर्ण परिचय हिमालय की गोद में, भागीरथी के पवित्र तट पर कनखल में 15 फरवरी 1882 को जन्मे बद्रीदत्त पांडे, मात्र सात वर्ष की कोमल अवस्था में ही अभिभावकों के आकस्मिक निधन की कठोर परीक्षा से गुजरे, फिर भी वे टूटे नहीं, बल्कि अल्मोड़ा पहुँचकर जिला स्कूल में ज्ञान की ज्योति प्रज्वलित की। स्वामी विवेकानंद के ओजस्वी व्याख्यानों ने उनके हृदय में राष्ट्रीय ज्वाला जलाई, जो कभी बुझी नहीं। 1902 में बड़े भाई हरिदत्त के असमय विदा होने पर शिक्षा का मार्ग त्यागकर उन्होंने जीवन की जंग लड़नी शुरू की—नैनीताल क...
श्यामलाताल : विवेकानंद आश्रम की मनमोहक शांति हिमालय की गोद में बसा विवेकानंद आश्रम, श्यामलाताल, उत्तराखंड के चम्पावत जिले का एक ऐसा रत्न है, जो प्रकृति और आध्यात्मिकता का अनूठा संगम प्रस्तुत करता है। समुद्र तल से लगभग 5,000 फीट की ऊँचाई पर स्थित यह स्थल अपने आलौकिक सौंदर्य और शांति से हर किसी का मन मोह लेता है। यहाँ से टनकपुर-वनबसा और शारदा नदी घाटी के मनोरम दृश्यों के साथ-साथ नंदादेवी, पंचाचूली और नंदकोट जैसी बर्फीली चोटियों का लुभावना नजारा देखने को मिलता है, जो आत्मा को सुकून और आँखों को तृप्ति देता है। श्यामलाताल : एक झील का जादू आश्रम के ठीक निकट एक छोटी, परंतु अत्यंत आकर्षक झील है, जिसे श्यामलाताल के नाम से जाना जाता है। इस झील की लंबाई लगभग 500 मीटर और चौड़ाई 200 मीटर है। इसका गहरा श्याम वर्ण वाला जल इतना मनमोहक है कि स्वामी विवेकानंद ने स्वयं इसे 'श्यामलाताल' नाम दिया। झील के शांत जल में आसपास की हरी-भरी पहाड़ियों और नीले आकाश की छवि ऐसी दिखती है, मानो प्रकृति ने स्वयं एक कैनवास पर चित्र उकेरा हो। कैसे पहुँचें? विवेकानंद आश्रम, चम्पावत जिला मुख्यालय से लगभग 45 किलोमीटर ...