थारू संस्कृति
क्या आप जानते हैं शादी से पहले भुईयां अर्थात भूमिसेन देवता की पूजा क्यों की जाती है ?
क्या आप जानते हैं भुईयां (भूमिसेन देवता) को गांव से ही बाहर क्यों स्थापित किया जाता है?
क्या आप जानते हैं भुईयां में ही सात ही देवता क्यों पूजे जाते हैं ?
थारू जनजाति और उनकी परंपराऐं
आइए दोस्तों इन्ही सब सवालों की आज हम विचार करेंगे जो थारू जनजाति की परंपराओं और रीति-रिवाजों से संबंधित है यूं तो भारत में अनेक जातियों भूमिसेन देवता की पूजा करती हैं । भूमिसेन देवताओं को विभिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है। ऐसे ही एक प्राचीन जनजाति थारू जनजाति जिन्हें प्रकृति का रक्षक भी कहा जाता है । वह भूमिसेन देवता को भुईयां के नाम से सम्बोधित करती है। थारू जनजाति मुख्यत: उत्तराखंड के उधम सिंह नगर जिले में निवास करती है। इसके अलावा बिहार उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में भी निवास करती है लेकिन यहां चर्चा उत्तराखंड की थारू जनजाति की जा रही है जो महाराणा प्रताप को अपना वंशज मानती है। यदि आपने उधम सिंह नगर के खटीमा और सितारगंज क्षेत्र में भ्रमण किया है। आपने पाया होगा कि वहां के गांव से बाहर पीपल के वृक्ष के नीचे मिट्टी का चबूतरा बना होता है। जिसमें मिट्टी के सात देवता स्थापित किए जाते हैं। और केन्द्र में मुख्य देवता बनाया होता है। (हालांकि वक्त के साथ बदलते परिदृश्य में मिट्टी के स्थान पर सीमेंट और ईंटों से बनी भुईयां देखने को मिलेंगी।) या फिर आप किसी थारू परिवार की शादियों में गए होंगे। और आपने एक बात अवश्य नोट की होगी कि शादी से पहले गांव से बाहर शादी वाले घर से भूमिसेन देवता की पूजा करने जाते हैं। पूजा में अग्नि , हवन सामग्री और भोग लगाने के लिए प्रसाद ले जाते हैं।
पौराणिक तथ्य क्या कहते हैं ?
मेरे विचार से इस परंपरा का संबंध प्राचीन काल से जुड़ा हुआ है जैसा कि आप सभी जानते हैं कि थारू समाज प्राचीन काल से ही एक कृषि प्रधान समाज है। अधिकांश थारू परिवार की आजीविका कृषि पर आश्रित थी। प्राचीन समय में कृषक वर्ण को शिक्षा का अधिकार नहीं था। जिस कारण उन्हें वेदों और पुराणों का ज्ञान नहीं था। लेकिन ग्रामों (गांव) को बुरी शक्तियों, राक्षसों व पिसाचों से सुरक्षा भी जरूरी थी इसलिए ब्राह्मण कुल के ऋषि मनीषियों द्वारा समय समय पर यज्ञ कराए जाते थे। माना जाता था कि यदि किसी ग्राम में सप्तॠषियों द्वारा यज्ञ कराया जाता था तो गांव की सीमा तक एक सुरक्षा कवच तैयार हो जाता था। जिसको भेदना अत्यंत मुश्किल होता था। वर्तमान में भी घर की सुरक्षा के उद्देश्य से घरों मंदिरों में यज्ञ कराए जाते हैं। ताकि बुरी शक्तियां से सुरक्षा मिलती रहे। थारू समाज का प्रत्येक परिवार जब उनके घर शादी समारोह आयोजित किया जाता है तो वह सुख समृद्धि के लिए व बुरी शक्तियों से सुरक्षा कवच प्रदान करने के लिए शादी से एक दिन पहले भुईयां की पूजा अर्चना करता है । चाहे वह शादी लड़की हो या लड़की की दोनों परिवारों के द्वारा अपने अपने गांव की भुईयां में अग्नि, हवन सामग्री और प्रसाद को समर्पित किया जाता है। ताकि शादी में किसी भी प्रकार की बुरी शक्तियों, भूत पिसाचों द्वारा विघ्न उत्पन्न न हो।
क्या आप जानते हैं भुईयां (भूमिसेन देवता) को गांव से ही बाहर क्यों स्थापित किया जाता है?
यज्ञ सात ऋषियों द्वारा गांव से बाहर किया जाता था ताकि गांव की किसी भी कार्य से यज्ञ में विघ्न ना आए और अनुकूल वातावरण मिल सके। यज्ञ करने वाले सात ऋषियों को ही सप्त ऋषि कहा जाता था। सातों ऋषियों में एक ऋषि मुखिया होता था जिसे थारू समाज के लोग वर्तमान में 'ठाकुर' पुकारते हैं। वर्तमान समय में आज भी वर्षों की परंपरा प्रचलित है। लोग गांव से बाहर इनको स्थापित करके वैशाख के महीने 'चराई त्योहार' के दिन भूमिसेन देवता की पूजा की करते हैं और भोग लगाते हैं।
थारू जनजाति का प्रमुख त्योहार होली में फाल्गुन मास की पूर्णिमा को इन्हीं सातों ऋषियों को साक्षी मानकर भुइयां के सामने होलिका दहन किया जाता है। हालांकि वर्तमान समय में थारू समाज के लोगों में दीपावली और करवाचौथ के त्योहारों में विशेष रूचि दिखाई देती है । जिसके उपरांत इन्हें भी प्रमुख त्यौहारों में शामिल किया जाने लगा है। इस दिन गांवों की सभी महिलाएं भुईयां की पूजा करती है और भुईयां को दीपों से सजाया जाता है।
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