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पूर्णागिरी मंदिर : धार्मिक पर्यटक स्थल
पूर्णागिरी मंदिर के बारे में
उधम सिंह नगर का शायद ही कोई ऐसा वासी हो जिसने पूर्णागिरी मंदिर का नाम नहीं सुना होगा। सभी धर्मों के लोग यहां भारी संख्या में मनोकामना पूरी करने के लिए श्रद्धा भाव से आते हैं । खटीमा, सितारगंज के लोगों की इतनी आस्था है कि मंदिर में दर्शन करने के लिए परिवार सहित ट्रैक्टर ट्राली में प्रतिवर्ष पूर्णागिरी आते हैं। पूर्णागिरी मंदिर का नाम इतनी दूर दूर तक है कि भारत के सभी स्थलों से श्रद्धालु अपने सभी दुखों को दूर करने के लिए पूरे मन-तन से माता रानी के दर्शन को आते हैं। पूर्णागिरी मंदिर टनकपुर से 21 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है यूं तो आपने भी कई बार पूर्णागिरी मंदिर की यात्रा की होगी। कभी परिवार के साथ, कभी दोस्तों के साथ, तो कभी हमसफर के साथ लेकिन कभी आपने सोचा है की पूर्णागिरि का अपना एक इतिहास रहा है । शायद ही कोई होगा जिसने इतिहास जानने की कोशिश की होगी और लोग इतने ऊंचे पर्वत पर इतनी दूर क्यों आते हैं? कौन से पर्वत में पूर्णागिरी मंदिर स्थित है? व इसका निर्माण किसने कराया?
आइए हम आपको ले चलते हैं - देवभूमि उत्तराखंड के एक और पर्यटक स्थल के संपूर्ण इतिहास के बारे में साथ ही पूर्णागिरि धाम मंदिर में कोरोनावायरस का क्या असर रहा और उस से क्या प्रभाव पड़ा?
पूर्णागिरी मंदिर की स्थापना
पूर्णागिरी मंदिर में संस्थागत रूप से मूर्ति की स्थापना गुजरात से आए श्री चंद्र तिवारी जी ने की थी। कहा जाता है कि इन्हें सपने में देवी स्थल की महिमा का सपना आया था। सन 1632 में कुमाऊं के राजा ज्ञानचंद के समय श्री चंद्र तिवारी कुमाऊं मंडल आए थे तब उन्होंने टनकपुर से 21 किलोमीटर दूर स्थित अन्नपूर्णा चोटी के शिखर पर मां शेरावाली मूर्ति की स्थापना की इस पर्वत की ऊंचाई समुद्र तल से 3000 मीटर है। अन्नपूर्णा पर्वत के नाम से ही पूर्णागिरी मंदिर नाम पड़ा है।
शक्तिपीठ की स्थापना : पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार यह कहा जाता है कि भगवान शिव की पत्नी सती दक्ष प्रजापति की पुत्री थी। दक्ष प्रजापति जी भगवान शिव को पसंद नहीं करते थे इसलिए एक बार यज्ञ कर रहे थे तो समस्त मंत्रियों और राजाओं को बुलाया लेकिन शिव और पार्वती को कोई निमंत्रण नहीं दिया। इसलिए सती से भगवान शिव जी ने जाने को मना कर दिया। लेकिन माता सती का पिता के प्रति प्यार खींच लाया और वहां माता सती और शिव का अपमान किया गया। भगवान शिव का अपमान आदि शक्ति सती सह न सकी। और माता सती हवन के अग्नि कुंड मे कूद गई । भगवान शिव को इससे बड़ा क्रोध आया तीसरा नेत्र खुलने से चारों तरफ तबाही शुरू हो गई। तांडव नृत्य प्रारंभ कर दिया । जब भगवान शिव तांडव नृत्य करते हुए यज्ञ कुंड से सती के शरीर को लेकर आकाश गंगा मार्ग से जा रहे थे। तब भगवान विष्णु ने तांडव नृत्य को देखकर अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के 108 टुकड़े कर दिए । जो अकाश से पृथ्वी में 108 स्थानों पर आ गिरे । कथा के अनुसार जहां -जहां देवी के अंग गिरे वही स्थान शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध हो गया। उन्हीं में से माता सती का एक अंग नाभि चंपावत जिले के अन्नपूर्णा शिखर पर गिरा । जहां पूर्णागिरी मंदिर का शक्ति पीठ स्थापित हो गया ।
दर्शन कर लौटते वक्त रास्ते में स्थापित हैं महाकाली मंदिर और झूठा मंदिर इनकी भी लोक कथाएं हैं ।कहा जाता है कि एक सेठ ने पुत्र प्राप्ति के लिए देवी मां से मन्नत मांगी थी । सेठ ने मन्नत पूरी होने पर सोने का मंदिर चढ़ाने का वचन दिया था । जब मन्नत पूरी हो गई तो सेठ को लालच आ गया जिससे जहां सेठ ने मन्नत मांगी थी। उस मंदिर को झूठा मंदिर कहा गया । वही महाकाली मंदिर राक्षसों के बाद के लिए जानी जाता है जो मां पूर्णागिरि द्वारा वध किए गए । इसलिए वहां बलि चढ़ाई जाती है ।
सिद्ध बाबा ( नेपाल)
अंतिम दर्शन मे पूर्णागिरी मंदिर के बारे में लोक कथाओं के अनुसार यह कहा जाता है कि ब्रह्मदेव मां पूर्णागिरि के वफादार भक्त थे जो हर समय माता जी की सेवा में रहते थे एक दिन माता रानी श्रृंगार कर रही थी तब वह बाहर से अचानक से आ जाते हैं और माता रानी बिना देखे क्रोधवस उसके शरीर के टुकड़े कर देती हैं और वो टुकड़े नदी के पार नेपाल में आ गिरते हैं । बाद में माता रानी को पछतावा हुआ और उन्होंने सिद्ध बाबा जी को वरदान दिया । जो व्यक्ति मेरे दर्शन करेगा उसके बाद तुम्हारे दर्शन भी करने आएगा। तभी उसकी मनोकामना पूरी होगी इस तरह जो भी भक्त पूर्णागिरी मंदिर जाता है तो मैं नेपाल मैं सिद्ध बाबा के मंदिर जरूर जाता है।
पूर्णागिरी मंदिर की उलझने
बचपन में एक फिल्म देखी थी. " मां वैष्णो देवी" जिसने भैरवनाथ एक छोटी बच्ची का पीछा करता है । और पीछा करते हुए एक गुफा के पास पहुंचता है जहां वैष्णव मां गुफा में बैठ के तपस्या करती हैं वही हनुमान जी उनकी रक्षा करते हैं। लम्बे समय तक भैरवनाथ और हनुमान जी की लड़ाई होती है। और जब 9 महीने पूरे हो जाते हैं तब मां वैष्णो देवी बाहर आती है और भैरव नाथ का गला काट देती हैं । यह कहानी श्रीधर से संबंधित है जिसने 700 ईसा पूर्व वैष्णो मंदिर की स्थापना की थी जोकि कटरा (जम्मू कश्मीर) मे है तो आप सोचेंगे मैं यह कहानी क्यों बता रहा हूं तो जिन लोगों को सही इतिहास मालूम नहीं है। वह लोग अक्सर गलती कर जाते हैं और इन तथ्यों को पूर्णागिरी मंदिर से जोड़ देते हैं । जिसकी कहानी अलग है यदि आपको वैष्णो मंदिर का संपूर्ण इतिहास पढ़ना हो तो मेरी वेबसाइट पर जाएं। लिंक है (देवभूमिउत्तराखंड.com)
विशेषताएं
पूर्णागिरि का मेला चैत्र मास (अप्रैल) नवरात्रों से प्रारंभ होता है। जहां भारी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। यह मेला जेठ (जून) की गर्मी तक चलता है। पहले तो मंदिर तक जाने की खास सुविधाएं नहीं थी। लेकिन वर्तमान में ठुलीगढ़ तक गाड़ियां जाती है तथा हनुमान चट्टी से 3 किलोमीटर की सीधी चढ़ाई है । यात्रा मार्ग के किनारे आरामदायक सुख सुविधाएं होटल, रेस्टोरेंट्स बनाए गए हैं । खाने पीने का सभी समान उपलब्ध कराया जाता है दुकानों मैं विभिन्न प्रकार के खिलौने मूर्तियां और धार्मिक किताबें मिलती हैं । भक्ति के गाने तेज आवाज में बजते हैं वह सभी प्रकार के भक्ती के गानों की डीवीडी मिलती हैं। यदि आपको पूर्णागिरी मंदिर के दर्शन करने हैं सबसे पहले रुद्रपुर शहर तक आना पड़ेगा और वहां से किच्छा, सितारगंज, नानकमत्ता , खटीमा आदि क्षेत्रों से गुजरना होगा । जहां नानकमत्ता में एक और धार्मिक स्थल नानकमत्ता का गुरुद्वारा प्रसिद्ध है उसकी भी यात्रा कर सकते हैं।
लाभ : हानि
पूर्णागिरी मंदिर में चेत्र वैशाख जेठ तक सबसे अधिक मात्रा में रोजगार प्राप्त होता है । जितनी भीड़ इन 3 महीनों में होती है उतनी उत्तराखंड में कहीं नहीं होती होगी । मां वैष्णो मंदिर के बाद दूसरे स्थान पर मां पूर्णागिरी मंदिर है जहां लोगों का अभी भी एक अटूट श्रद्धा भाव बना हुआ है। यूं तो बहुत सारे लोग अपने विभिन्न उद्देश्य से यहां आते हैं कोई मनोकामनाएं लेकर आता है , कोई शांति के लिए आता है , कोई घूमने के लिए आता है, तो कोई व्यापार करने के लिए आता है, देखा जाए तो यह स्थल सभी दृष्टि से महत्वपूर्ण है सरकार द्वारा धार्मिक स्थल और पर्यटक स्थल दोनों के रूप में देखती है ।शारदा नदी के दाई किनारे बसा हुआ पूर्णागिरी मंदिर से टनकपुर शारदा नदी और नेपाल का दृश्य अति लुभावना दिखाई देता है । इन्हीं उद्देश्यों से प्रतिवर्ष सरकार विशेष ध्यान देती है और इसकी तैयारी के लिए फागुन माह से ही व्यापारी सामान खरीदना शुरू कर देते हैं । सभी व्यापारी अपनी अस्थाई दुकानों की ओर लौटने लगते हैं और अच्छा मुनाफा कमाते हैं। यात्रा के दौरान पढ़ने वाली दुकानें दुगने मूल्य से वस्तुऐ को बेचते हैं ।पूर्णागिरी मंदिर में बहुत सी फिल्मों की शूटिंग की जा चुकी है और मां शेरावाली के नाम से अनेक वीडियो एल्बम बनाई गई है। जो यूट्यूब में भी उपलब्ध है जहां आप घर बैठे ही मां पूर्णागिरी के दर्शन कर सकते हैं।
आगे की राह
बीते साल 2020 में कोरोनावायरस के चलते इस बार पूर्णागिरि के मंदिर के दर्शन में रोक लगा दी गई थी । जिसके कारण सबसे ज्यादा नुकसान व्यापारी वर्ग को हुआ था। और बेरोजगारी की समस्या चरम स्तर पर पहुंच गई थी । पिछले वर्ष सरकार की राजस्व की प्राप्ति में भारी कमी आई । हालांकि पिछले वर्ष 40-40 लोगों को दर्शन करने की अनुमति दी गई थी। साथ ही सोशल सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन किया गया था। लेकिन पूर्णागिरि मेले का मुख्य समय समाप्त हो चुका था। अधिक बारिश के कारण बहुत कम मात्रा में लोग दर्शन करने गए थे। वर्तमान परिदृश्य में अर्थव्यवस्था की गतिविधियों में सुधार हुआ है । विकास तेज गति से बढ़ रहा है । और कोरोना वैक्सीन आ चुकी है। जिससे चिंताएं कम हुई है। वर्ष 2021 में प्रशासन और मंदिर समिति की बैठक में 29 मार्च से एक महीने पूर्णागिरि मेला शुरू करने का निर्णय लिया गया है। मेले के दौरान कोविड के नियमों का पूरी तरह किया जायेगा। उम्मीद है की जा रही है । पूर्णागिरी मंदिर में भारी भीड़ हो सकती है।
यदि आपको मेरे द्वारा लिखा गया आर्टिकल "पूर्णागिरि मंदिर का इतिहास "अच्छा लगा हो तो ऐसे ही पोस्ट पढ़ने के लिए मेरी वेबसाइट को फॉलो करें।देवभूमिउत्तराखंड.Com
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जवाब देंहटाएंThanku for sharing your knowledgeable post for students and public ..
जवाब देंहटाएंGood
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