वीर भड़ लोदी रिखोला: गढ़वाल की धरती पर जन्मी अमर वीरता की ज्वाला जन्म की धूल में सनी चिंगारी: एक योद्धा का उदय गढ़वाल की हरी-भरी पहाड़ियों में, जहाँ नदियाँ गाती हैं और हवा वीरों की कहानियाँ फुसफुसाती है, सोलहवीं शताब्दी के अंत में (1590 ई.) एक बच्चे का जन्म हुआ। नाम था – लोदी रिखोला । पौड़ी जनपद के ग्राम बटोला में, उसके पिता एक प्रतिष्ठित थोकदार थे, जिनकी आँखों में गढ़वाल की मिट्टी का गर्व झलकता था। लोदी का बचपन उन पहाड़ों की गोद में बीता, जहाँ हर साँस में स्वतंत्रता की खुशबू थी। लेकिन भाग्य ने जल्दी ही उसे आजमाया। मात्र 13-14 वर्ष की उम्र में, जब पड़ोसी गाँव ईड़ा से एक बारात बटोला पहुँची, तो स्वागत की धूम मच गई। गाँव के नीचे नौले के पास पानी से भरा एक विशाल गैड़ा (गेडू) खड़ा था – इतना भारी कि कई मजबूत कंधे भी उसे हिला न सके। तभी, कौतूहल से भरा बालक लोदी वहाँ पहुँचा। बिना एक पल की झिझक, बिना किसी डर के, उसने अकेले ही उस गैड़ा को सिर पर उठा लिया। जैसे पहाड़ खुद उसके कंधों पर चढ़ गया हो! बारात के स्थान तक पहुँचते ही, सबकी साँसें थम गईं। आश्चर्य की लहर दौड़ पड़ी – "यह तो भड़ है! गढ...
समावेशी शिक्षा समावेशी शिक्षा क्या है ? समावेशी शिक्षा एक ऐसी शिक्षा प्रणाली है जिसमें सभी बच्चों समान शिक्षा का अवसर प्राप्त होता है, चाहे उनकी क्षमताएं, योग्यताएं या पृष्ठभूमि कुछ भी हो, जैसे - विकलांग, प्रतिभाशाली, गरीब, अमीर, पिछड़े और सामाजिक रूप से वंचित सभी बच्चे नियमित स्कूलों में साथ-साथ पढ़ते हैं। भारतीय संविधान अनुच्छेद 21(A) 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार प्रदान करता है। कुछ प्रमुख परिभाषाएँ इस प्रकार हैं: यूनेस्को के अनुसार : "समावेशी शिक्षा यह सुनिश्चित करती है कि सभी शिक्षार्थी, चाहे उनकी क्षमताएं, पृष्ठभूमि या परिस्थितियां कुछ भी हों, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त कर सकें और उनका समर्थन किया जा सके।" विश्व बैंक के अनुसार : "समावेशी शिक्षा एक ऐसी शिक्षा प्रणाली है जो सभी शिक्षार्थियों की विविधता को स्वीकार करती है और उनका समर्थन करती है, और यह सुनिश्चित करती है कि सभी को अपनी पूरी क्षमता तक पहुंचने का अवसर मिले।" राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 : " समावेशी शिक्षा का अर्थ है सभी बच्चों को उनकी क्षमता, पृष...