सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

Uksssc Mock Test - 132

Uksssc Mock Test -132 देवभूमि उत्तराखंड द्वारा आगामी परीक्षाओं हेतु फ्री टेस्ट सीरीज उपलब्ध हैं। पीडीएफ फाइल में प्राप्त करने के लिए संपर्क करें। और टेलीग्राम चैनल से अवश्य जुड़े। Join telegram channel - click here उत्तराखंड समूह ग मॉडल पेपर  (1) सूची-I को सूची-II से सुमेलित कीजिए और सूचियां के नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।              सूची-I.                  सूची-II  A. पूर्वी कुमाऊनी वर्ग          1. फल्दाकोटी B. पश्चिमी कुमाऊनी वर्ग       2. असकोटी  C. दक्षिणी कुमाऊनी वर्ग       3. जोहार D. उत्तरी कुमाऊनी वर्ग.        4.  रचभैसी कूट :        A.   B.  C.   D  (a)  1.    2.  3.   4 (b)  2.    1.  4.   3 (c)  3.    1.   2.  4 (d) 4.    2.   3.   1 (2) बांग्ला भाषा उत्तराखंड के किस भाग में बोली जाती है (a) दक्षिणी गढ़वाल (b) कुमाऊं (c) दक्षिणी कुमाऊं (d) इनमें से कोई नहीं (3) निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए 1. हिंदी में उच्चारण के आधार पर 45 वर्ण है 2. हिंदी में लेखन के आधार पर 46 वर्ण है उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/ कौन से सही है? (a) केवल 1 (b) केवल 2  (c) 1 और 2 द

मेरे सपनों का भारत

       मेरे सपनों का भारत

सकारात्मक सोच का नजरिया

"भारत की खोज पुस्तक" सबने पड़ी होगी। उस पुस्तक के लेखक भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू जी हैं। उन्होंने आजादी के बाद मेरे सपनों का भारत की कल्पना की थी और अपनी इच्छा अनुसार रखने की कोशिश भी की थी , इसलिए तो  और पाकिस्तान दो भागों में बंट गए । उस समय की परिस्थितियों के अनुसार उनको जैसा ठीक लगा  ।  उन्होंने किए जिनके कुछ परिणाम काफी महत्वपूर्ण साबित हुए। वहीं कुछ कदमों के चलते जम्मू-कश्मीर हाथों से आधा निकल गया। लेकिन फिर भी सब कुछ ठीक रहा उसके बाद मिसाइल मैन के नाम से कुख्यात डॉ एपीजे अब्दुल कलाम । उन्होंने भी अपनी खुली आंखों से भारत को सजाया । अब्दुल कलाम जी 2002 से 2007 के बीच भारत के राष्ट्रपति रहे और उन्होंने 2020 तक एक सक्षम भारत होने की कल्पना की थी। यूं तो सभी आज़ादी के परवानोंं- क्या महात्मा गांधी, क्या वल्लभभई पटेल और क्या विवेकानंद जी सभी ने एक महान भारत की कल्पना की और अनेकों कदम उठाएं।

भारत की विकास प्रक्रिया

भारत को विदेशी शक्तियों ने इतना अधिक कमजोर कर दिया था। कि 70 साल लग गए भारत को बनाते - बनाते। मैं नहीं जानता किसकी गलती थी? मैं केवल इतना जानता हूं जो उस समय सही था उन्होंने वही किया था।   एक बात स्पष्ट रूप से आसानी से समझाई जा सकती है। एक शासक कमजोर और बुद्धिहीन है तो उस राज्य में बुराइयां आ ही जाती है। जिस प्रकार एक युद्ध जीतने के लिए कुशल सेनापति की आवश्यकता होती है ।जिस प्रकार एक स्कूल के लिए कुशल प्रधानाचार्य की आवश्यकता होती है और जिस प्रकार एक परिवार के विकास के लिए कुशल मुखिया की आवश्यकता होती है । ठीक उसी प्रकार एक देश को चलाने के लिए कुशल प्रधानमंत्री की आवश्यकता होती है। मुझे ऐसा लगता है कि कहीं ना कहीं जब जब  अकुशल प्रधानमंत्री का देश पर शासन रहा है तब तक बुराइयों ने जन्म लिया है। और देश को खोखला किया है । तभी शायद इतने बरस लग गए हमें संभालते संभालते।

शासकों की भूमिका

बात करें! जवाहरलाल नेहरू जी की तो 1947 मैं आजादी के तुरंत बाद आर्थिक स्थिति अत्यधिक कमजोर थी। जिसके चलते जो भी निर्णय थे मेरे विचार से उस समय तो सभी ठीक ही थे। सिवाय 1-2 छोड़कर क्योंकि सभी जानते हैं मनुष्य कभी भी परफेक्ट नहीं हो सकता। ऐसा  हो ही नहीं सकता है कि वह गलती ना करें। नेहरू जी ने भी गलतियां की थी तो जाहिर है कि वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी भी गलतियां कर सकते हैं ?गलतियों को सुधारा भी जा सकता है जो मोदी जी सुधार भी रहे हैं । नेहरू जी  के बाद लाल बहादुर शास्त्री भी एक कुशल शासक थे। लेकिन उनके शासनकाल में चीन 1962 में और पाकिस्तान से 1965 में युद्धों का सामना करना पड़ा। जिसमें एक में हार भी मिली और एक में जीत भी मिली। वैसे ही हमारी अर्थव्यवस्था पहले से ही लड़खड़ाई हुई थी और यह 2 युद्ध की वजह से और कमजोर हो गई । लेकिन जब शासन इंदिरा गांधी का आया तो उन्होंने भी देश के विकास के लिए अनेकों कार्य किए उनके सभी कदम सराहनीय थे ।फिर राजीव गांधी ने भी काफी अच्छे काम किए और उसी प्रकार नरसिम्हा राव की सरकार जब आए तब भी हमारा देश एक असीम ऊंचाइयों तक पहुंचा था । आजादी के बाद  सबसे श्रेष्ठ समय 1998 से 2003 अटल बिहारी बाजपेई जी जब भारत के प्रधानमंत्री थे तो उन्होंने देश के विकास के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई देश में सड़कों का जाल बिछाने का क्रेडिट सिर्फ और सिर्फ अटल बिहारी वाजपेई जी को जाता है। उसके बाद मानव देश में विकास की लहर दौड़ पड़ी हो। लेकिन जैसे ही देश में डॉ मनमोहन सिंह सिंह जी को भारत का प्रधानमंत्री बनाया जाता है तब एक बार पुनः पेटीकोट शासन प्रारंभ हो जाता है । शासक कोई और होता है । दिखा या कोई और जाता है । निर्णयकिसी और के होते हैं निर्णय कोई और देता है। तब भ्रम पैदा होता है ।हालांकि डॉ मनमोहन सिंह अपने आप में एक महान व्यक्ति थे। लेकिन उनकी प्रतिभाओं को छुपाया गया। जिसके चलते उन 10 सालों में सबसे ज्यादा हानि शिक्षा स्वास्थ्य और संस्थागत ढांचे में हुई और भ्रष्टाचार चरम स्तर पर पहुंच गया था। क्या नौकरियां या रोजगार सब में घूसखोरी अधिक से अधिक मात्रा में हो रही थी। एक प्रकार से यह भी कहा जा सकता है कि शिक्षा का सबसे बुरा दौर मनमोहन सिंह जी के शासनकाल में ही रहा। जहां वास्तविक शिक्षा से अधिक नंबरों और ग्रेडिंग शिक्षा प्रणाली पर फोकस किया गया।

वर्तमान सरकार का समय

 2014 में एक बार पुनः भाजपा सरकार द्वारा नरेंद्र मोदी जी के रूप में एक कुशल प्रशासक प्रधानमंत्री बने और अभी तक के सभी निर्णय सराहनीय है। अगर उनकी प्रारंभिक योजनाओं की बात करें तो जन धन योजना जो 2015 में लागू की गई। इसमें मोदी जी की दूरदर्शिता झलकती है।  किसानों के लिए फसल बीमा योजना ,मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना। 2016 में नोटबंदी 2017 में जीएसटी जैसी बड़ी योजनाओं और नीतियों का प्रारंभ किया गया। नोटबंदी और जीएसटी की कड़ी आलोचना की गई लेकिन विकास के लिए और सपनों के भारत का लक्ष्य पूरा करने के लिए जरूरी था। क्योंकि जीएसटी से व्यापार में सुगमता आती हैं और नोटबंदी से भले ही काला धन वापस ना आया हो लेकिन काली कमाई पर लगाम जरूर लगी है ।और इस तरह सपनों के भारत का लक्ष्य पूरा करते हुए राम मंदिर का निर्माण तथा अनुच्छेद 370 का हटना भी देश में शांति का परिचय देता है। अब धर्म और राज्य के नाम से लड़ाई नहीं होंगी। और उसके बाद देश की जनता के लिए बेहद जरूरी नई शिक्षा नीति 2020 जो वास्तविकता पर आधारित है यदि नई शिक्षा नीति देश में पूर्णतया लागू होती है ।तो सपनों का भारत जल्द ही पूरा होने में मदद मिलेगी। क्योंकि बच्चों को वास्तविक शिक्षा मिलेगी ना कि केवल डिग्री की। देश बदल रहा है देश को बदलने के लिए हमारे सिविल सेवकों को भी पारदर्शिता एवं स्वतंत्रता प्रदान की गई है । उनके लिए मिशन कर्म योगी की स्थापना की गई हैै। देश की सबसे अधिक जनसंख्या वाला राज्य उत्तर प्रदेश  योगी जी के नेतृत्व में विकास कर रहा है। और बिहार में भाजपा की जीत हुई है।जिससे मानो लग रहा है जैसे सभी दिशाएं सपनों के भारत का लक्ष्य पूरा करने के लिए साथ दे रही हैं। जैसे -मनोविज्ञान का भी नियम कहता है कि " किसी चीज को पूरी शिद्दत से चाहो तो वह मिल जाता है "तो ठीक उसी प्रकार देश की प्रगति के पथ पर सभी दिशाएं ऐसे चल रही हैं । जैसे एक विकास की बयार चली हो । अमेरिका में बनेें   नए वाइडन जी ने भी भारत का साथ देने का वादा किया। है और वर्तमान में RCEP मेगा व्यापार समझौता से भारत ने दूरी बनाई है ।ताकि चीन की विस्तारवादी नीति को रोका जा सके । BRICK की भी अध्यक्षता मिली है(2021 में ब्रिक्स  की अध्यक्षता करेगा )जहां पर मोदी जी ने आतंकवाद पर निशाना साधा है। इस तरह सभी कुछ भारत के पक्ष में है। जिससे जल्द ही भारत विश्व गुरु बन सकता है ।

2030 : भारत बनेगा विश्व गुरु

डॉ एपीजे अब्दुल कलाम जी ने अनुमान लगाया था कि 2020 तक भारत समृद्ध सील देश बन जाएगा । लेकिन उन्हें क्या मालूम था कि देश का प्रधानमंत्री बदल जाएगा। लेकिन अभी भी देर नहीं हुई है। 2030 तक भारत का विश्व गुरु बनने का सपना पूरा हो सकता है। लेकिन समस्या यह है कि भविष्य में भारत का अगला शासक कौन होगा? इसलिए जरूरत है हमें एक सही शासक के चुनाव करने की। सभी जानते हैं राहुल गांधी कैसे व्यक्ति हैं ? कट्टरपंन कैसा होता है। एक काली पट्टी के समान सही गलत की दिशा ही भुला देता है। खैर जो भी हो देश बदल रहा है विश्व गुरु बनने को चला।

कट्टरता पनती को इंगित करती हुई एक कविता...

कट्टरता की काली पट्टी (कविता)

 कट्टरता की काली पट्टी ,
 आंखों में लिपटी हुई है।
 पहचान नहीं इंसानों की
 विनाश ओढ़ -ऐ- सर खड़ी है।

 कोई सही गलत का,
 भेद बताए ना मुरादों को ।
जुल्मों से धरा भरी पड़ी है।
 सपने इनके असहाय हुए हैं ।
अपनी में हांक रहे हैं,

 कट्टरता की काली पट्टी,
 विनाश ओढ़े सर खड़ी है ।
सियासत की गर्दिशों में,
 अपनों की बंदिशें बड़ी है,

 नाम ना ले कोई बैरी का,
 सर में गर्मी बहुत चढ़ी है।
कट्टरता की काली पट्टी।
आंखों में लिपटी हुई है।


उपयुक्त आर्टिकल का उद्देश्य यह बिल्कुल नहीं है कि किसी पार्टी या संस्था की आलोचना करना। बल्कि वर्तमान में हो रहे परिदृश्य से अवगत कराना दिए गए आर्टिकल का मुख्य उद्देश्य है और सोच और विचार के आधार पर आप अपना पक्ष स्वयं तय कर सकते हैं।

धन्यवाद।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

उत्तराखंड के प्रमुख व्यक्तित्व एवं स्वतंत्रता सेनानी

उत्तराखंड के प्रमुख व्यक्तित्व उत्तराखंड की सभी परीक्षाओं हेतु उत्तराखंड के प्रमुख व्यक्तित्व एवं स्वतंत्रता सेनानियों का वर्णन 2 भागों में विभाजित करके किया गया है । क्योंकि उत्तराखंड की सभी परीक्षाओं में 3 से 5 मार्क्स का उत्तराखंड के स्वतंत्रता सेनानियों का योगदान अवश्य ही पूछा जाता है। अतः लेख को पूरा अवश्य पढ़ें। दोनों भागों का अध्ययन करने के पश्चात् शार्ट नोट्स पीडीएफ एवं प्रश्नोत्तरी पीडीएफ भी जरूर करें। भाग -01 उत्तराखंड के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी [1] कालू महरा (1831-1906 ई.) कुमाऊं का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम (1857) "उत्तराखंड का प्रथम स्वतंत्रा सेनानी" कालू महरा को कहा जाता है। इनका जन्म सन् 1831 में चंपावत के बिसुंग गांव में हुआ था। इनके पिता का नाम रतिभान सिंह था। कालू महरा ने अवध के नबाब वाजिद अली शाह के कहने पर 1857 की क्रांति के समय "क्रांतिवीर नामक गुप्त संगठन" बनाया था। इस संगठन ने लोहाघाट में अंग्रेजी सैनिक बैरकों पर आग लगा दी. जिससे कुमाऊं में अव्यवस्था व अशांति का माहौल बन गया।  प्रथम स्वतंत्रता संग्राम -1857 के समय कुमाऊं का कमिश्नर हेनरी रैम्

चंद राजवंश : उत्तराखंड का इतिहास

चंद राजवंश का इतिहास पृष्ठभूमि उत्तराखंड में कुणिंद और परमार वंश के बाद सबसे लंबे समय तक शासन करने वाला राजवंश है।  चंद वंश की स्थापना सोमचंद ने 1025 ईसवी के आसपास की थी। वैसे तो तिथियां अभी तक विवादित हैं। लेकिन कत्यूरी वंश के समय आदि गुरु शंकराचार्य  का उत्तराखंड में आगमन हुआ और उसके बाद कन्नौज में महमूद गजनवी के आक्रमण से ज्ञात होता है कि तो लगभग 1025 ईसवी में सोमचंद ने चंपावत में चंद वंश की स्थापना की है। विभिन्न इतिहासकारों ने विभिन्न मत दिए हैं। सवाल यह है कि किसे सच माना जाए ? उत्तराखंड के इतिहास में अजय रावत जी के द्वारा उत्तराखंड की सभी पुस्तकों का विश्लेषण किया गया है। उनके द्वारा दिए गए निष्कर्ष के आधार पर यह कहा जा सकता है । उपयुक्त दिए गए सभी नोट्स प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से सर्वोत्तम उचित है। चंद राजवंश का इतिहास चंद्रवंशी सोमचंद ने उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में लगभग 900 वर्षों तक शासन किया है । जिसमें 60 से अधिक राजाओं का वर्णन है । अब यदि आप सभी राजाओं का अध्ययन करते हैं तो मुमकिन नहीं है कि सभी को याद कर सकें । और अधिकांश राजा ऐसे हैं । जिनका केवल नाम पता है । उनक

परमार वंश - उत्तराखंड का इतिहास (भाग -1)

उत्तराखंड का इतिहास History of Uttarakhand भाग -1 परमार वंश का इतिहास उत्तराखंड में सर्वाधिक विवादित और मतभेद पूर्ण रहा है। जो परमार वंश के इतिहास को कठिन बनाता है परंतु विभिन्न इतिहासकारों की पुस्तकों का गहन विश्लेषण करके तथा पुस्तक उत्तराखंड का राजनैतिक इतिहास (अजय रावत) को मुख्य आधार मानकर परमार वंश के संपूर्ण नोट्स प्रस्तुत लेख में तैयार किए गए हैं। उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में 688 ईसवी से 1947 ईसवी तक शासकों ने शासन किया है (बैकेट के अनुसार)।  गढ़वाल में परमार वंश का शासन सबसे अधिक रहा।   जिसमें लगभग 12 शासकों का अध्ययन विस्तारपूर्वक दो भागों में विभाजित करके करेंगे और अंत में लेख से संबंधित प्रश्नों का भी अध्ययन करेंगे। परमार वंश (गढ़वाल मंडल) (भाग -1) छठी सदी में हर्षवर्धन की मृत्यु के पश्चात संपूर्ण उत्तर भारत में भारी उथल-पुथल हुई । देश में कहीं भी कोई बड़ी महाशक्ति नहीं बची थी । जो सभी प्रांतों पर नियंत्रण स्थापित कर सके। बड़े-बड़े जनपदों के साथ छोटे-छोटे प्रांत भी स्वतंत्रता की घोषणा करने लगे। कन्नौज से सुदूर उत्तर में स्थित उत्तराखंड की पहाड़ियों में भी कुछ ऐसा ही हुआ। उत्

उत्तराखंड में भूमि बंदोबस्त का इतिहास

  भूमि बंदोबस्त व्यवस्था         उत्तराखंड का इतिहास भूमि बंदोबस्त आवश्यकता क्यों ? जब देश में उद्योगों का विकास नहीं हुआ था तो समस्त अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर थी। उस समय राजा को सर्वाधिक कर की प्राप्ति कृषि से होती थी। अतः भू राजस्व आय प्राप्त करने के लिए भूमि बंदोबस्त व्यवस्था लागू की जाती थी । दरअसल जब भी कोई राजवंश का अंत होता है तब एक नया राजवंश नयी बंदोबस्ती लाता है।  हालांकि ब्रिटिश शासन से पहले सभी शासकों ने मनुस्मृति में उल्लेखित भूमि बंदोबस्त व्यवस्था का प्रयोग किया था । ब्रिटिश काल के प्रारंभिक समय में पहला भूमि बंदोबस्त 1815 में लाया गया। तब से लेकर अब तक कुल 12 भूमि बंदोबस्त उत्तराखंड में हो चुके हैं। हालांकि गोरखाओ द्वारा सन 1812 में भी भूमि बंदोबस्त का कार्य किया गया था। लेकिन गोरखाओं द्वारा लागू बन्दोबस्त को अंग्रेजों ने स्वीकार नहीं किया। ब्रिटिश काल में भूमि को कुमाऊं में थात कहा जाता था। और कृषक को थातवान कहा जाता था। जहां पूरे भारत में स्थायी बंदोबस्त, रैयतवाड़ी बंदोबस्त और महालवाड़ी बंदोबस्त व्यवस्था लागू थी। वही ब्रिटिश अधिकारियों ने कुमाऊं के भू-राजनैतिक महत्

उत्तराखंड की जनजातियों से संबंधित प्रश्न (उत्तराखंड प्रश्नोत्तरी -14)

उत्तराखंड प्रश्नोत्तरी -14 उत्तराखंड की प्रमुख जनजातियां वर्ष 1965 में केंद्र सरकार ने जनजातियों की पहचान के लिए लोकर समिति का गठन किया। लोकर समिति की सिफारिश पर 1967 में उत्तराखंड की 5 जनजातियों थारू, जौनसारी, भोटिया, बोक्सा, और राजी को एसटी (ST) का दर्जा मिला । राज्य की मात्र 2 जनजातियों को आदिम जनजाति का दर्जा प्राप्त है । सर्वप्रथम राज्य की राजी जनजाति को आदिम जनजाति का दर्जा मिला। बोक्सा जनजाति को 1981 में आदिम जनजाति का दर्जा प्राप्त हुआ था । राज्य में सर्वाधिक आबादी थारू जनजाति तथा सबसे कम आबादी राज्यों की रहती है। 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य की कुल एसटी आबादी 2,91,903 है। जुलाई 2001 से राज्य सेवाओं में अनुसूचित जन जातियों को 4% आरक्षण प्राप्त है। उत्तराखंड की जनजातियों से संबंधित प्रश्न विशेष सूचना :- लेख में दिए गए अधिकांश प्रश्न समूह-ग की पुरानी परीक्षाओं में पूछे गए हैं। और कुछ प्रश्न वर्तमान परीक्षाओं को देखते हुए उत्तराखंड की जनजातियों से संबंधित 25+ प्रश्न तैयार किए गए हैं। जो आगामी परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण साबित होंगे। बता दें की उत्तराखंड के 40 प्रश्नों में से 2

Uttrakhand current affairs in Hindi (May 2023)

Uttrakhand current affairs (MAY 2023) देवभूमि उत्तराखंड द्वारा आपको प्रतिमाह के महत्वपूर्ण करेंट अफेयर्स उपलब्ध कराए जाते हैं। जो आगामी परीक्षाओं में शत् प्रतिशत आने की संभावना रखते हैं। विशेषतौर पर किसी भी प्रकार की जॉब करने वाले परीक्षार्थियों के लिए सभी करेंट अफेयर्स महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं। उत्तराखंड करेंट अफेयर्स 2023 की पीडीएफ फाइल प्राप्त करने के लिए संपर्क करें।  उत्तराखंड करेंट अफेयर्स 2023 ( मई ) (1) हाल ही में तुंगनाथ मंदिर को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया गया है। तुंगनाथ मंदिर उत्तराखंड के किस जनपद में स्थित है। (a) चमोली  (b) उत्तरकाशी  (c) रुद्रप्रयाग  (d) पिथौरागढ़  व्याख्या :- तुंगनाथ मंदिर उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। तुंगनाथ मंदिर समुद्र तल से 3640 मीटर (12800 फीट) की ऊंचाई पर स्थित एशिया का सर्वाधिक ऊंचाई पर स्थित शिवालय हैं। उत्तराखंड के पंच केदारों में से तृतीय केदार तुंगनाथ मंदिर का निर्माण कत्यूरी शासकों ने लगभग 8वीं सदी में करवाया था। हाल ही में इस मंदिर को राष्ट्रीय महत्त्व स्मारक घोषित करने के लिए केंद्र सरकार ने 27 मार्च 2023

ब्रिटिश कुमाऊं कमिश्नर : उत्तराखंड

ब्रिटिश कुमाऊं कमिश्नर उत्तराखंड 1815 में गोरखों को पराजित करने के पश्चात उत्तराखंड में ईस्ट इंडिया कंपनी के माध्यम से ब्रिटिश शासन प्रारंभ हुआ। उत्तराखंड में अंग्रेजों की विजय के बाद कुमाऊं पर ब्रिटिश सरकार का शासन स्थापित हो गया और गढ़वाल मंडल को दो भागों में विभाजित किया गया। ब्रिटिश गढ़वाल और टिहरी गढ़वाल। अंग्रेजों ने अलकनंदा नदी का पश्चिमी भू-भाग पर परमार वंश के 55वें शासक सुदर्शन शाह को दे दिया। जहां सुदर्शन शाह ने टिहरी को नई राजधानी बनाकर टिहरी वंश की स्थापना की । वहीं दूसरी तरफ अलकनंदा नदी के पूर्वी भू-भाग पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया। जिसे अंग्रेजों ने ब्रिटिश गढ़वाल नाम दिया। उत्तराखंड में ब्रिटिश शासन - 1815 ब्रिटिश सरकार कुमाऊं के भू-राजनीतिक महत्व को देखते हुए 1815 में कुमाऊं पर गैर-विनियमित क्षेत्र के रूप में शासन स्थापित किया अर्थात इस क्षेत्र में बंगाल प्रेसिडेंसी के अधिनियम पूर्ण रुप से लागू नहीं किए गए। कुछ को आंशिक रूप से प्रभावी किया गया तथा लेकिन अधिकांश नियम स्थानीय अधिकारियों को अपनी सुविधानुसार प्रभावी करने की अनुमति दी गई। गैर-विनियमित प्रांतों के जिला प्रमु