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राजी जनजाति का संपूर्ण परिचय (Raaji Janjaati)

राजी जनजाति का संपूर्ण  परिचय  उत्तराखंड की जनजातियां (भाग - 5) राजी जनजाति उत्तराखंड के पिथौरागढ़ और चंपावत जिलों में निवास करने वाली एक अत्यंत छोटी और लुप्तप्राय अनुसूचित जनजाति है। इसे "बनरौत" या "जंगल का राजा" के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि ये लोग मुख्यतः जंगलों में रहते हैं और प्रकृति के साथ गहरा जुड़ाव रखते हैं। राजी जनजाति की आबादी बहुत कम है, और यह विलुप्त होने के कगार पर है, जिसके कारण संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी इसकी स्थिति पर चिंता जताई है।  राजी जनजाति उत्तराखंड की सबसे प्राचीन और आदिम जनजातियों में से एक है। यह माना जाता है कि ये लोग प्राचीन काल से पिथौरागढ़ और चंपावत के जंगलों में निवास करते आए हैं। कुछ विद्वानों का मानना है कि राजी जनजाति का संबंध प्रोटो-ऑस्ट्रेलॉयड या ऑस्ट्रो-एशियाटिक समूहों से हो सकता है, जो प्राचीन भारत में बसे थे। उनकी बोली, जिसे "मुण्डा" कहा जाता है, में तिब्बती और संस्कृत शब्दों की अधिकता देखी जाती है, जो उनकी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक जड़ों को दर्शाती है। राजी जनजाति के लोग काष्ठ कला में निपुण होते हैं और उनके आवासों क...
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टनकपुर हिल स्टेशन : कुमाऊं का पूर्वी द्वार

कुमाऊं का पूर्वी द्वार : टनकपुर  उत्तराखंड की धरती का एक अनमोल रत्न — टनकपुर,  चंपावत जिले का सबसे घनी आबादी वाला नगर और एक प्रमुख रेलवे स्टेशन। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कभी यह इलाका सिर्फ घने वनों का घर था?  आइए, चलें एक ऐसे सफर पर जहाँ ब्रह्मा का यज्ञ, अंग्रेजों की बसाहट, और हिमालय की हवाओं की खुशबू मिलकर एक बनी है अनोखी कहानी  वन से नगर तक : टनकपुर का जन्म उन्नीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध तक, यह इलाका पूर्णतः वनों से आच्छादित था। नेपाल की सीमा से सटा टनकपुर उस समय एक छोटा-सा गाँव था। यहाँ से तीन मील दूर कत्यूरी वंश के अंतिम राजा द्वारा ब्रह्मदेव मंडी स्थापित की गई थी। किन्तु प्रकृति की लीला देखिए, एक दिन भूस्खलन ने पूरी मंडी को जमीन में समा दिया। आज उस नगर के सिर्फ नाम और कथाएँ ही शेष हैं। ब्रह्मा का यज्ञ और रहस्यमयी कांकर घाट लोककथाओं के अनुसार, कभी सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने शारदा नदी के तट पर, कांकर घाट में एक विशाल यज्ञ किया था। आज भी वहाँ प्राचीन यज्ञस्थली, हवनकुंड और नगर के भग्नावशेष बिखरे हैं मानो अतीत की कहानियाँ हवा में तैर रही हों। यही नहीं, कहा जाता है कि गढ़...

बाणासुर का किला — इतिहास, रहस्य और गौरव की कहानी

बाणासुर का किला — इतिहास, रहस्य और गौरव की कहानी स्थान और सौंदर्य लोहाघाट से लगभग पाँच किलोमीटर की दूरी पर स्थित बाणासुर का किला आज भग्नावस्था में होने के बावजूद अपनी प्राचीन भव्यता का एहसास कराता है। यह जनपद चंपावत के प्रसिद्ध दर्शनीय स्थलों में से एक है। किले के उत्तर में हिमाच्छादित पर्वत श्रृंखलाएँ,  दक्षिण में मायावती आश्रम,  और नीचे की ओर हरे-भरे समतल खेत इसकी प्राकृतिक सुंदरता को और भी मनमोहक बनाते हैं। अद्वितीय स्थापत्य कला कहा जाता है कि बाणासुर ने शोणितपुर की इस ऊँची पर्वत चोटी पर अपने साम्राज्य की रक्षा हेतु यह किला बनवाया था। पूरी पहाड़ी को तराशकर तैयार किया गया यह किला चारों ओर से मज़बूत दीवारों से घिरा हुआ था। किले की लंबाई लगभग 90 मीटर और चौड़ाई 20 मीटर है। दीवारों में दुश्मन पर नज़र रखने के लिए सुरंगें और ऊँचे मंच बनाए गए थे। किले के भीतर पाँच भवनों के अवशेष आज भी दिखाई देते हैं। यहाँ के कुएँ में उतरने के लिए 32 सीढ़ियाँ बनी हैं, जो उस समय की वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण हैं। बाणासुर — शक्ति और अहंकार का प्रतीक बाणासुर, राजा बलि का सबसे बड़ा पुत्र था। उसने भगवा...

देवभूमि उत्तराखंड स्थापना दिवस पर स्लोगन

उत्तराखंड स्थापना दिवस पर स्लोगन  उत्तराखंड, देवभूमि की यह पावन धरती, 9 नवंबर 2000 को अपने स्वतंत्र अस्तित्व में आई। इस अवसर पर, उत्तराखंड के समृद्ध विकास और जीवंत संस्कृति को समर्पित 30 स्लोगन और कविताएं प्रस्तुत हैं। ये रचनाएं राज्य की प्रगति, प्राकृतिक सौंदर्य, सांस्कृतिक विरासत और भविष्य की आशाओं को प्रतिबिंबित करती हैं। 30 स्लोगन (उत्तराखंड के विकास और संस्कृति पर) “जहाँ हर पर्वत बोल उठे — पहाड़ हमारी पहचान, संस्कृति हमारा अभियान” 🌿‌ देवभूमि उत्तराखंड के ऐतिहासिक विरासत और संस्कृति से प्रेरित स्लोगन उत्तराखंड स्थापना दिवस (रजत जयंती – 25 वर्ष) विशेष स्लोगन “25 वर्षों की गौरवगाथा – देवभूमि की अद्भुत परिभाषा!” (राज्य की उपलब्धियों और पहचान का गौरव) “पर्वतों से ऊँचा हमारा मान – यही है उत्तराखंड की पहचान!” (गौरव और आत्मसम्मान का संदेश) “संघर्ष से सफलता तक का सफर – जय जय उत्तराखंड अमर!” (संघर्षशील भावना का सम्मान) “रजत जयंती का ये उत्सव महान – आओ मिलकर करें देवभूमि का सम्मान!” (सामूहिक उत्सव का आह्वान) “हर घाटी, हर गाँव में गूँजे स्वर – उत्तराखंड जिंदाबाद सदा अमर!” (लोकएकता और प्रद...

उत्तराखंड स्थापना के 25 वर्ष पूर्ण (रजत जयंती)

उत्तराखंड स्थापना के 25 वर्ष पूर्ण (रजत जयंती) हिमालय की गोद में बसी देवभूमि उत्तराखंड आज अपने राज्य स्थापना दिवस पर 25वीं वर्षगांठ, यानी रजत जयंती मना रही है। 9 नवंबर 2000 को उत्तर प्रदेश से अलग होकर अस्तित्व में आया यह राज्य, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एक लंबे आंदोलन का परिणाम था। 25 वर्षों में उत्तराखंड ने न केवल प्राकृतिक सौंदर्य और सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित किया, बल्कि आर्थिक, सामाजिक और बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति भी हासिल की। इस रजत जयंती के अवसर पर देहरादून में आयोजित भव्य समारोहों ने राज्य की एकजुटता और भविष्य की आकांक्षाओं को नई ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया। एक नजर में 25 वर्षों का सफर उत्तराखंड का गठन राज्य आंदोलनकारियों के बलिदान और जनता की एकजुटता का प्रतीक है। चिपको आंदोलन से लेकर राज्य निर्माण तक, यह भूमि पर्यावरण संरक्षण, महिला सशक्तिकरण और लोकतांत्रिक संघर्ष की कहानी कहती है। पिछले 25 वर्षों में राज्य की कंपाउंड एनुअल ग्रोथ रेट (सीएजीआर) 12.69 प्रतिशत रही, जो राष्ट्रीय औसत से चार गुना अधिक है। किसानों की आय वृद्धि में देश में ...

वनबसा : शारदा नदी के तट पर बसा एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रत्न

वनबसा : शारदा नदी के तट पर बसा एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक नगर उत्तराखंड के चम्पावत जिले में वनबसा, एक ऐसा कस्बा है जो भारत-नेपाल सीमा पर बसा है और अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत व प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है। टनकपुर से मात्र 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह ग्राम पंचायत, जनपद की सबसे बड़ी पंचायतों में से एक है, जहाँ लगभग 10,000+ लोग निवास करते हैं। यहाँ अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग और अन्य समुदायों का सामंजस्यपूर्ण मिश्रण देखने को मिलता है, जो इस क्षेत्र को एक जीवंत सामाजिक ताने-बाने से जोड़ता है। प्रकृति और इतिहास का संगम शारदा नदी के तट पर बसा वनबसा, मैदानी और पर्वतीय संस्कृतियों का एक अनूठा मेल है। यह स्थान सदियों से पर्वतीय लोगों का प्रिय ठिकाना रहा है। पुराने समय में, जब लोग माल भावर की यात्रा करते थे, वनबसा उनका प्रमुख विश्राम स्थल था। सर्दियों में पहाड़ी लोग यहाँ अपनी गाय-भैंस चराने आते और दिनभर धूप में समय बिताकर लौट जाते। घने जंगलों के बीच बसे होने के कारण, संभवतः इस क्षेत्र का नाम "वनबसा" पड़ा। यहाँ की मूल निवासी थारू और बोक्सा जनजातियाँ इस क्ष...

श्यामलाताल : विवेकानंद आश्रम की मनमोहक शांति

श्यामलाताल : विवेकानंद आश्रम की मनमोहक शांति हिमालय की गोद में बसा विवेकानंद आश्रम, श्यामलाताल, उत्तराखंड के चम्पावत जिले का एक ऐसा रत्न है, जो प्रकृति और आध्यात्मिकता का अनूठा संगम प्रस्तुत करता है। समुद्र तल से लगभग 5,000 फीट की ऊँचाई पर स्थित यह स्थल अपने आलौकिक सौंदर्य और शांति से हर किसी का मन मोह लेता है। यहाँ से टनकपुर-वनबसा और शारदा नदी घाटी के मनोरम दृश्यों के साथ-साथ नंदादेवी, पंचाचूली और नंदकोट जैसी बर्फीली चोटियों का लुभावना नजारा देखने को मिलता है, जो आत्मा को सुकून और आँखों को तृप्ति देता है। श्यामलाताल : एक झील का जादू आश्रम के ठीक निकट एक छोटी, परंतु अत्यंत आकर्षक झील है, जिसे श्यामलाताल के नाम से जाना जाता है। इस झील की लंबाई लगभग 500 मीटर और चौड़ाई 200 मीटर है। इसका गहरा श्याम वर्ण वाला जल इतना मनमोहक है कि स्वामी विवेकानंद ने स्वयं इसे 'श्यामलाताल' नाम दिया। झील के शांत जल में आसपास की हरी-भरी पहाड़ियों और नीले आकाश की छवि ऐसी दिखती है, मानो प्रकृति ने स्वयं एक कैनवास पर चित्र उकेरा हो। कैसे पहुँचें? विवेकानंद आश्रम, चम्पावत जिला मुख्यालय से लगभग 45 किलोमीटर ...