उत्तराखंड का भू-कानून चर्चा में क्यों? हाल ही में प्रदेश में लगातार चल रही मांग के बीच मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने एलान किया है कि उनकी सरकार वृहद भू-कानून लाने जा रही है। अगले साल बजट सत्र में कानून का प्रस्ताव लाया जाएगा। उन्होंने कहा कि 250 वर्ग मीटर आवासीय और 12.50 एकड़ अन्य भूमि के नियम तोड़ने वालों की भूमि जांच के बाद सरकार में निहित की जाएगी। क्या है उत्तराखंड का वर्तमान भू-कानून ? वर्तमान में लागू भू-कानून के तहत एक व्यक्ति को 250 वर्गमीटर जमीन ही खरीद सकता है। लेकिन व्यक्ति के अपने नाम से 250 वर्गमीटर जमीन खरीदने के बाद पत्नी के नाम से भी जमीन खरीदी है तो ऐसे लोगों को मुश्किल आ सकती है। तय सीमा से ज्यादा खरीदी गई जमीन को सरकार में निहित करने की कार्रवाई करेगी। यह कानून केवल बाहरी राज्यों के लोगाें पर लागू है। उत्तराखंड के स्थायी निवासी कितनी भी जमीन खरीद सकते हैं। भू-कानून का इतिहास राज्य में बाहरी लोगों द्वारा भूमि खरीद सीमित करने के लिए वर्ष 2003 में तत्कालीन एनडी तिवारी सरकार ने उत्तर प्रदेश के कानून में संशोधन किया और राज्य का अपना भूमि कानून अस्तित्व में आया। इस संशोध
हिन्दी के सम्पूर्ण नोट्स
हिन्दी की उत्पत्ति एवं विकास
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भारतीय संविधान और हिन्दी
हिन्दी भारत की राष्ट्रीय भाषा है। संविधान सभा में हिंदी को राजभाषा बनाने का प्रस्ताव गोपाल स्वामी आयंगर ने प्रस्तुत किया। 14 सितंबर, 1949 को भारतीय संविधान द्वारा हिन्दी भाषा को राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया। जिसका उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 343 में किया गया है।
- अनुच्छेद 344 (1) के अनुसार राष्ट्रपति ने 7 जून 1955 को राजभाषा आयोग का गठन आदेश जारी किया। इसकी प्रथम बैठक 15 जुलाई 1955 को हुई।
- अनुच्छेद 345 के अनुसार राज्य में प्रयुक्त होने वाली भाषाओं में किसी एक को या अनेक या हिंदी को शामिल किया जा सकता है
- अनुच्छेद 346 के अनुसार राज्य से राज्य, राज्य से संघ में संचार की भाषा समान रहेगी ।
- राजभाषा आयोग के प्रथम अध्यक्ष बाल गंगाधर खरे थे।
- अनुच्छेद 347 के अनुसार किसी राज्य की जनसंख्या के किसी भाग द्वारा बोले जाने वाली भाषा का वर्णन है।
- अनुच्छेद 348 में उच्चतम न्यायालय उच्च न्यायालय में और अधिनियम विधेयक आदि के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा का उल्लेख है ।
- अनुच्छेद 349 में भाषा संबंधी विधेयक के अधिनियमित करने के लिए विशेष प्रक्रिया का उल्लेख है ।
- अनुच्छेद 350 में शिकायतों को दूर करने के लिए अभ्यावेदन में प्रयोग की जाने वाली भाषा का उल्लेख है
- अनुच्छेद 351 में भाषा के विकास संबंधी का उल्लेख है
राजभाषा या राष्ट्रीय भाषा
राजभाषा या राष्ट्रीय भाषा उसे कहते हैं जो राष्ट्र में जन-जन के विचारों के आदान-प्रदान का माध्यम हो। 'हिन्दी' शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम अमीर खुसरो ने किया था। यह विश्व की तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है।
भाषा का जन्म कैसे हुआ?
सृष्टि के प्रारंभ में जब भाषा का विकास नहीं हुआ था, तब मनुष्य संकेतों व चिन्हों के माध्यम से अपने विचार व्यक्त करता था। इतना ही नहीं वह पशु-पक्षियों के भांति विभिन्न ध्वनियों द्वारा भी अपनी भावनाओं का आदान-प्रदान करता था। लेकिन मानव के विकास के साथ-साथ उसे अपनी बात दूसरों के सामने प्रकट करने के लिए तथा दूसरों की स्पष्टतया समझने के लिए एक उन्नत साधन की आवश्यकता अनुभव हुई जिसके फलस्वरुप भाषा का जन्म हुआ। हमारा बोलना, सुनना, लिखना तथा पढ़ना सब भाषा द्वार संभव हो सका ।
भाषा के सामान्यतः तीन रूप होते हैं -
- मौखिक भाषा
- लिखित भाषा
- सांकेतिक भाषा
1. मौखिक भाषा - जब मन के भावों को मुख से बोलकर प्रकट किया जाता है, तो भाषा का यह रूप मौखिक भाषा कहलाता है। टेलीफोन पर बातें करना करना, वाद-विवाद करना आदि मौखिक भाषा के उदाहरण हैं।
2. लिखित भाषा - जब मन के भावों को लिखकर प्रकट किया जाता है, तो भाषा का यह रूप लिखित भाषा कहलाता है। पत्र लिखना, ई-मेल भेजना आदि लिखित भाषा के उदाहरण हैं।
3. सांकेतिक भाषा - जब मनुष्य संकेतों व चिन्हों के माध्यम से अपने विचार व्यक्त करता था। या बिना बोले और लिखे इशारों में अपनी विचार व्यक्त करता है उसे सांकेतिक भाषा कहते हैं।
भाषा का विकास
हिंदी भाषा की उत्पत्ति संस्कृत से हुई है। संस्कृत को वेदों और पुराणों की भाषा कहा जाता है इसे 'ब्राह्मी लिपि' में लिखा जाता है। क्योंकि संस्कृत एक जटिल भाषा थी। इसलिए बौद्ध धर्म और जैन धर्म के धर्म गुरुओं ने मानव सभ्यता के विकास हेतु संस्कृत को सरल रूप को प्रस्तुत करते हुए अपने उपदेश पालि और प्राकृत भाषा में दिए। भगवान गौतम बुद्ध के सारे उपदेश पाली में है तथा भगवान महावीर के सारे उपदेश प्राकृत भाषा में है। गुप्त वंश के पतन के बाद उत्तर भारत में प्राकृत भाषा का स्थान अपभ्रंश ने ले लिया। अपभ्रंश भाषा प्राकृत भाषा की तुलना में सरल थी। और इस तरह भाषा के क्षेत्र में मानव विकास करता गया। सुविधा के अनुसार भाषाओं में परिवर्तन होता गया। 'हिंदी' शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम अमीर खुसरो ने किया था। जो गुलाम वंश और खिलजी वंश के समकालीन थे। भाषा परिवार के आधार पर हिंदी 'भारोपीय परिवार' की भाषा है। भारत में चार भाषा परिवार है - भारोपीय, द्रविड़, ऑस्ट्रिक व चीनी तिब्बती ।
हिन्दी का विकास क्रम
संस्कृत — पालि — प्राकृत — अपभ्रंश — हिन्दी
अपभ्रंश का समय 500 ई से 1000ई तक माना जाता है अपभ्रंश और पुरानी हिंदी के मध्य का समय संक्रांति काल कहा जाता है। अपभ्रंश की उत्तर कालीन अवस्था अवहटठ कहलाती है
अपभ्रंश के भेद आधुनिक भारतीय आर्य भाषा
- शोरसैनी अपभ्रंश - पश्चिमी हिंदी गुजराती राजस्थानी पहाड़ी
- पैशाची अपभ्रंश - लहदा और पंजाबी
- बाचड़ अपभ्रंश - सिंधी
- महाराष्ट्री अपभ्रंश - मराठी
- मागधी अपभ्रंश - बिहारी, बांग्ला , उड़िया , असमिया
- अर्धमागधी अपभ्रंश - पूर्वी, हिंदी, अवधी, बघेली, छत्तीसगढ़ी
राष्ट्रीय भाषा - हिन्दी (14 सितंबर 1949)
सरकारी काम-काज में प्रयोग होने वाली भाषा राजभाषा कहलाती है। 14 सितंबर, 1949 को भारतीय संविधान द्वारा हिंदी भाषा को राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया। अत: हमारे देश में प्रतिवर्ष 14 सितंबर को 'हिंदी दिवस' मनाया जाता है।
किसी देश अथवा राष्ट्र के अधिकांश लोग जिस भाषा को बोलते तथा समझते हैं, उसे उस देश या राष्ट्र की राष्ट्रभाषा कहते हैं। भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी है। यह भारत के एक कोने से दूसरे कोने तक बोली व समझी जाती है तथा इसके माध्यम से लोग अपने समस्त कार्य करते हैं।
मानक भाषा क्या है?
मानक भाषा किसी भाषा की वह किस्म होती है जिसे किसी देश या राष्ट्र में शिक्षा, प्रशासन, साहित्य और मीडिया में स्वीकृत और प्रयुक्त किया जाता है। यह भाषा एक निश्चित व्याकरण, शब्दावली और वर्तनी का पालन करती है, जो इसे सुसंगत और समझने में आसान बनाती है।
मानक भाषा के कुछ प्रमुख विशेषताएं हैं :
स्थिरता : मानक भाषा का व्याकरण, शब्दावली और वर्तनी समय के साथ अपेक्षाकृत स्थिर रहती है।
औपचारिकता : मानक भाषा का उपयोग औपचारिक संदर्भों में किया जाता है, जैसे कि शिक्षा, प्रशासन और कानून।
व्यापकता : मानक भाषा का उपयोग देश या राष्ट्र के विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है।
साहित्यिकता : मानक भाषा का उपयोग साहित्य और मीडिया में किया जाता है।
मानक भाषा का विकास भाषा के विभिन्न रूपों के मिश्रण से होता है। आमतौर पर, यह उस भाषा की बोली पर आधारित होती है जो सबसे अधिक प्रतिष्ठित या शक्तिशाली वर्ग द्वारा बोली जाती है।
बोली
बोली साधारण बोलचाल की वह भाषा है जो किसी क्षेत्र या स्थान विशेष में बोली जाती है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि सामान्य रूप से किसी क्षेत्र विशेष में प्रयोग की जाने वाली भाषा बोली कहलाती है।
हर्डर के अनुसार "बोली जातियों की विचारधारा का अनुभव करने वाला व्यापार है"
भारत में करीन 650 बोलियों बोली जाती हैं। जो देश के विभिन्न क्षेत्रों में प्रचलित हैं कुछ प्रमुख बोलियों इस प्रकार हैं-
जैसे - गढ़वाल में गढ़वाली, कुमाऊं में कुमाऊनी, हरियाणा में हरियाणवी, हिमाचल में हिमाचली आदि। बोली का प्रयोग केवल बोलचाल के रूप में किया जाता है। इसे प्रायः लिखा नहीं जा सकता।
बोली की विशेषताएँ
- बोलियों में व्याकरण और साहित्य की आवश्यकता नहीं होती है,
- बोली का स्वरूप स्वतंत्र होता है अर्थात् यह किसी भी प्रकार से किसी भी स्थान पर बिना किसी नियमों का पालन किए हुए बोली जा सकती है।
- बोली में साहित्य की रचना नहीं होती है यह किसी भी प्रकार से लिखी या बोली जा सकती है।
- बोलियाँ मुख्य रूप से भाषा का क्षेत्रीय स्वरूप होती है
विभाषा या उपभाषा
जब बोली में साहित्यिक रचना होने लगती है तो वह उपभाषा या विभाषा बन जाती है; जैसे - ब्रज और अवधी दोनों ब्रज तथा अवध की क्षेत्रीय भाषाएं हैं परंतु सूरदास जी ने ब्रज भाषा में 'सूरसागर' की तथा तुलसीदास जी ने अवधी भाषा में 'रामचरितमानस' की रचना की है जिसके कारण यह दोनों बोलियां उपभाषाएं बन गई।
उपरोक्त विवरण से स्पष्ट होता है की बोली का विकास उपभाषा में और उपभाषा का विकास भाषा में होता है।
बोली — विभाषा/उपभाषा — भाषा
हिंदी क्षेत्र की समस्त बोलियां को पांच वर्गों में बांटा गया है इन वर्गों को ही उपभाषा कहा जाता है।
उपभाषा बोलियां
- पश्चिमी हिन्दी - खड़ी बोली,(कौरवी) ब्रजभाषा, बुन्देली, बांगरू या हरियाणी कन्नौजी
- पूर्वी हिन्दी - अवधी बघेली छत्तीसगढ़ी
- राजस्थानी - पश्चिमी राजस्थानी (मारवाड़ी), पूर्वी राजस्थानी (जयपुरी या ढूंढारी ), उत्तरी राजस्थानी (मेवाती ), दक्षिणी राजस्थानी (मालवी)
- बिहारी - मगही, भोजपुरी, मैथिली
- पहाड़ी - पश्चिमी पहाड़ी (जौनसारी), मध्यवर्ती पहाड़ी (कुमाऊनी गढ़वाली)
वर्ण या अक्षर की उत्पत्ति
लिपि किसे कहते हैं?
आरंभ में भाषा केवल बोली जाती थी। इसका कोई लिखित रूप नहीं था। धीरे-धीरे इसके लिखित रूप की आवश्यकता अनुभव होने लगी जिसके परिणामस्वरूप प्रत्येक बोली जाने वाली ध्वनि के लिए निश्चित चिन्ह बनाए गए। यह चिन्ह ही लिखित भाषा के वर्ण या अक्षर बने। इस प्रकार प्रत्येक भाषा अलग-अलग प्रकार में लिखी जाने लगी। सामान्यतः किसी भी भाषा को लिखने की विधि को लिपि कहते हैं। विभिन्न भाषाएं अलग-अलग लिपियों में लिखी जाती हैं।
- चीनी चित्र - लिपि
- उर्दू - फ़ारसी
- बांग्ला - बंगाली
- पंजाबी - गुरुमुखी
- अंग्रेजी, जर्मन, फ्रांसीसी - रोमन
- गुजराती - गुजराती
- हिंदी, संस्कृत, मराठी, कोंकणी, गढ़वाली, कुमाऊनी, तमांग, बोडो, राजस्थानी बघेली, डोगरी, मगही , भोजपुरी, मैथिली, कश्मीरी, सिंधी, शिपाली, हरियाणवी नेपाली - देवनागरी
देवनागरी और उसका विकास
भाषा की ध्वनियों को जी संकेत और चिन्ह द्वारा प्रदर्शित किया जाता है उसको लिपि कहते हैं। भारत की प्रमुख लिपियां सिंधु, ब्राह्मी, खरोष्ठी और देवनागरी है। भारतीय भाषाओं की लिपि और देवनागरी की जड़ या जननी ब्राह्मी लिपि को माना जाता है
देवनागरी लिपि का मुख्य स्रोत कुटिला लिपि है। ब्राह्मण - गुप्त - कुटिल - प्राचीन नागरी - देवनागरी भारत में देवनागरी लिपि को गनथम लिपि कहा जाता था तथा दक्षिण भारत में नंद नागरी कहा जाता था
देवनागरी लिपि के स्वरूप में प्रभाव
- जय भट्ट के शिलालेख में नागरी लिपि का सर्वप्रथम उल्लेख मिलता है । महाराष्ट्र में देवनागरी को बाल बोध कहा जाता है। देवनागरी पर कई भाषाओं जैसे - फारसी, बंगला, मराठी, गुजराती, अंग्रेजी का प्रभाव पड़ा है।
- व्यंजनों के नीचे लगने वाला नुक्ता चिन्ह फारसी की देन है।
- व्यंजनों को घसीट कर मिलाकर लिखना भी फारसी की देन है।
- शिरो रेखा रहित प्रभाव गुजराती से पड़ा।
देवनागरी लिपि के गुण और दोष
गुण - स्वर व्यंजन वैज्ञानिक व क्रमबद्ध रूप से रखे गए हैं. यह एक वर्णनात्मक लिपि है जैसा बोला जाता है वैसा लिखा जाता है । देवनागरी लिपि लचीली प्रकृति की लिपि है यह अपने आप में समाहित करने की कोशिश करती है ।
- प्रत्येक वर्ण का उच्चारण लेखन व प्रयोग एक जैसा होता है । स्वरों की मात्राएं भी इसमें होती हैं ।
- इसमें संयुक्त अक्षरों को मिलाकर लिखने की विशेषता है साथ ही शब्दों को उच्चारण के अनुरूप लिखते हैं ।
- शब्द इसमें स्थान काम घेरते हैं, एक ध्वनि के लिए एक ही वर्ण का प्रयोग होता है। यह एक आक्षरिक लिपि भी है
- यह लिपि स्वर और व्यंजन के सहयोग से मिलकर बनी है .
दोष - चारों ओर से मात्राओं का प्रयोग होता है सर्वाधिक विवादास्पद मात्रा ई है। बोली बाद में वह लिखी पहले जाती है
कुछ ध्वनियों दो या दो से अधिक रूप में लिखी जाती है जैसे र, श, ष, स
देवनागरी सुधार समिति - 1947
कुछ विद्वानों का मानना है कि देवनागरी लिपि में शिरो रेखा से समस्या हो सकती है । यूं तो इस लिपि का सबसे पहले प्रयोग गुजरात के नागर ब्राह्मण द्वारा किया गया था। लेकिन गुजराती भाषा में देवनागरी लिपि शिरो रहित प्रयोग की गई थी।
1947 में स्थापित देवनागरी सुधार समिति के अध्यक्ष आचार्य नरेंद्र देव थे । नागरी सुधार समिति संयोजक के अध्यक्ष काका कालेलकर थे। इस समिति का मुख्य उद्देश्य देवनागरी लिपि में सुधार करना था।
- देवनागरी के स्थान पर रोमन का सुझाव सुमित कुमार चटर्जी द्वारा दिया गया ।
- देवनागरी में 'अ' के साथ 'बारहखड़ी' का सुझाव काका कालेलकर ने दिया।
- मात्राओं को व्यंजन के बाद दाहिने तरफ अलग रखने का सुझाव गौरव प्रसाद ने दिया
- पंचमाक्षर के बदले अनुस्वार का प्रयोग श्याम सुंदर दास द्वारा किया गया ।
- महाप्राण वर्ण के लिए अल्पप्राण के नीचे चिन्ह लगने का सुझाव श्रीनिवास द्वारा दिया गया।
उपरोक्त दिए गए आर्टिकल पर बहुत जल्द 40+ प्रश्नोत्तरी तैयार की जाएगी। जो आपके सभी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए लाभकारी होगी। उम्मीद है आपको देवभूमि द्वारा तैयार हिन्दी की उत्पत्ति एवं विकास के नोट्स पसंद आए होंगे। भाग -02 में वर्णमाला का अध्ययन करेंगे।
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